पति के दीर्घायु होने के लिए वट सावित्री की पूजा अर्चना
वट सावित्री पूजा जिले में धूमधाम से मनाया गया.गुरुवार को सुबह से ही शहर के समाहर्ता आवास स्थित मंदिर में वट वृक्ष के पास महिलाओं की भीड़ एकत्रित होने लगी.
शिवहर: वट सावित्री पूजा जिले में धूमधाम से मनाया गया.गुरुवार को सुबह से ही शहर के समाहर्ता आवास स्थित मंदिर में वट वृक्ष के पास महिलाओं की भीड़ एकत्रित होने लगी. इस दौरान नवविवाहित सुहागिन महिलाओं ने अपने सुहाग की रक्षा के लिए वट सावित्री की पूजा अर्चना की और अखंड सुहाग की कामना की. वहीं सोलह श्रृंगार कर सुहागिन महिलाओं ने हाथों में मेहंदी रचाएं पूजन सामग्री, फल व मिष्ठान के साथ परंपरागत पूजन किया. तथा वट वृक्ष के चाहुओर कच्चा सूत लपेटकर 108 बार परिक्रमा कर पति के दीर्घायु की कामना भी की. साथ ही यमराज की पूजा भी की गई. उसके बाद महिलाओं ने वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुनीं. इस अवसर पर उक्त मंदिर में वट वृक्ष की पूजा अर्चना के लिए आस पड़ोस के सुहागन महिलाओं की काफी भीड़ देखी गई. वहीं राजलक्ष्मी आश्रम के आचार्य पंडित वेदप्रकाश शास्त्री ने बताया कि वट सावित्री की पूजा के दिन ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के साथ रोहिणी नक्षत्र एवं धृति योग विद्यमान रहने से ग्रहों की स्थिति भी शुभकारी है. इस दिन का व्रत अधिक पुण्यफल दायी है. कहा कि सनातन धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा करने की परंपरा सदियों पुरानी है. जो पौराणिक कथाओं के अनुसार सावित्री ने भी अपने पति को वापस पाने के लिए इस व्रत की शुरुआत की थी. नवविवाहित सुहागन महिलाओं ने सुनी ध्यानपूर्वक पंडित के माध्यम से वट सावित्री की कथा
पंडित श्री शास्त्री ने नवविवाहित सुहागन महिलाओं को वट सावित्री की कथा सुनाते हुए कहा कि सावित्री राजा अश्वपति की बेटी थी. जो राजा ने बहुत पूजा- पाठ करने के बाद सावित्री देवी की अनुकम्पा से पाया था. इसलिए राजा ने अपनी बेटी का नाम (सावित्री) रखा था. सावित्री बहुत सुंदर और गुणी थीं. लेकिन पिता की बहुत कोशिशों के बाद सावित्री को उनकी तरह गुणवान वर न मिल सका. अंत में हारकर राजा ने सावित्री को खुद वर की तलाश में भेज दिया. उसी समय सावित्री को सत्यवान मिले और उन्होंने सत्यवान को वर के रूप में स्वीकार कर लिया. सत्यवान वैसे तो राजघराने के थे. लेकिन परिस्थितयों ने उनका राज छीन लिया था और उनके माता-पिता अंधे हो गए थे. सत्यवान व सावित्री की शादी से पहले ही नारद मुनि ने सावित्री को बता दिया था कि सत्यवान दीर्घायु नहीं बल्कि अल्पायु हैं. इसलिए सावित्री उनसे शादी न करे. लेकिन सावित्री ने देवर्षि नारद की बात न मानकर उनसे विवाह कर लिया और कहा नारी जीवन में एक बार ही पति का वरण करती है.बार- बार नहीं. इसलिए मैंने एक बार सत्यवान को वर मान लिया है तो मुझे उसके लिए मौत से भी लड़ना पड़े तो मैं लड़ सकती हूं. जब सत्यवान की मौत का समय नजदीक आया तो तीन दिन पहले ही सावित्री ने अन्न-जल छोड़ दिया. मौत वाले दिन सत्यवान जब जंगल में लकड़ी काटने गया.तो सावित्री भी उनके साथ गयी और जब यमराज उन्हें लेने आए तो सावित्री भी उनके साथ जाने लगीं. यह देखकर यमराज उन्हें समझाने लगें फिर भी वह वापस नहीं लौटीं.तब यमराज ने सावित्री से कहा कि तुम सत्यवान का जीवन छोड़कर कोई भी वर मांग सकती हो.ऐसे में सावित्री ने अपने अंधे सास-ससुर की आंखें और ससुर का खोया हुआ राजपाट मांग लिया.लेकिन वापस नहीं लौटीं.सावित्री का पति के प्रेम देखकर यमराज द्रवित हो उठे और उन्होंने सावित्री से वर मांगने को कहा तो सावित्री ने सत्यवान के पुत्रों की.मां बनने का वर मांगा.इसके बाद यमराज जैसे ही तथास्तु कहा तो वटवृक्ष के नीचे पड़ा हुआ सत्यवान का शरीर जीवित हो उठा.तब से अखंड सुहाग पाने के लिए इस व्रत की परंपरा शुरू हो गयी और इस व्रत में वटवृक्ष व यमदेव की पूजा की जाती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है