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प्रगति के पथ पर सीमरा

बदलते गांव. शराबबंदी के बाद गांवों में बढ़ी बचत की प्रवृित्त सीमरा के लोगों ने कहा, लोगों की जीवनशैली में आया सुधार, समय के महत्व को समझने लगे युवा सीतामढ़ी : ग्रामीण सगरी राय, जगदीश राय, मो इसलाम, विजय चौधरी, विनोद पासवान, गणेश दास व सकलदेव राय बताते हैं कि एक दशक के अंदर गांव […]

बदलते गांव. शराबबंदी के बाद गांवों में बढ़ी बचत की प्रवृित्त

सीमरा के लोगों ने कहा, लोगों की जीवनशैली में आया सुधार, समय के महत्व को समझने लगे युवा
सीतामढ़ी : ग्रामीण सगरी राय, जगदीश राय, मो इसलाम, विजय चौधरी, विनोद पासवान, गणेश दास व सकलदेव राय बताते हैं कि एक दशक के अंदर गांव के लोगों का रहन-सहन पूरी तरह बदल गया है. ग्रामीणों की आर्थिक स्थित मजबूत हुई है. अधिकांश घर में बिजली, पानी व शौचालय समेत अन्य बुनियादी सुविधा उपलब्ध हुई है. शिक्षा को लेकर घर-घर में जागरूकता आयी है.
खेती में रुचि नहीं लेने वाले गांव के युवक प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं. इंदिरा आवास, व‍ृद्धावस्था पेंशन, कन्या विवाह योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, विधवा पेंशन व शौचालय प्रोत्साहन राशि अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ मिला है. गांव की मुख्य सड़क पीसीसी हुई है. गांव की अधिकांश सड़कों का पक्कीकरण व नाला निर्माण हो चुका है.
शराबबंदी से बदला माहौल, बचत भी बढ़ी : कहा कि, शराबबंदी से गांव का माहौल काफी बदला है. झगड़ा-झंझट समाप्त हुआ है. शांति का वातावरण बना रहता है. घर में बचत भी बढ़ गयी है. सूर्यास्त के बाद पियक्कड़ों के भय से चौक-चौराहों पर जाने से कतराते थे, अब जाने लगे हैं. इससे गांव के लोगों को शाम में एक-दूसरे के साथ बैठ कर सुख-दु:ख की बात करने का मौका भी मिलता है. जागरूकता ऐसी आयी है कि गांव के युवक भी समय का महत्व समझने लगे हैं. अब वे अपना समय शिक्षा या जीवकोपार्जन में लगा रहे हैं.
1996 तक रही बुजुर्गों की सरदारी
बताते है कि 1982 तक पूर्वज ख्याली राय, शिवधर राय, नथुनी राय, मो सटहु, रामधारी साह, रामशरण राय, मो रहमान, जगरनाथ पासवान, रामनंदन राय, बंगाली राय, दारोगा राय व दिनकर राय ने पूरे गांव को एकता व भाईचारा के बंधन में बांध कर रखा. गांव के लोग उनकी सरदारी भी मानते थे.
पूर्वजों के आदेश को भगवान का आदेश माना जाता था. साफ-सफाई को लेकर भी काफी जागरूकता थी. जिला प्रशासन से स्वच्छता को लेकर गांव को इनाम भी मिला था. वे लोग गांव में घूम-घूम कर देखते थे कि गरीबी के कारण किसी घर में चूल्हा तो नहीं बंद है. ऐसे लोगों की मदद की जाती थी. दूसरी पीढ़ी की कमान रामदेव राय, वकील मियां, रामदेव राय, रामनंदन राय, चुल्हाई राय, रामसेवक राय, रामवृक्ष पासवान, रामाशीष चौधरी, रामपुकार पासवान, लक्ष्मण लाल कर्ण, मो इकबाल, मो हमीद व मो सदिक को मिली. वे लोग भी बेहतर काम करते हुए गांव के आपसी विवाद को गांव में सुलझाते रहे, लेकिन 1996 के बाद पूर्वजों के सरदारी मानने की परंपरा में गिरावट होती चली गयी. इस कारण अब छोटी-छोटी बातों के लिए लोग थाना व कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं.
क्या कहते हैं मुखिया पुत्र : मुखिया पुत्र गौरी यादव कहते है कि वे अपने कार्यकाल में गांव के विकास के साथ-साथ बड़े-बुजुर्गों के मान-सम्मान का माहौल बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं. बुजुर्गों के मार्गदर्शन के बिना किसी भी गांव का तो दूर किसी घर का विकास भी संभव नहीं है. गांव के कई मामले अब आपसी पंचायत कर सलटाने का सिलसिला शुरू हो गया है. आनेवाले समय में पुन: एक बार पुराना माहौल देखने को मिलेगा.
शासन व सत्ता के साथ-साथ गांव-गांव में परिवर्तन की बयार बही है. गांव में परिवर्तन को लेकर प्रभात खबर की टीम ने जिला मुख्यालय से सटे परोहा पंचायत अंतर्गत सीमरा गांव में पड़ताल की. ग्रामीणों ने कहा कि एक दशक के अंदर कुछ अच्छा, कुछ बुरा भी हुआ है. यह स्पष्ट तौर पर कहा कि गांव में खुशहाली आयी है, लेकिन बुजुर्गों की सरदारी खत्म हो गयी है.

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