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श्रावणी मेला 2023: पति के ठीक होने के लिए महादेव से मांगी मन्नत, अब दंड देते हुए जा रही बैधनाथ धाम

बिहारशरीफ़ की सुधा सिन्हा ने महादेव से मन्नत मांगी थी की उनके पति बीमारी से ठीक हो जाएंगे तो वो दंड देते हुए सुलतानगंज से बैधनाथ धाम जाएंगी और अब वो सावन के इस पावन महीने में दंड देते हुए बैधनाथ धाम की यात्रा पर निकली हैं.

सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है. इस दौरान देश-विदेश से अपने मन की मुरादें लिए करोड़ों कांवरिये बाबा बैधनाथ धाम पहुंचते हैं. शिव भक्त सुलतानगंज से पावन उत्तरवाहिनी गंगा से जल भर कर 105 किमी की यात्रा कर बाबाधाम जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. ऐसी ही एक शिव भक्त हैं बिहार शरीफ की सुधा सिन्हा. सुधा ने महादेव से अपने पति के ठीक होने की मन्नत मांगी थी, अब उनके पति ठीक हो चुके हैं ऐसे में सुधा दंड देते हुए बाबा धाम की यात्रा पर निकली हैं. उनके पति भी उनके साथ बाबा नगरी जा रहे हैं.

महादेव से मांगी थी मन्नत 

बता दें कि सुधा के पति बीमार थे, बचने की उम्मीद नहीं थी. तो उन्होंने महादेव से मन्नत मांगी की दंड देते हुए सुलतानगंज से बैधनाथ धाम जाएंगे और अब वह सावन महीने में दंड देते हुए बैधनाथ धाम की यात्रा पर निकली हैं. सुधा सिन्हा पहली बार शाष्टांग दंडवत होते हुए बैधनाथ धाम जा रही हैं उनके साथ उनके पति भी हैं. चार जुलाई को सुधा सिन्हा ने सुलतानगंज से जल लिया था. उन्होंने अभी तक 10 किलोमीटर की दूरी तय की है. वह कच्ची कांवड़िया पथ पर हैं और धीरे धीरे आगे बढ़ रही हैं.

सुधा के पति को हो गया था हेपेटाइटिस बी

दरअसल सुधा के पति नरेश सिन्हा को हेपेटाइटिस बी हो गया था, वह लगातार बीमार रह रहे थे. डॉक्टर ने उनके बचने की उम्मीद नहीं जतायी थी इसके बाद सुधा ने भोलेनाथ से मन्नत मांगी की उनके पति अगर स्वस्थ होते हैं तो वह दंड देते हुए बैधनाथ धाम जाएंगी. इसके बाद इस वर्ष सावन में सुधा सिंह बैधनाथ धाम की यात्रा पर निकली है.

क्या कहता हैं सुधा के पति 

सुधा के पति नरेश अपनी पत्नी को मिसाल मानते हैं. नरेश कहते है की उनके बचने की उम्मीद नहीं थी लेकिन महादेव से उनकी पत्नी ने कामना की थी तो महादेव ने उनकी मुराद सुनी और कामना पूरी कर दी.

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सावन में तीन तरह के कांवरिया जाते हैं बैधनाथ धाम

बता दें कि सावन के महीने में महादेव को रिझाने के लिए तीन तरह के कांवड़िया श्रद्धालु सुलतानगंज से बैधनाथ धाम जाते हैं. एक सामान्य बम होते है, एक डाक बम, तो एक डंडी बम होते हैं. सबसे कष्टप्रद यात्रा डंडी बम की होती है. यह डंडी बम डेढ़ से दो महीने में बैधनाथ धाम पहुंचते हैं

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