Loading election data...

29 अगस्त 1942 को रीगा के चार दीवानों ने आजादी के लिए दे दी थी शहादत

देश को आजादी दिलाने में जिले के दर्जनों आजादी के दीवानों का बड़ा रोल रहा था. जिले के कोने-कोने से उस वक्त के वीर सपूतों ने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

By Prabhat Khabar News Desk | August 28, 2024 9:26 PM

सीतामढ़ी. देश को आजादी दिलाने में जिले के दर्जनों आजादी के दीवानों का बड़ा रोल रहा था. जिले के कोने-कोने से उस वक्त के वीर सपूतों ने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. करीब ड़ेढ़ दर्जन लोगों ने आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी. इनमें जिले के रीगा प्रखंड क्षेत्र के मथुरा मंडल, मौजे झा, सुखराम महरा व ननू मियां शामिल थे. बाजपट्टी, पुपरी व सुरसंड क्षेत्र में अंग्रेजी पुलिस एवं आजादी के दीवानों के साथ भिड़ंत में कई स्वतंत्रता सेनानियों के शहादत से अंग्रेजों के खिलाफ जिले भर में आक्रोश की चिंगारी भड़क चुकी थी. 29 अगस्त 1942 को आंदोलनकारियों ने रीगा रेलवे स्टेशन को कब्जे में लेकर तिरंगा झंडा फहरा दिया. आंदोलन का नेतृत्व करते हुए रेल की पटरी उखाड़ने तथा टेलीफोन का तार काटते समय रीगा शेरवा टोला निवासी मौजे झा व सुखराम महरा फिरंगी पुलिस की गोलियों के शिकार होकर अपनी शहादत दे दी. पुलिस की गोली से घायल मेजरगंज के ननू मियां दो महीने बाद शहीद हो गए थे. बभनगामा के रामनिहोरा मंडल ने छात्रों की टोली का नेतृत्व किया था. रीगा के प्रमुख आंदोलनकारियों में रीगा गांव निवासी मोहनलाल शर्मा, रामाशीष मंडल व रघुनाथ मंडल इत्यादि थे. रेवासी गांव में भी अंग्रेजी पुलिस व आंदोलनकारियों के बीच भयंकर मुठभेड़ हुआ था, जिसमें पुलिस की गोली से रेवासी के मथुरा मंडल शहीद हो गए. वहीं, राजाराम मंडल, लीला मंडल, रकटू मंडल, सूरज कुर्मी, बंगाली मंडल, यमुना मेहता, नेवी मंडल, नंदलाल मेहता, बुनीलाल राय, सहदेव राय, सुंदर मेहता इत्यादि कई आंदोलनकारी घायल हुए थे. शहीद रामफल मंडल के जीवनी के लेखक व जिले के गुमनाम अमर शहीदों के शोधकर्ता शिक्षाविद बिनोद बिहारी मंडल ने सरकार, प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों पर शहीदों एवं उनके परिवार के प्रति उपेक्षा का आरोप लगाया है.

27 अगस्त को शहीद सुंदर खतवे को पेड़ से लटकाकर अंग्रेजों ने दे थी फांसी

सीतामढ़ी. जिले के सुरसंड प्रखंड अंतर्गत रघरपुरा गांव के जयसुंदर खतवे उर्फ सुंदर खतवे को जुल्मी अंग्रेजी पुलिस द्वारा 27 अगस्त 1942 को बनौली चौक पर गर्दन में रस्सी डालकर बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गयी थी. गुमनाम शहीदों के शोधकर्ता शिक्षाविद बिनोद बिहारी मंडल ने बताया कि देश में सबसे बड़ा घोटाला इतिहास का हुआ है. इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नों से फांसी को गले लगाने वाले शहीदों को भुला दिया. सुरसंड क्षेत्र के प्रमुख आंदोलनकारी में लक्ष्मी गुप्ता, परमेश्वर मेहता, सैयद मीरपुरावत हुसैन, शफी दाऊदी, अधनु पासवान, तुरूप झा, बनइ राऊत, दामोदर झा, बुझावन मंडल, विष्णु मेहता, रामखेलावन झा, लक्ष्मण साह, निरशु झा विप्र, महादेव राऊत, विष्णु दयाल चौधरी, विंध्याचल राऊत, यदू साह, द्वारिका लाट, रामचरित्र ठाकुर, मक्खन साह, महेंद्र ठाकुर, बिंदा प्रसाद शाही, सिया मंडल इत्यादि शामिल थे. रघरपूरा गांव निवासी सुंदर खतवे इलाके के नामी पहलवान थे. आजादी के दीवानों की हिम्मत पस्त करने के उद्देश्य से अंग्रेजी पुलिस ने सुंदर खतवे के गर्दन में रस्सी का फंदा डालकर बनौली गांव स्थित सड़क किनारे एक पेड़ से लटका कर शहीद कर दिया था, लेकिन आज शहीद सुंदर खतवे का एकमात्र पोता मलहु मंडल का परिवार जिल्लत की जिंदगी जी रहा है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version