हिंदू धर्म और सनातन परंपरा के विकास में बिहार का उल्लेखनीय योगदान है. बिहार वह पौराणिक धरा है जहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम और माता सीता की कहानियों का उल्लेख वाल्मीकि रचित रामायण में मिलता है. पटना सिटी (बक्सी मुहल्ला) में माता सीता की अति प्राचीन मंदिर और जानकी घाट है. यहां माता सीता जी की अकेली मूर्ति है. देश में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां सीता जी की अकेली मूर्ति ही है.
कहा जाता है कि यह वहीं स्थान है, जहां जनक नंदनी पुत्री सीता जी, श्री राम से विवाह के बाद महाराज दशरथ एवं अयोध्यावासियों के साथ ससुराल (अयोध्या) जाते वक्त इसी स्थान पर उतरी थीं और ऐसा माना जाता है कि माता सीता की पालकी (डोला) इसी स्थान पर रखा गया था. उन्होंने अयोध्या जाते वक्त कुछ देर के लिए विश्राम किया था. महाराज दशरथ राजा जनक का आतिथ्य स्वीकार करने के बाद वर्तमान सोनपुर से कोनहारा घाट पर नाव से इसी जानकी घाट पर आये थे. उसी समय से यह पवित्र स्थान सीता- स्थान के नाम से प्रसिद्ध है और लोक पूजित है. कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोतम श्री राम विवाह के बाद अयोध्या लौटने के क्रम में उस समय की नारायणी नदी को पार कर इस स्थान पर अपना पड़ाव डाला था. और सीता माता की पालकी इसी स्थान पर रखी गयी थी.
श्री भगवती सीता स्थान एवं रत्नेश्वर महादेव मंदिर न्याय समिति के सचिव प्रभात बहादुर माथुर ने बताया कि इसके ऐतिहासिक प्रमाणिकता के लिए एक तथ्य यह भी है कि नारायणी जी गंडक के उस पार रामचौरा नामक स्थान हैं और इस पार गंगा के तट पर सीता स्थान है. उन्होंने बताया कि सीता घाट कोनहारा घाट के लगभग सामने पड़ता है.
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डा. विनय कृष्ण प्रसाद ने बताया कि यह वही स्थान है जहां मगध नरेश ने महाराजा दशरथ की आगुवनी की थी. उन्होंने बताया कि राम चरित्र मानस से भी यह प्रमणित होता है महाराज दशरथ की बारात लौटते वक्त अयोध्या तथा जनकपुर के बीच स्थान पर ठहरती हुई गयी थी.
श्री भगवती सीता स्थान न्याय समिति के उपाध्यक्ष रत्नदीप प्रसाद ने इस स्थान के बारे में बिहार-उड़ीसा सर्वे रिपोर्ट में उल्लेख मिलता है. गजट अधिसूचना में यह स्थान सीता टेम्पल के नाम से उल्लेख मिलता है. उन्होंने बताया कि माता सीता और राम की बारात से जुड़ी सीता स्थान और उनके नाम पर जानकी घाट राज्य सरकार और जिला प्रशासन की नजरों से ओझल है.