लापरवाही. एसपी के पत्राचार पर गंभीर नहीं हो रहा स्वास्थ्य विभाग, अनुसंधानकर्ता भी गंभीर नहीं
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जख्म प्रतिवेदन को बना लिया कमाई का जरिया!
लापरवाही. एसपी के पत्राचार पर गंभीर नहीं हो रहा स्वास्थ्य विभाग, अनुसंधानकर्ता भी गंभीर नहीं थाने से लेकर अस्पताल तक फैला है काला कारोबार जांच प्रतिवेदन के खेल में सजा भुगत रहे निर्दोष भी पर्यवेक्षण में वरीय अधिकारियों को हो रही दिक्कत नियमानुकूल दर्ज नहीं हो रही प्राथमिकी सीतामढ़ी : जख्म प्रतिवेदन (इंज्यूरी रिपोर्ट) को […]
थाने से लेकर अस्पताल तक फैला है काला कारोबार
जांच प्रतिवेदन के खेल में सजा भुगत रहे निर्दोष भी
पर्यवेक्षण में वरीय अधिकारियों को हो रही दिक्कत
नियमानुकूल दर्ज नहीं हो रही प्राथमिकी
सीतामढ़ी : जख्म प्रतिवेदन (इंज्यूरी रिपोर्ट) को कमाई का जरिया बना लिया गया है. जिसका परिणाम है कि जख्म प्रतिवेदन के काले खेल का फायदा उठा कर शातिर से शातिर अपराधी लाभ ले रहे है. समय पर जख्म प्रतिवेदन नहीं आने के कारण बदमाशों को न्यायालय से जमानत मिल जा रही है.
वहीं निर्दोष व पीड़ित पक्ष न्याय के लिए लंबे समय तक सदर अस्पताल, न्यायालय व थाना का चक्कर काटते रह जाते है. उन्हें समय पर न्याय नहीं मिल पाता है. ऐसा नहीं कि स्वास्थ्य विभाग के लापरवाही से जिला पुलिस व न्यायालय अवगत नहीं है.
जिला निगरानी समिति की बैठक में जिला जज के सामने भी यह समस्या आ चुकी है. जिस कारण जिला जज की ओर से एसपी के माध्यम से मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी को पत्र भेज कर समय पर जख्म प्रतिवेदन उपलब्ध कराने का स्पष्ट निर्देश दिया जा चुका है, लेकिन स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है.
सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज भी सदर अस्पताल में एक सौ से अधिक जख्म प्रतिवेदन लंबित है. क्या ऐसे में दोषी को जेल व निर्दोष का समय पर बेल की उम्मीद की जा सकती है. जानकार बताते है कि जख्म प्रतिवेदन को कमाई का जरिया बना लिया गया है. जिसका तार अस्पताल से लेकर अनुसंधानकर्ता तक जुड़ा हुआ है.
50 दफा लगा चुके है सदर अस्पताल का चक्कर: उदाहरण के तौर पर बथनाहा के महेंद्र राम व नगर थाना के मुरलियाचक निवासी मो असलम अब तक जख्म प्रतिवेदन के लिए 50 दफा चक्कर काट चुके है. उनका कहना है कि वे जानते है कि सदर अस्पताल से पीड़ित पक्ष को जख्म प्रतिवेदन नहीं दिया जाता है.
इस कारण वे जख्म प्रतिवेदन लेने नहीं आते है, बल्कि जख्म प्रतिवेदन बना देने के लिए सदर अस्पताल के चिकित्सक के पास चक्कर लगा रहे है. यहां पर बताया जाता है कि उनके जख्म प्रतिवेदन बनाने वाले चिकित्सक डॉ नवीन उत्पल यहां प्रतिनियुक्ति पर थे. वे अब अपने पुराने स्थान पर चले गये है. अब नतीजा यह है कि न्यायिक प्रक्रिया बाधित हो रही है.
कानून के प्रति जगेगा भरोसा: वरीय अधिवक्ता विमल शुक्ला का भी कहना है कि समय पर जख्म प्रतिवेदन उपलब्ध होने से न्यायिक प्रक्रिया सरल व न्याय संगत होती है. पीड़ित पक्ष को समय पर इंसाफ मिलता है. जिससे कानून के प्रति भरोसा बढ़ता है.
