सीतामढ़ी. लक्ष्मी स्वरूपा मां सीता की प्राकट्य भूमि, पुनौरा धाम में जानकी नवमी के पावन अवसर पर पिछले 15 वर्ष से आयोजित होने वाले तुलसीपीठाधीश्वर रामानंदाचार्य जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज की दिव्य श्रीराम कथा गुरुवार की देर संध्या को प्रारंभ हो गयी. हालांकि, कथा संध्या छह बजे से शुरू होनी थी और जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज को दोपहर से पूर्व पुनौरा धाम पहुंचना था, लेकिन जगद्गुरु शाम करीब 7.00 बजे पुनौरा धाम पधारे. लंबी यात्रा के कारण वे अपने विश्राम गृह में चले गए. इधर, उनके आगमन और श्रीराम कथा सुनने के लिए उनके शिष्य व आम श्रद्धालु पुनौरा धाम में डटे रहे. रात करीब 8.30 बजे जगद्गुरु सीता प्रेक्षागृह स्थित कथा मंच पर पहुंचे. मुख्य यजमान जानकी नंदन पांडेय सपत्निक श्री राम चरित मानस व सद्गुरुदेव की विधि पूर्वक पूजा की. जगद्गुरु के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास ने सर्व प्रथम संबोधित करते हुए कहा कि गुरुदेव के आगमन के साथ शीतल पवन का आनंद उत्पन्न हो गया है. जानकी जी ने प्रसन्न होकर ऐसा कराया है. उन्होंने जगद्गुरु के जीवन चरित्र को प्रस्तुत किया. जगद्गुरु ने कहा कि वे जानकी प्राकट्य भूमि पर 15 वर्ष से कथा कह रहे हैं. भोजन कराने का संकल्प सुशील सुंदरका कर रहे हैं. सीता जी का ससुर हूं, वे बहुरानी हैं. जबतक संसार के संबंध के पार नहीं होंगे, परमात्मा और आदि शक्ति से संबंध नहीं बन पाएंगे.
— ज्ञान की भूमि है मिथिला : जगद्गुरु
जगद्गुरु ने ”चंपा के समान सिया, चंपा के सरिस सिया, सब गुण खान हे…,तीसी समान राम तीसी के सरीस राम करुणानिधन हे. सिर चुडामणी सोहे मंद मुस्कान हे, माथे मन मेरी सोभे राम दुलहा राम सन नाम हे…” इस भजन के साथ श्रीराम कथा का शुभारंभ किया.
जगद्गुरु ने अपने संबोधन में कहा कि मिथिला ज्ञान की भूमि है. पांच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद 22 जनवरी अति सुन्दर राम लला मंदिर में विराजमान हो गए हैं. 17 फरवरी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ. गुरु वंदना और मंगलाचरण हुआ.
— रामजी सूर्य हैं और सीता उनकी प्रभा
जगद्गुरु ने कहा कि यह उनका 1397वीं रामकथा का प्रथम सत्र है. फुलवारी प्रसंग से कथा का शुभारंभ करते हुए जगद्गुरु ने कहा कि फुलवारी प्रसंग में 10 महाविद्या उपस्थित हैं. जहां वह विराजमान हो जाता है, सब चकाचक हो जाता है. वे सीता जी के साथ गयी थीं. जिसके अंश उपजही रमा उमा ब्रह्माणी… इनके भृकुटी विलास से प्रलय हो सकता है. वे राम जी के बांए भाग में सशोभित हैं. जिसके अंश से अगणित उमा ब्रह्माणी उत्पन्न हो, वह शक्ति संपन्न सीता हैं. और दस महाविद्या उनके साथ हैं. सीता जी सबसे विलक्षण हैं. राम जी सूर्य नारायण हैं और सीता जी उनकी प्रभा हैं. पहले दिन के प्रथम सत्र में जगद्गुरु ने सीता के रूप और गुण की महिमा का विस्तार से बखान किया.
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