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चौदह डिफॉल्टर मिलरों ने किया फर्जीवाड़ा

प्रोपराइटर का नाम बदलकर डिफॉल्टर मिलर टैगिंग में धांधलीप्रभात खबर डिजिटल प्रीमियम स्टोरीJayant Chaudhary: क्या है ऑरवेलियन-1984, जिसका मंत्री जयंत चौधरी ने किया है जिक्रJustice Yashwant Varma Case: कैसे हटाए जा सकते हैं सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज?Spies In Mauryan Dynasty : मौर्य काल से ही चल रही है ‘रेकी’ की परंपरा, आज हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2017 3:38 AM

प्रोपराइटर का नाम बदलकर डिफॉल्टर मिलर टैगिंग में धांधली

शेखपुरा : जिले में खाद्य सुरक्षा योजना के जरिए गरीबों तक सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे हैं अनाज में व्यापक बंदरबांट की एक कड़ी मिलर भी बन रहे हैं. ऐसे तो जिले में चौदह डिफॉल्टर मिलरों पर सरकार के 7 करोड़ लागत की चावलों को डकारने का आरोप है. इस मामले में जिला प्रशासन कार्रवाई भी कर रही है. लेकिन इसके बावजूद डिफॉल्टर मिलर ही टैगिंग करा कर दोबारा सरकार को चूना लगाने की तैयारी में जुटे हैं. हालांकि जिले में मिलरों को टैगिंग करने की प्रक्रिया फिलहाल जारी है. इस प्रक्रिया में वैसे मिलर भी आनलाइन आवेदन कर रहे हैं, जो डिफाल्टर रहने के कारण अपने रिश्तेदारों के नाम से आवेदन करने में जुटे हैं.
इस प्रक्रिया में सभी 23 मिलरों ने ऑनलाइन आवेदन कराया है. जिसके आधार पर विभिन्न प्रक्रियाओं को अपनाते हुए विभाग इन मिलरों को धान की मिलिंग कर चावल बना कर विभाग को उपलब्ध कराने के लिए टैगिंग की जायेगी. जिले में पिछले लंबे अंतराल से चल रहे टैगिंग के इस खेल में मिलरों के फर्जीवाड़े के खेल से ऐसा नहीं की विभाग महरूम है. विभाग ने इस खेल से बचने के लिए पहली बार मिलरों से शपथ पत्र लेने की औपचारिकता पूरी करने का प्रावधान किया है. लेकिन सवाल यह है कि डीलरों के टैगिंग की प्रक्रिया में आवेदक के दस्तावेजों का भौतिक सत्यापन से अगर डिफॉल्टर मिलरों के फर्जीवाड़े का खुलासा नहीं हो सका, तो क्या इस शपथपत्र की औपचारिकता से सालों से जारी गड़बड़ियों का खुलासा संभव है.जिले में धान की खरीद के साथ मिलरों के द्वारा मिलिंग के बाद चावल उपलब्ध कराने सरकारी प्रक्रिया में हो रहे व्यापक गड़बड़ियों को लेकर जो मामले सामने आये हैं. उसमें डिफॉल्टर मिलर भी शामिल हैं जिन्होंने अपने रिश्तेदारों को उसी राइस मील का प्रोपराइटर बनाकर दोबारा विभाग से टैगिंग की प्रक्रिया को पूरा कर लिया.
खास बात यह है कि बिहार राज्य खाद्य निगम के स्थानीय अधिकारियों की देखरेख में होने वाले इस प्रक्रिया के तहत मील से संबंधित जमीनी दस्तावेजों जांच और मिल की स्थलीय सत्यापन कार्रवाई करनी होती है. लेकिन कार्रवाई में पिछले दिनों जो खेल हुआ उसमें डिफॉल्टर मिल और मिलर को ही दोबारा टैग कर दिए जाने का मामला सामने आया है.खरीद से लेकर खाद्य सुरक्षा योजना में चावल मुहैया कराने के लिए सरकार ने जो मेलिंग की व्यवस्था किया है उसमें सहकारिता के द्वारा मिलरों को ट्रैक करने की अंतिम प्रक्रिया पूरी की जाती है. अधिकारियों के मुताबिक मिलरों को टैगिंग के लिए बिहार राज्य खाद्य निगम के जिला कार्यालय में मिल के साथ-साथ जमीन व प्रोप्राइटर के सभी दस्तावेजों को लगाकर ऑनलाइन आवेदन करना होता है.
इसके बाद टास्क फोर्स जांच दल के द्वारा मिलरों के दस्तावेजों का भौतिक सत्यापन की प्रक्रिया पूरी की जाती है. इसके साथ जांच के सारे प्रक्रिया और कॉलम को पूरा करने के बाद जिलास्तरीय टास्क फ़ोर्स की बैठक में मिलरों का चयन किया जता है.

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