सीतामढ़ी. डुमरा प्रखंड के हरि छपरा स्थित श्री सीताराम नाम सुखधाम आश्रम श्री मुठिया बाबा की कुटिया में आयोजित नौ दिवसीय श्री सीताराम नाम रूप लीला धाम महायज्ञ के आठवें दिन भी दिव्य संगीतमय कथा जारी रहा. कथा के आठवें दिन श्री जानकी जी के जीवन चरित्र में राम नाम की महिमा का वर्णन किया गया. लुधियाना से पधारे हुए पुनित जी महाराज भक्तमाली ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रभु चरणों का आश्रय ही हमें किसी भी स्थिति में प्रसन्न रहना सिखाता है. आश्रय जिस अनुपात में होगा, हमारी प्रसन्नता और अप्रसन्नता भी उसी अनुपात में होगी. जीवन बहुत अनमोल है, इसे तो उत्सव बनाकर जिया जाना चाहिए. जिस जीवन में कोई प्रसन्नता ही नहीं, वह जीवन कभी उत्सव भी नहीं बन सकता है. उत्सव का अर्थ जीवन के उन क्षणों से है, जिन क्षणों में हम भीतर से प्रसन्न रहते हैं, इसलिए सही अर्थों में समझा जाए, तो प्रसन्नता ही जीवन का उत्सव है. बहुत बड़ी संपत्ति का अर्जन भी प्रसन्नता का आधार नहीं है, अपितु प्रभु चरणों का दृढ़ाश्रय ही हमारी प्रसन्नता का आधार है. प्रत्येक क्षण निराशा एवं कुंठा में होने का अर्थ है जीवन का समाप्त हो जाना, इसलिए प्रसन्नता और उल्लास में जीना ही जीवन है.कथा में अयोध्या, वृंदावन, चित्रकूट, जनकपुर धाम व अन्य आदि क्षेत्रों से साधु-संतों समेत श्री जानकी शरण जी महाराज, चंदन कुमार, दिनेश प्रसाद, राम रसिक शरण जी, कथा के मुख्य यजमान डॉ रामबरन सिंह तथा मृदुल सखी, द्वितीय यजमान डॉ घनश्याम पमरा, माधव दास, मैथिली शरण, अवधेश कुमार शरण, महंत दिनेश दास, महंत रामेश्वर दास, रामबालक दास, लालबाबू मुखिया, कामेश्वर, वृंदावन धाम के रामानुज, अवधेश शरण जी व महंत भूषण दास समेत बड़ी संख्या में साधु-संत व आम श्रद्धालु शामिल थे.
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