… तो उजड़ जायेगा गरीबों का आशियाना

सीतामढ़ी : सरपंच नगीना देवी का आशियाना अब उजड़ जायेगा. हीरा देवी की भी झोपड़ी नहीं बचेगी. जीवछी देवी भी चिंता में डूबी है. कारण कि उसकी भी झोपड़ी उजड़ने वाली है. मुनचुन देवी को चिंता सता रही है कि फूस का घर उजड़ जायेगा तो वह बाल-बच्चों के साथ कहां पर रहेगी. उसे मालूम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2015 6:46 PM

सीतामढ़ी : सरपंच नगीना देवी का आशियाना अब उजड़ जायेगा. हीरा देवी की भी झोपड़ी नहीं बचेगी. जीवछी देवी भी चिंता में डूबी है. कारण कि उसकी भी झोपड़ी उजड़ने वाली है. मुनचुन देवी को चिंता सता रही है कि फूस का घर उजड़ जायेगा तो वह बाल-बच्चों के साथ कहां पर रहेगी. उसे मालूम है कि वह दिन दूर नहीं जब मजदूरी की कमाई से बनायी गयी झोपड़ी अब उजड़ जायेगी. इस तरह की चिंता में मनीता देवी, जयलश देवी व मरछिया देवी समेत अन्य महिला व पुरुष डूबे हुए हैं.

उन्हें पता नहीं चल पा रहा है कि इस विपदा की घड़ी में आखिर करे तो क्या करें?जमीन खाली करने का अल्टीमेटम सरपंच नगीना देवी हो अथवा कोई अन्य, सब के सब बागमती के बांध के किनारे झोपड़ी बना कर शरण लिये हुए हैं. ऐसी बात नहीं कि ये लोग शौक से अथवा जबरन बांध के किनारे रह रहे हैं.

यह उनकी मजबूरी है कि बांध की जमीन पर झोपड़ी बना कर जैसे-तैसे दिन काट रहे हैं. यह मामला रून्नीसैदपुर दक्षिणी पंचायत के मानपुर जौआ गांव का है. विपदा पर विपदा यह गांव चार-पांच वर्ष पूर्व काफी खुशहाल था. अधिकांश लोग मजदूर तबके के हैं. पुरुष पंजाब व अन्य जगहों पर तो महिलाएं घर पर रह कर मजदूरी करती है. करीब पांच वर्ष पूर्व बाढ़ के दौरान बागमती में इतना पानी आया कि बहुत से लोगों का बागमती नदी में चला गया. काफी समय तक लोग सड़कों के किनारे जैसे-तैसे समय गुजारे और बाद में बांध के किनारे झोपड़ी बना कर रहने लगे सो अब तक रह रहे हैं. नदी में मकान व जमीन चले जाने की विपदा से वहां के लोग अब तक उबर नहीं पाये थे कि प्रशासन ने बांध की जमीन खाली करने का अल्टीमेटम देकर उनलोगों की चिंता बढ़ा दी है. पुनर्वास के नाम पर आश्वासन सरपंच पति महेश पासवान कहते हैं कि बाढ़ से करीब 100 घर विस्थापित हुए थे. पुनर्वास के लिए प्रशासन के स्तर से आज तक सिर्फ आश्वासन दिया गया है. एक भी व्यक्ति को एक इंच जमीन नहीं मिली है.

उन सबों को चिंता इस बात की है कि बांध के किनारे से झोपड़ी हटा लेने के बाद आखिर किस जगह नयी झोंपड़ी बनायेंगे. कारण कि जो जमीन थी वो तो नदी में चली गयी है. पुरुष रहते हैं बाहर हीरा देवी व मुनचुन देवी समेत अन्य ने बताया कि विस्थापित परिवार के अधिकांश पुरुष सदस्य बाहर में मजदूरी करते हैं. प्रशासन के आदेश के बाद उन्हें चिंता सता रही है कि महिला होकर वह कहां व कैसे झोंपड़ी खड़ा कर सकेगी. बच्चों की चिंता अलग सता रही है. विस्थापितों में अनुसूचित जाति, महादलित, नुनिया, ततमा, डोम व मेहतर आदि जाति के लोग हैं. चुनाव के इस मौसम में प्रशासन के स्तर से जारी उक्त आदेश से लोगों में आक्रोश है. सरपंच पति महेश पासवान कहते हैं कि जब तक पुनर्वासित नहीं कर दिया जाता है, तब तक बांध की जमीन खाली नहीं करेंगे.

डीएम से नहीं हुई मुलाकात रविवार को सरपंच पति के नेतृत्व में दर्जन से अधिक महिला व पुरुष डीएम से मिलने उनके गोपनीय कार्यालय के गेट पर पहुंचे थे. सरपंच पति ने बताया कि मौजूद गार्ड ने यह कह कर डीएम से नहीं मिलने दिया कि डीएम का आदेश है, वह आवासीय कार्यालय में किसी से नहीं मिलेंगे. विस्थापितों के काफी प्रयास के बावजूद गार्ड ने डीएम तक यह बात नहीं

पहुंचने दी कि कुछ विस्थापित अपना दर्द सुनाने आये हैं. अंत में निराश होकर सभी अपने गांव को लौट गये. बीडीओ का है कहना रून्नीसैदपुर सीओ मृत्युंजय कुमार ने बताया कि विस्थापितों द्वारा बागमती की जमीन का अतिक्रमण कर झोंपड़ी बना लिया गया है. बागमती प्रमंडल के आग्रह पर वरीय अधिकारी के आदेश के आलोक में विस्थापितों को बांध की जमीन खाली करने का आदेश दिया गया है. इस मामले को लेकर हाइकोर्ट में भी एक वाद दायर है. उक्त लोगों से हर हाल में बांध की जमीन खाली करायी जायेगी.

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