इस तरह तो आत्महत्या को विवश हो जायेंगे

सीतामढ़ी : हर वर्ष किसी न किसी कारण से धान व गेहूं व अन्य फसलों की होती आ रही क्षति से जिले के किसान परेशान हैं. किसानों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि खेती करें अथवा नहीं. करीब-करीब हर किसानों का एक हीं तरह का दर्द है और वह है काफी खर्च […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 8, 2015 8:32 AM
सीतामढ़ी : हर वर्ष किसी न किसी कारण से धान व गेहूं व अन्य फसलों की होती आ रही क्षति से जिले के किसान परेशान हैं. किसानों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि खेती करें अथवा नहीं. करीब-करीब हर किसानों का एक हीं तरह का दर्द है और वह है काफी खर्च के बावजूद लागत पूंजी भी नहीं निकलना. बोखड़ा प्रखंड की बुधनगरा पंचायत के किसान पंकज चौधरी कहते हैं कि अगर इसी तरह फसल की क्षति होती रही तो किसान आत्महत्या करने पर विवश हो जायेंगे.
प्रति एकड़ आठ हजार का घाटा
पंकज चौधरी बताते हैं कि उनके पास पांच एकड़ खेत हैं. इस बार चार एकड़ में गेहूं की खेती किये थे. एक एकड़ में 60 किलो बीज लगा था, जिसकी कीमत हजार रुपया हुआ. प्रति कट्ठा दो-दो किलो यूरिया व डीएपी एवं एक-एक किलो पोटाश व जिंक डाला था. इस पर प्रति एकड़ 2500 रुपये खर्च हुआ. जुताई पर प्रति एकड़ दो हजार एवं तीन पटवन पर 2500 से 3000 तक खर्च हुआ था. यानी प्रति एकड़ गेहूं की खेती पर 9000 रुपया खर्च किये. उपज प्रति कट्ठा चार-पांच किलो हुआ है. प्रति एकड़ उपजे 80 किलो गेहूं का बाजार भाव 960 रुपया होता है.
इस तरह से प्रति एकड़ गेहूं की खेती में आठ हजार रुपया का घाटा हुआ है. चार एकड़ में 32 हजार का घाटा हुआ. सरकार 5600 रुपये की दर से अधिकतम दो एकड़ की क्षति पूर्ति देने की बात कही है. यह पैसा मिलने के बाद भी 20 हजार के घाटा में रहेंगे. खेत पर जाने पर गेहूं की बाली देख कर मन खुश हो जाता था. बाली लंबा था और देखने में स्वस्थ व पुष्ट नजर आता था, पर पछिया हवा व मौसम की मार के चलते गेहूं की फसल भी मारी गयी.
अगर इसी तरह खेती में घाटा होता रहा तो किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो जायेंगे. श्री चौधरी कहते हैं कि सरकार फसल क्षति पूर्ति की बात कहती है, पर यह वादा शत-प्रतिशत धरातल पर नहीं उतर पा रहा है.
फसल बीमा का नहीं मिला लाभ
वे कहते हैं कि दो-तीन वर्षो से फसल बीमा का लाभ नहीं मिला है. केसीसी के खाते से बैंक द्वारा प्रति एकड़ 1250 रुपये की दर से बीमा के प्रीमियम की कटौती कर ली जाती है. जब लाभ देने की बात होती है तो इस मद में आवंटन नहीं होने की बात कही जाती है.
अब उनके जैसे किसान सोचते हैं कि खेती करे अथवा नहीं. खेती नहीं करने पर पेट चलने वाला भी नहीं है. अब चिंता इस बात की है कि जिससे कर्ज लेकर गेहूं की खेती में लगाये थे, वह पैसा कहां से दें. दूसरी चिंता अगली फसल की लगी हुई है. सबसे बुरा हाल में किसान हीं है.

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