चिकित्सक को समय पर जख्म प्रतिवेदन उपलब्ध करा कर अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए.
सदर अस्पताल में धूल फांक रहे 639 जख्म प्रतिवेदन
जख्म प्रतिवेदन को लेकर अनुसंधानकर्ता की भी घोर लापरवाही उजागर हुई है. चिकित्सकों के अलावा अनुसंधानकर्ता भी जख्म प्रतिवेदन को प्राप्त करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे है. जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण सदर अस्पताल में बन कर तैयार रहने के बाद भी 639 जख्म प्रतिवेदन धूल फांक रहा है. विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 2014 से 180 जख्म प्रतिवेदन बन कर तैयार है. इसी प्रकार 2015 से 229 व चालू वर्ष में 230 जख्म प्रतिवेदन बन कर तैयार है.
जिसे प्राप्त करने में रुचि नहीं दिखायी जा रही है.
क्या है नियम: बताया जाता है कि जख्म प्रतिवेदन को अस्पताल में इलाज कराये जाने के दौरान ही बना देना है. उसी आधार पर थाना में प्राथमिकी दर्ज किया जाना है. ताकि जख्म प्रतिवेदन के आधार पर भादवि की विभिन्न धाराओं को लगाया जा सके. ताकि दफाओं को जमानतीय या गैर जमानतीय करने की संभावना न हो. समय पर जख्म प्रतिवेदन नहीं मिलने का परिणाम होता है कि अभियुक्तों को जख्म प्रतिवेदन को सामान्य या पीड़ित पक्ष का कठोर करने का मौका मिल जाता है. वे जुगाड़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते है. अगर नियम का पालन किया जाता है, तो जख्म प्रतिवेदन में छेड़छाड़ की संभावना समाप्त हो जाती है. जख्म प्रतिवेदन के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करना भी थाना की मजबूरी हो जायेगी.
लोक अभियोजक अरुण कुमार सिंह स्पष्ट तौर पर कहते है कि जख्म प्रतिवेदन को लेकर स्वास्थ्य विभाग अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं कर रहा है. वे खुद इसके गवाह है. कारण है कि अपने कर्तव्य के निर्वाह में प्रतिदिन इस समस्या का सामना कर रहे है. निगरानी समिति की बैठक में जिला जज ने भी इस पर संज्ञान लेते हुए एसपी के माध्यम से मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी को पत्राचार कर जख्म प्रतिवेदन समय पर उपलब्ध कराने का स्पष्ट निर्देश दे चुके है.
इस कर्तव्यहीनता को लेकर प्राथमिकी दर्ज करने का नियम भी है. जख्म प्रतिवेदन समय पर उपलब्ध नहीं होने के कारण पक्ष या विपक्ष अपनी बातों का समय पर न्यायालय में नहीं रख पाता है.
अपराधी के खिलाफ समय पर साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें लाभ मिल जाता है. बेल की सुनवाई हो रही तो जख्म प्रतिवेदन के अभाव में जमानत मिल जाती है. पुलिस विभाग के पर्यवेक्षण पदाधिकारी भी जख्म प्रतिवेदन के अभाव में उचित समय पर निर्णय नहीं ले पाते. लोक अभियोजक श्री सिंह, स्वास्थ्य विभाग के इस दलील को सिरे से खारिज करते है कि चिकित्सकों की कमी से जख्म प्रतिवेदन में विलंब होता है. कहते है कि कोई न कोई चिकित्सक तो पीड़ित का इलाज करता है, उसी वक्त जख्म प्रतिवेदन भी बनाया जा सकता है.
देरी ठीक नहीं
एसपी हरि प्रसाथ एस ने कहा कि जख्म प्रतिवेदन को लेकर न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब होता है. जख्म प्रतिवेदन को समय पर उपलब्ध कराने के लिए मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी को पत्राचार किया जाता रहा है. अभी हाल में स्थित में थोड़ा-बहुत सुधार हुआ है, लेकिन संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है.
अगर जख्म प्रतिवेदन बनने के बाद भी तैयार है और उसे अनुसंधानकर्ता प्राप्त नहीं कर रहे है, तो जांच कर अनुसंधानकर्ता पर भी विभागीय कार्रवाई की जायेगी.
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