श्रावणी मेला 2023 की शुरुआत हुई तो उत्तरवाहिनी गंगा सुल्तानगंज से लेकर बाबानगरी देवघर तक कांवरिया पथ केसरियामय हो चुका है. दिन हो या रात, शिवभक्त लगातार यात्रा कर रहे हैं. श्रावणी मेले में कांवर की परंपरा सदियों पुरानी है. शिवभक्तों की आस्था अटूट होती है. उनका मानना है कि बाबा बैद्यनाथ पर जल चढ़ाने से सकल मनोकामना की पूर्ति होती है.
उत्तरवाहिनी गंगा जल के एक बूंद मात्र से भी भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं. पंड़ित संजीव झा कहते हैं कि पौराणिक मान्यता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने कांवर में जल लेकर सभी धामों की यात्रा की थी. आनंद रामायण के अनुसार राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद भगवान राम, लक्ष्मण व सीता ने भी कांवर में जल भर बैद्यनाथ धाम में जलाभिषेक किया था. कांवर की प्रथा के संबंध में वैदिक युग और उत्तर वैदिक काल में भी प्रमाण मिले हैं.
Also Read: श्रावणी मेला: अजगैबीनाथ मंदिर के महंत को देवघर में जल चढ़ाने की है मनाही, नहीं मानने पर हुआ ये हादसा..
‘ सुल्तानगंज की संस्कृति ’ पुस्तक के लेखक डॉ अभयकांत चौधरी ने बताया कि पांच सौ वर्ष पूर्व से ही गंगा जल बाबा बैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग पर कांवर से चढ़ाया जाता रहा है. कांवर की महिमा का पता जब राक्षसों को चला, तो उन्होंने सुल्तानगंज से कांवर में जल भर कर देवघर में बाबा बैद्यनाथ पर अर्पित करना शुरू किया था.
कांवर की परंपरा त्रेता युग में भी थी. उस समय तीर्थस्थलों की यात्रा पुत्र अपने माता-पिता को कराते थे. कांवर लेकर जाने वाले कांवरिया सुल्तानगंज से देवघर तक 95 किलोमीटर की लंबी यात्रा तय कर बाबाधाम पहुंचते हैं. पंडित संजीव झा ने बताया कि मान्यता है कि सावन माह में देवलोक से भी देवगण आते हैं.
देवगण अदृश्य रूप में या वेश बदल कर सुलतानगंज से कांवर लेकर देवघर जाते हैं. कांवरिया भेष में कौन क्या है. पता नहीं चल पाता है. कांवर यात्रा कर जलार्पण करने से देवो के देव महादेव अति प्रसन्न होते है. एक अद्भुत आस्था, विश्वास के साथ नयी ऊर्जा प्रदान करता है. शिव भक्त बाबा बैद्यनाथ के ज्योर्तिलिंग पर गंगा जल अर्पित कर बाबा आशुतोष से कुछ भी ले लेते हैं.
(सुल्तानगंज से शुभंकर)
Published By: Thakur Shaktilochan