सीतामढ़ी. मिथिलांचल में सुहाग के लिए नवविवाहिताओं द्वारा मनाया जाने वाला अनोखा पर्व मधुश्रावणी व्रत आज से शुरू हो रहा है. पंडित मुकेश मिश्र के अनुसार, 15 दिनों तक चलने वाले इस अनोखे व्रत-त्योहार में मिथिला क्षेत्र की मैथिल एवं कायस्थ समाज की नवविवाहिताएं अमर सुहाग के लिए प्रतिदिन टोलियां बनाकर सोलह श्रृंगार में सज-धजकर संध्या की बेला में सखियों संग पारंपरिक लोक गीत गाते एवं हंसी-ठिठोली करते गांव के फुलवारियों में फूल लोढ़ने निकलती हैं. इस क्रम में नवविवाहिताएं गांव के ब्रह्म-स्थान, महारानी स्थान, शिवालय व अन्य मंदिरों में जाकर दर्शन एवं परिक्रमा करती हैं. संध्या काल में फूल-पत्तियां एकत्रित कर डाला में सजातीं हैं. इन्हीं बासी फूल-पत्तियों से अगली सुबह सुहाग की लंबी उम्र की कामना के साथ भगवान शिव और माता पार्वती तथा नागवंश की विधिवत पूजा-अर्चना करतीं हैं. इस पर्व में पहले और अंतिम दिन विधि-विधान से शिव-पार्वती का पूजन किया जाता है. नवविवाहिताएं इस दौरान ससुराल से भेजे गये अन्न व सामग्री से बना बिना नमक का भोजन ग्रहण करतीं हैं. — नवविवाहिताओं को सिखायी जाती है सुखद दांपत्य जीवन जीने की कला
मान्यता है कि मधुश्रावणी व्रत में पूजा के दौरान नवविवाहित महिलाएं अपने मायके जाकर वही इस पर्व को मनाती हैं. इस व्रत-पूजन के उपयोग आने वाली सभी चीजें कपड़े, श्रृंगार सामग्री व पूजन सामग्री की व्यवस्था और विवाहिता की भोजन की चीजें भी ससुराल से ही आती है. इन दिनों माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है. ठुमरी व कजरी गाकर देवी पार्वती को प्रसन्न किया जाता है. वहीं, मधुश्रावणी की पूजा के बाद महिला पुरोहित द्वारा मधुश्रावणी से संबंधित विभिन्न कथाओं के माध्यम से नवविवाहिताओं को सुखमय दांपत्य जीवन को सफल बनाने के लिए जीवन जीने की कला सिखायी जाती है.
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