घट रही जमीन की उर्वरा शक्ति

अलर्ट. पॉलीथिन का उपयोग जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा सीतामढ़ी : प्रदूषण आज मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. पॉलीथिन का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में निरंतर किए जा रहे हैं, जो बेहद खतरनाक है. दुकानदार हमसे पूछे बिना ही पॉलीथिन में सामान पैक कर हमे थमा दे रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2017 4:23 AM

अलर्ट. पॉलीथिन का उपयोग जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा

सीतामढ़ी : प्रदूषण आज मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. पॉलीथिन का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में निरंतर किए जा रहे हैं, जो बेहद खतरनाक है. दुकानदार हमसे पूछे बिना ही पॉलीथिन में सामान पैक कर हमे थमा दे रहे हैं. जानकारों की मानें तो विश्व में प्रतिवर्ष करीब पांच सौ अरब व प्रति मिनट करीब एक लाख से भी अधिक पॉलीथिन का उपयोग हो रहा है. आज भारत पॉलीथिन उपयोग में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है.
पॉलीथिन थैलियां जो अनुपयोगी होने के बाद नष्ट नहीं हो पाती हैं, उनसे ही हमारा पर्यावरण सबसे अधिक दूषित होता है. आज स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि आकाश से लेकर जमीन व जलस्रोतों में भी पॉलीथिन के बैग तैरते व उड़ते नजर आते हैं. शहर में हर ओर पॉलीथिन ही बिखरी नजर आती है. ऐसी थैलियों पर कीटाणुओं व बैक्टीरिया उत्पन्न होने से खतरनाक बीमारियों को प्रश्रय मिल रहा है.
पॉलीथिन से लाखों पशु-पक्षियों की हो रही मौत : पॉलीथिन के छोटे से लेकर बड़े पैक कचरों में तब्दील होने के बाद उसे यत्र-तत्र फेंके जा रहे हैं, जिससे हमारे आसपास का वातावरण दूषित होता जा रहा है. इसे जलाने से निकलने वाला धुआं ओजोन परत को नुकसान पहुंचाता है जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है. पॉलीथिन के प्रयोग से प्रतिवर्ष लाखों पशु-पक्षियों की मौत हो रही है, जो पर्यावरण सुरक्षा के लिए काफी अहम है. इसके अलावा जमीन की उर्वरा शक्ति कम होने के साथ ही भूगर्भीय जलस्रोत दूषित हो रहे हैं.
पॉलीथिन कचरा जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड व डाईऑक्सींस जैसी विषैली गैस उत्सर्जित होती है. इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारियां होने की आशंका रहती है. पॉलीथिन को ऐसे ही फेंक देने से नालियां जाम हो जाती है और नालियों कर गंदा पानी सड़कों पर बहकर मच्छरों को जन्म देता है और यह कालरा, टाइफाइड, डायरिया व हेपेटाइटिस-बी जैसी घातक बीमारियों का कारण बनता है. इसलिए वक्त आ गया है कि पर्यावरण की सुरक्षा कर हम अपने व आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा करें.
बैन से संबंधित कोई आदेश नहीं: सूबे के विभिन्न नगर निकायों में पॉलीथिन पर वर्षों से बैन लगाया गया है, लेकिन नगर परिषद, सीतामढ़ी में इसको लेकर कोई आदेश जारी नहीं किया गया है. शायद यही कारण है कि स्थानीय लोग पर्यावरण की चिंता किए बगैर धड़ल्ले से पॉलीथिन का प्रयोग करते हैं. उन्हें रोकनेवाला कोई नहीं है. इस संबंध में नगर परिषद के निवर्तमान सभापति सुवंश राय ने बताया कि पॉलीथिन के प्रयोग पर बैन के लिए कोई लिखित आदेश जारी नहीं किया गया है.
पर्यावरण दिवस आज
प्रतिवर्ष पांच सौ अरब व प्रति मिनट एक लाख से अधिक पॉलीथिन का हो रहा उपयोग
दूषित हो रहा है भूगर्भीय जल स्रोत
शहर में बिखरा रहता है प्रदूषण
को जन्म देनेवाला पॉलीथिन
अपने घर से करनी होगी शुरुआत
डॉ प्रतिमा आनंद, पर्यावरण के जानकार : आधुनिक युग में सुविधाओं के विस्तार ने सबसे अधिक पर्यावरण को ही चोट पहुंचा रही है. लोगों की सुविधा के लिए इजाद किया गया पॉलीथिन आज मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है. नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरा क्षमता को खत्म कर रहा है औ भूजल स्तर को घटा रहा है.
शिवेश कुमार, सदस्य, आरोग्या : पॉलीथिन का प्रयोग सांस व त्वचा संबंधी बीमारियों के साथ ही कैंसर का खतरा भी बढ़ा रहा है. यह गर्भस्थ शिशु के विकास को भी रोकता है. पॉलीथिन को जलाने से निकलने वाला धुआं ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहा है जो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण है. प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है. इससे गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचाता है.
राहुल रंजन, सदस्य लायंस क्लब जेनेक्स : पॉलीथिन का कचरा जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड व डाईऑक्सींस जैसी विषैली गैस उत्सर्जित होती है. इससे सांस व त्वचा समेत विभिन्न बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए वक्त आ गया है कि हम अपने आसपास के पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पॉलीथिन के उपयोग का बहिष्कार करें.
डॉ आलोक कुमार, जोन चेयरपर्सन, लायंस क्लब इंटरनेशनल : बड़े पैमाने पर हो रहे प्लास्टिक व पॉलीथिन ने इंसान की मुश्किलें बढ़ा दी है. कभी न सड़ने वाली प्लास्टिक की पन्नियों से शहर के नाले जाम हो जाती है. वहीं इसका बेधड़क प्रयोग लोगों को बीमार बना रहा है. ऐसे में इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की जरूरत समय की मांग है. हमे अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूक होना होगा और आसपास के लोगों को भी पॉलीथिन का प्रयोग करने से रोकने का प्रयास करना चाहिए.
डॉ एसके वर्मा, अध्यक्ष, आरोग्या फाउंडेशन : पॉलीथिन व प्लास्टिक गांव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं. शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलीथिन से भरा मिलता है. इसके चलते नालियां जाम हो जाता है. प्लास्टिक गिलासों में चाय या फिर गर्म दूध का सेवन करने से उसका केमिकल लोगों के पेट में चला जाता है और इससे डायरिया के साथ ही अन्य गंभीर बीमारियां होती है. ऐसे में प्लास्टिक के गिलासों या पॉलीथिन का प्रयोग काफी खतरनाक है. इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा के लिए समाज के सभी वर्ग के लोगों को आगे आना होगा.

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