प्रभु श्रीराम का बिहार से रहा है गहरा नाता, बक्सर से लेकर मिथिला तक इन शहरों में पड़े पांव
भले भी श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ हो, लेकिन बिहार से भी उनके जुड़ाव के प्रमाण मिलते हैं. बक्सर में शिक्षा, ताड़का वध और अहिल्या के उद्धार से लेकर, ब्रह्म हत्या दोषमुक्तिी के लिए मुंगेर आगमन और पिता दशरथ के पिंडदान करने गयाजी आने का उल्लेख विभिन्न ग्रंथों में हैं.
पटना. 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरा देश राममय है. इस समय अयोध्या पूरे देश की केंद्र बिंदू बनी हुई है. भले भी श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ हो, लेकिन बिहार से भी उनके जुड़ाव के प्रमाण मिलते हैं. बक्सर में शिक्षा, ताड़का वध और अहिल्या के उद्धार से लेकर, ब्रह्म हत्या दोषमुक्ति के लिए मुंगेर आगमन और पिता दशरथ के पिंडदान करने गयाजी आने का उल्लेख विभिन्न ग्रंथों में हैं. कुल मिलाकर बिहार को श्रीराम की कर्मस्थली भी कहा जा सकता है. रामलला का मिथिला से भी खास जुड़ाव रहा है.
त्रेतायुग में बक्सर की धरा पर पड़े प्रभु श्रीराम के पांव
धर्माचार्य कृष्णानंद शास्त्री की मानें, तो आज से लाखों वर्ष पूर्व त्रेतायुग में बक्सर की धरा धाम पर महर्षि विश्वामित्र द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान किया गया था. उस समय क्षेत्र में राक्षसी ताड़का, मारीच सुबाहु आदि असुरों का साम्राज्य था. इसके कारण जप, तप, यज्ञ आदि धार्मिक कृत्यों को करना मुश्किल था. यज्ञ की रक्षा के लिए गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से प्रभु श्रीराम ने ताड़का और सुबाहु का वध किया और फिर यहीं से धनुष यज्ञ का निमंत्रण मिलने पर महर्षि विश्वामित्र श्रीराम व लक्ष्मण को लेकर जनकपुर के लिए रवाना हुए थे. दावा तो यह भी है कि उन्होंने बक्सर के अहिरौली स्थित गौतम आश्रम में पत्थर बनी देवी अहिल्या का उद्धार किया था. भगवान राम के पांव के निशान रामरेखा घाट बड़ी मठिया में विराजमान है.
अहल्या स्थान स्थित अहल्या गहवर से भी जुड़ाव का दावा
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का मिथिला से भी गहरा संबंध रहा है. जनकनंदनी सीताजी मिथिला की ही थीं. जनश्रुतियों व दावे के अनुसार पति के शाप से पत्थर बनी श्रीराम द्वारा अहिल्या का चरण रज से उद्धार करने के कारण दरभंगा जिले के जाले प्रखंड के अहियारी गांव स्थित अहल्या स्थान का विशेष महत्व है. मिथिला के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शुमार अहल्यास्थान में देशभर के श्रद्धालुओं का जमघट लगता है.
पिता दशरथ का पिंडदान करने जानकी व लक्ष्मण संग गयाजी आये
त्रेतायुग में वनवास से लौटने के बाद भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्मण के साथ अपने पिता दशरथ का पिंडदान करने गयाजी पहुंचे थे. पुराणों में वर्णित है कि राम पुष्पक विमान से फल्गु नदी के पूर्वी छोर पर नागकूट पर्वत पर उतरे थे. वहां पहुंचने के बाद सीता जी को वहां बैठाकर भाई लक्ष्मण के साथ पिंडदान सामग्री लाने के लिए निकल गये थे. सीता जी ने बालू का पिंड देकर दशरथ जी की आत्मा को तृप्त किया था. उस वेदी स्थल को आज सीताकुंड के नाम से जाना जाता है. राम ने यहां रामशिला वेदी पर पातालेश्वर महादेव की स्थापना भी की थी. पहाड़ के नीचे रामकुंड सरोवर में श्रीराम ने स्नान कर अपने पिता को जल तर्पण किया था.
ब्रह्म हत्या दोषमुक्ति को लेकर मुंगेर आये थे भगवान राम
कहा जाता है कि मुंगेर में महर्षि मुद्गल ने भगवान राम को रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति दिलायी थी. लोक कथा के अनुसार जब भगवान राम रावण का वध कर माता सीता के साथ अयोध्या लौटे थे तो उनके कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें महर्षि मुदगल के आश्रम में जाकर ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति का आदेश दिया था. उसके बाद प्रभु राम मुंगेर आये थे और मुंगेर के उत्तरवाहिणी गंगा तट कष्टहरणी घाट पर महर्षि मुदगल ने उन्हें यज्ञ व अनुष्ठान के माध्यम से ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति दिलायी थी.
श्रीराम का लखीसराय के श्रृंगी ऋषि धाम से रहा है नाता
किंवदंती है कि राजा दशरथ ने पुत्र की चाह में लखीसराय के श्रृंगी ऋषि धाम में ही पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया था. यज्ञ की समाप्ति के बाद ऋषि द्वारा दिये गये प्रसाद रूपी खीर उन्होंने तीनों रानी कौशल्या, कैकयी व सुमित्रा को खिलाया था. इसके बाद तीनों रानियों से श्रीराम, भरत, लक्ष्मण व शत्रुधन रूपी पुत्र की प्राप्ति हुई थी. कहा जाता है कि वाल्मीकि रामायण में भी श्रृंगऋषि धाम का जिक्र किया गया है.
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