शेखपुरा : शराब की लत ने बरबादी की जिस तकदीर को लिखा वह असंख्य और असहनीय है. इस लत को लगाने की गुनाह के लिए सजा की भी कुदरत ने अजीब खेल रचा है. गुनाह करने वाले तो इस दुनियां से चले जाते हैं. मगर सजा उन्हें मिलती है जो इसका सख्त विरोधी होते हैं. यानि शराब की लत में अपनी जान गंवाने वाले के आश्रित ही इसके भुक्तमोगी बन तिल–तिल कर जीने को विवश हो जाते हैं.
सरकार की शराब नीति जब गांवों की ओर अपना दायरा बढ़ाने लगा तब अचानक घरेलु हिंसा,सामाजिक विवाद और अपराध ने भी अपना दायरा बढ़ाया. शराब की लत ऐसी है कि अगर दिन भर की मजदूरी दो से ढाई सौ रुपये का है तब उसमें अगर एक शाम का नशा करने की कीमत पर नजर डाले तब खर्च 50 रुपये का है. यानि कमाई से जहां परिवार का सही ढंग से परवरिश का भी जूगाड़ नही और लोग शराब में बड़ी कमाई झोंक रहे थे.