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लोकसंस्कृति के महा-उत्सव का पर्व है छठ

लोकसंस्कृति के महा-उत्सव का पर्व है छठ सीतामढ़ी. भारत की लोकसंस्कृति का महा उत्सव का पर्व है छठ, जिसकी पूरी प्रक्रिया ही जन सामान्य के रीति रिवाज के हिसाब से गढ़ी गयी है. इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसे मनाने के लिए किसी भी तरह के विशेष अनुष्ठान की जरूरत नहीं […]

लोकसंस्कृति के महा-उत्सव का पर्व है छठ सीतामढ़ी. भारत की लोकसंस्कृति का महा उत्सव का पर्व है छठ, जिसकी पूरी प्रक्रिया ही जन सामान्य के रीति रिवाज के हिसाब से गढ़ी गयी है. इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसे मनाने के लिए किसी भी तरह के विशेष अनुष्ठान की जरूरत नहीं होती है. शायद यही कुछ कारण है कि इसे लोक आस्था का महापर्व भी कहा जाता है. सादगी और पवित्रता का भी पर्व है छठ, जिसमें पूजा की सामग्री वही होती है, जो भारतीय ग्रामीण परंपरा की दैनिक उपयोग में आती है. बांस का सूप, मिट्टी के बरतन, गन्ना और गन्ने का रस, नारियल, गुड़, चावल व गेहूं से बना प्रसाद और इस सबके साथ मन को गहरे तक छू जानेवाली लोक गीतों की स्वर लहरियां. सामान्य ग्रामीण जनजीवन की परंपरा का पर्व है छठ, जिससे सामाजिक और वैज्ञानिक मान्यताएं गहरे तौर पर जुड़ी है. भारत में यूं भी सभी पर्व किसानों की जीवन परंपरा से जुड़े होते हैं. छठ भी उसी में से एक है. छठ का पर्व आते-आते फसल कट कर खलिहानों में आ जाती है, जिसे सबसे पहले देवों को समर्पित किया जाता है. फिर चाहे इस मौसम में होनेवाली हल्दी की फसल को, मूली की फसल हो अथवा नींबू, कद्दू, चावल और गन्ना.सूर्य की पूजा का महत्वछठ पर्व के मौके पर भगवान सूर्य की पूजा होती है. सूर्य जिन्हें कुछ मान्यताओं में छठी मइया का पुत्र कहा जाता है, तो कुछ मान्यताओं में भाई, लेकिन इन अलग-अलग मान्यताओं में जो एक बात सर्वमान्य है, वह यह कि छठ मइया की पूजा बिना सूर्य की उपासना की नहीं होती. लोक आस्था के महापर्व छठ में सूर्य पूजन का खास महत्व है. छठ पूजन के तीसरे और चौथे दिन भगवान आदित्य की पूजा की जाती है. तीसरे दिन संध्या में अर्घ दिया जाता है और चौथे दिन सुबह उगते सूरज को जल दिया जाता है. छठ के हैं वैज्ञानिक कारण कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि से अगले चार दिन तक एक विशिष्ट खगोलीय संयोग पैदा होता है. इस मौसम में सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में जमा हो जाती है. जो वायुमंडल के कई स्तरों से गुजरते हुए सूर्यास्त व सूर्योदय के वक्त और ज्यादा सघन हो जाती है. माना जाता है कि जल की छाया में इनका प्रकाश देखना फायदेमंद होता है. वहीं इस दौरान जो पराबैगनी किरणें आती है, वह मौसम के बदलाव के चलते वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाती है और धरती पर जो सूर्य की किरण पड़ती है वो सबसे ज्यादा साफ और वातावरण के लिए उपयोगी होती है. पांडवों की विजय को द्रौपदी ने किया था छठज्योतिषाचार्य पंडित शशि भूषण झा के अनुसार, पौराणिक मान्यता यह भी है कि द्रौपदी के छठ पूजा के फल से ही पांडवों को युद्ध में विजय और राज्य प्राप्त हुआ था. इसके अलावा पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेद माता गायत्री का जन्म हुआ था. प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करनेवाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया है. छठ पूजा में मिट्टी के बने हाथी चढ़ाये जाते हैं, जो इस पर्व के माध्यम से प्रकृति की अद्भुत जीव के संरक्षण का संदेश देती है.

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