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श्रावणी मेला: कभी बैद्यनाथ से अधिक होती थी यहां कांवड़ियों की भीड़, जानें सिंहेश्वर का क्या है राम से रिश्ता

सिंहेश्वर मंदिर स्थित शिवलिंग को कामना लिंग के रूप में पूजा जाता है. राजा दशरथ के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था, इसीलिए संतान की चाहत के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु सिंहेश्वर महादेव को जल अर्पित करने के लिए आते हैं.

पटना. बिहार के मधेपुरा जिला अंतर्गत सिंहेश्‍वर महादेव का महात्म देवघर के बाबा बैद्यनाथ से कम नहीं है. यही कारण है कि यहां सावन में लाखों की भीड़ उमड़ती है. यहां मंदिर बशर्ते बहुत पुरानी नहीं है, लेकिन शिवलिंग का इतिहास सदियों पुराना है. कहा जाता है कि सिंहेश्वर महादेव की पूजा करने भगवान विष्णु स्वयं यहां आये थे. इतना ही नहीं पुत्र के जन्म निमित्‍त अयोध्या नरेश राजा दशरथ भी यहां पुत्रेष्टि यज्ञ करने आये थे. सिंहेश्वर मंदिर स्थित शिवलिंग को कामना लिंग के रूप में पूजा जाता है. राजा दशरथ के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था, इसीलिए संतान की चाहत के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु सिंहेश्वर महादेव को जल अर्पित करने के लिए आते हैं.

शृंगेश्वर महादेव था नाम, जो बाद में सिंहेश्वर हो गया

कहा जाता है कि महर्षि दधिचि और राजा ध्रुत के बीच अंतिम संघर्ष इसी इलाके में हुआ था. शिव पुराण के रुद्र संहिता खण्ड में वर्णित इस कथा से सिंहेश्वर का गहरा संबंध कई जगहों पर उल्लेखित किया गया है. पांडवों ने विराटनगर नेपाल के भीम बांध क्षेत्र में शरण लेने के पश्चात सिंहेश्वर में शिव की पूजा की थी. महाभारत काल में भी अपने भाई कृष्ण से नाराज होकर बलराम ने इसी इलाके में अपना प्रवास कायम किया था. वर्तमान मंदिर काफी पुराना नहीं है, लेकिन शिवलिंग ऐतिहासिक महत्व का है. सिंहेश्वर शिवलिंग की स्थापना के संदर्भ में कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं है, लेकिन सिंहेश्वर महादेव के नाम के संबंध में लोगों का कहना है कि यह नाम अपभ्रंस है. दरअसल श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि में इस महादेव की स्थापना हुई थी, जिसके कारण इसका नाम शृंगेश्वर रखा गया जो बाद में सिंहेश्वर हो गया.

माधव सिंह ने कराया था वर्तमान मंदिर का निर्माण

जानकार बताते हैं कि सिंहेश्वर महादेव का मंदिर कई बार बना है. सिंहेश्वर महादेव का वर्तमान मंदिर मिथिला नरेश महाराजा माधव सिंह के कार्यकाल में बना. वर्तमान मंदिर पुरानी मंदिर की नींव पर ही बना है. कहा जाता हैकि मंदिर के नीचे का भाग किसी पहाड़ से जुड़ा हुआ है. कुछ दशक पहले मंदिर मरम्मत के लिए जब अभियंताओं के दल ने खुदाई की, तो देखा गया कि कुछ मीटर नीचे कोई ठोस चीज है. इस वजह से खुदाई नहीं हो पा रही थी. अभियंताओं के दल ने कहा कि शिवलिंग किसी पहाड़ के अग्रभाग पर स्थित है. बताया जाता है कि इसी पहाड़ की वजह से ही कोसी के रौद्र रूप के वावजूद मंदिर को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.

कांवड़ियों के लिए बनी थी सबसे चौड़ी सड़क

सिंहेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी विश्वेन्द्र ठाकुर ने कहा कि यह शिवलिंग सदियों से यहां हैं. पहले यह एक वन क्षेत्र था. घने जंगल के बीच लोग अपनी मनोकामना पूरी करने यहां आते थे. आज के मुकाबले पहले अधिक लोग सावन में शिव को जल चढ़ाने यहां आया करते थे. लोगों का कहना है कि यहां की भीड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 18वीं सदी में यहां कांवड़ियों के लिए 200 फुट चौड़ी सड़क बनायी गयी थी. आज भी बिहार की सबसे चौड़ी सड़क सिंहेश्वर महादेव स्थान को ही जाती है. सरकारी दस्तावेजों के अनुसार है कि 1870 के आसपास कांवरियों के लिए मिथिला के महाराजकुमार नेत्रेश्वर सिंह ने सिंहेश्वर पथ का निर्माण कराया था.

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