रसायनिक तरीके की तुलना में प्राकृतिक खेती का परिणाम बेहतर
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक डॉ केशव कुमार ने गुरुवार को कृषि विज्ञान केंद्र बलहा मकसूदन सीतामढ़ी के
पुपरी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक डॉ केशव कुमार ने गुरुवार को कृषि विज्ञान केंद्र बलहा मकसूदन सीतामढ़ी के द्वारा चलाए जा रहे प्राकृतिक खेती के विभिन्न प्रदर्शन इकाइयों का निरीक्षण किया. इस क्रम में डाॅ कुमार ने सर्वप्रथम कृषि विज्ञान केंद्र अवस्थित प्राकृतिक खेती के विभिन्न घटक जीवमृत, बीजामृत, दशपरनी अर्क, घन जीवमृत व ब्रह्मस्त्र के उत्पादन इकाई का जायजा लिया. उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्राकृतिक खेती काफी महत्वपूर्ण हो गया है. इसके माध्यम से मिट्टी की उर्वरता, मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की प्रतिशत मात्रा को बढ़ाया जा सकता है जो टिकाऊ खेती के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इस प्रकार की खेती का प्रचार- प्रसार जिला स्तर पर करने की आवश्यकता है. पुनः डॉ केशव कुमार एवं डॉ राम ईश्वर प्रसाद केंद्र के अन्य वैज्ञानिकों के साथ सुरसंड प्रखंड के बिररख गांव में प्राकृतिक एवं रसायनिक तरीके से किये गए मूंग की खेती का तुलनात्मक अध्ययन किया. पाया कि प्राकृतिक खेती द्वारा किये गए मूंग की फसल बेहतर है. केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ प्रसाद कहा कि बिररख के अलावा अन्य पांच छह गांव में प्राकृतिक खेती के तहत जीरो टिलेज मशीन से मूंग की बुवाई की गई है, जिसमें खरपतवार काफी कम निकला है. जबकि जुताई वाले खेत में काफी अधिक खरपतवार निकला है. लिहाजा इस तकनीक को व्यापक पैमाने पर प्रचार- प्रसार करने की जरूरत है. डॉ केशव कुमार ने किसानों को बताया कि प्राकृतिक खेती के विभिन्न अवयवों का प्रयोग विभिन्न फसलों में नियमित रूप से करने की जरूरत है. ताकि फसलों को कीड़े एवं रोगों से बचाया व रसायनिक दवाओं के प्रयोग को कम किया जा सके. निरीक्षण के दौरान प्राकृतिक खेती के नोडल अधिकारी सच्चिदानंद प्रसाद व उद्यान वैज्ञानिक मनोहर पंजीकार समेत अन्य मौजूद थे.
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