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एनडीए के परंपरागत वोटों में सेंधमारी करने में सफल रहा राजद

लोकसभा का चुनाव समाप्त हो गया. हार- जीत स्पष्ट हो गया. इस बीच, हर चौक चौराहों, होटल और बुद्धिजीवियों के बीच चुनावी हार-जीत पर चर्चाएं की जा रही है.

सीतामढ़ी. लोकसभा का चुनाव समाप्त हो गया. हार- जीत स्पष्ट हो गया. इस बीच, हर चौक चौराहों, होटल और बुद्धिजीवियों के बीच चुनावी हार-जीत पर चर्चाएं की जा रही है. सभी के अपने-अपने तर्क होते है. चर्चा में खास तौर पर एनडीए प्रत्याशी देवेश चंद्र ठाकुर है. चूंकि वे निर्वाचित हुए है. सबसे अधिक चर्चा ठाकुर के राजद प्रत्याशी अर्जुन राय से काफी कम मतों के अंतर से जीत पर की जा रही है.

— जीत में वोटों के अंतर से एनडीए चिंतित

ठाकुर भले ही चुनाव जीतने में सफल रहे है, पर जीत में वोटों का अंतर काफी कम रहने से एनडीए चिंतित है. वैसे ठाकुर भी इस विषय पर जरूर सोचते होंगे कि आखिर एनडीए का परंपरागत वोट हाथ से कैसे चला गया. चुनावी जानकारों का कहना है कि “अगर ठाकुर को एनडीए का परंपरागत पूरा वोट मिला गया होता, तो जीत का आंकड़ा डेढ़ लाख वोट से भी अधिक का होता.

— परंपरागत वोट में बड़ी से सेंधमारी

जानकर कहते है कि कुशवाहा और वैश्य वोटर लम्बे अरसे से एनडीए के वोटर माने जाते रहे है. तभी तो वर्ष 2014 में पूर्व सांसद रामकुमार शर्मा करीब ढ़ाई लाख, तो 2019 में पूर्व सांसद सुनील कुमार पिंटू डेढ़ लाख से अधिक मतों से जीते थे. एनडीए की जीत में कुशवाहा व वैश्य वोटरों की हमेशा से अहम भूमिका रही है. ठाकुर का मात्र 51 हजार मतों से निर्वाचित होने के पीछे माना जा रहा है कि एनडीए के परंपरागत कुशवाहा और वैश्य वोटरों में बड़ी सेंधमारी कर ली गई. चर्चा है कि पूर्व राजद विधायक सुनील कुशवाहा ने अपने स्वजातीय वोटरों को इस बार अधिक टूटने नही दिया और खासकर डुमरा/बथनाहा के कुशवाहा वोटरों में से अधिकांश को राजद प्रत्याशी के पक्ष में करने में सफल रहे. यही कारण है कि ठाकुर के जीत में मतों का वह आंकड़ा नहीं रहा, जीतने से शर्मा और पिंटू जीते थे.

–वैश्य वोटरों की नाराजगी भी फैक्टर

ठाकुर के कम मतों से जितने के पीछे वैश्य वोटरों की नाराजगी भी एक बड़ा फैक्टर माना जा रहा है. सबों को मालूम है कि सीतामढ़ी लोस से सुनील कुमार पिंटू व शिवहर लोस से रमा देवी का इस बार टिकट काट दिया गया था. ये वैश्य नेता है. एक साथ दो नेताओं का टिकट कटने से वैश्य समुदाय में नाराजगी थी और इस नाराजगी को भी ठाकुर के कम मतों से जितने से जोड़ कर देखा जा रहा है. कुछ ऐसा हालात तब हुआ था, जब भाजपा से अवनीश कुमार सिंह चुनाव मैदान में उतरे थे. तब एक खास वर्ग के वोटरों ने उनका साथ नहीं दिया था और वे चुनाव हार गए थे. उक्त खास वर्ग का वोटर एनडीए का कोर वोटर माना जाता रहा है.

बहरहाल, कुशवाहा/वैश्य वोटों में अधिक हिस्सेदारी नही मिल पाने से एनडीए चिंतित है और इसका प्रभाव आगामी चुनावों में भी पड़ सकता है.

— सवर्ण वोटरों का मिला पूरा साथ

परंपरागत वोटरों में बड़ी सेंधमारी के बावजूद ठाकुर के 51 हजार मतों से जितने के पीछे जानकर कहते है कि सवर्ण वोटरों ने खुलकर ठाकुर का साथ दिया है. ऐसी बात नहीं है कि कुछ सवर्ण नेता/वोटर किसी न किसी कारण से ठाकुर से नाराज नहीं थे. फिर भी वे पूरा दिल खोलकर ठाकुर का साथ दिए है. दरअसल, सवर्णों को एक बात पता था कि चार दशक से अधिक समय बाद किसी सवर्ण (देवेश चंद्र ठाकुर) को टिकट मिला है. अगर ठाकुर का साथ नही दिया जायेगा, तो भविष्य में कोई भी दल किसी सवर्ण को टिकट देने में सौ बार सोचेगा. वैसे सवर्ण वोटरों पर एनडीए का ही काफी पहले से कब्जा रहा है.

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