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नहाय खाय के साथ छठ अनुष्ठान शुरू

सीतामढ़ी : गुरुवार, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से लोक आस्था का चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू हो गया. गुरुवार को जिले के हजारों छठ व्रतियों ने शारीरिक एवं मानसिक रूप से पवित्रता धारण कर नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महाव्रत का आरंभ किया. गुरुवार को व्रतियों ने शुद्ध निरामिस भोजन करने के बाद व्रत […]

सीतामढ़ी : गुरुवार, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से लोक आस्था का चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू हो गया. गुरुवार को जिले के हजारों छठ व्रतियों ने शारीरिक एवं मानसिक रूप से पवित्रता धारण कर नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महाव्रत का आरंभ किया.

गुरुवार को व्रतियों ने शुद्ध निरामिस भोजन करने के बाद व्रत की शुरुआत की. वहीं, आज शुक्रवार को छठ महापर्व का दूसरा दिन है. आज तमाम व्रतियों के घर पर मिट्टी के शुद्ध चुल्हे पर गुड़ व गम्हरी चावल के खीर समेत अन्य व्यंजनों का प्रसाद बनाया जाएगा. संध्या काल में व्रती पारंपरिक तरीके से विधि-विधान के साथ खरना करेंगी. इस दौरान व्रतियों के परिवार के सभी सदस्य घर पर मौजूद रहते हैं.
विधि संपूर्ण होने के बाद छठी माता से आशीष मांगने के बाद प्रसाद गहण करेंगे. यहीं से छठ व्रती महिलाएं व पुरुष 36 घंटे का निर्जला व्रत धारण करेंगे. वहीं, शनिवार को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ दिया जाएगा. जबकि, रविवार को उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के बाद व्रती पारण करेंगे.
व्रतियों ने किया सात्विक भोजन: पुपरी. लोक आस्था व सूर्योपासना की चार दिवसीय महापर्व छठ गुरुवार को नहाय – खाय के साथ शुरू हो गया. व्रतियों ने सुबह-सवेरी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारना किया व बिना लहसुन- प्याज से तैयार शुद्ध व सात्विक भोजन किया. उनके भोजन में अरवा चावल के साथ ही कद्दू की सब्जी शामिल होता है, जिसके चलते बजार में इसकी कीमत में दो से तीन गुना की वृद्धि पायी जाती है.
बताया गया कि खरना के लिए मिट्टी की चूल्हा 150 – 250 रुपये व कद्दू 55 – 110 रुपये तक बिकी. इधर, कृषि वैज्ञानिक डाॅ मनोहर पंजियार व डाॅ सच्चिदानन्द प्रसाद ने कहा कि छठ पर्व में नई फसलों का प्रयोग अधिक होता है, जिसके चलते इसे नव्वान का पर्व भी कहा जाता है.
नहाय खाय से लेकर अर्घ्य देने तक में नयी फसलों का प्रसाद बनता है. खरना में प्रसाद के रूप में जो खीर व रोटी बनती है, उसमें ईख से बना गुड़ व गम्हरी के चावल का प्रयोग किया जाता है. इसके पीछे यह धारणा है कि जो फसल सीधे खेत से निकल कर आती है, वह पूजा के लिए शुद्ध मानी जाती है. तीसरे दिन यानी अर्ध्य के दिन भी जो फल, पकवान ठेकुआ व भुसवा का इस्तेमाल किया जाता है, उसमे भी नई फसलों का प्रयोग किया जाता है. गेहूं, ईख व गुड़, पानी फल सिंघारा, हल्दी, सुथनी व केला की गिनती भी इसी श्रेणी में आते हैं.

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