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सीवान का चर्चित तेजाब कांड : पढ़ें, पिता बनने से लेकर बेटा खोने तक की कहानी

!!विजय सिंह!! पटना : करीब 36 साल बीत चुके हैं. कलावती देवी (करीब 65 वर्ष) को, अंगरेजी का महीना, सन, कुछ भी ठीक-ठीक नहीं याद है. बस इतनी बात जेहन में है कि जेठ का महीना है और शुक्रवार का दिन है. सिर पर धूप चटक रही है. गर्मी से सब बेचैन हैं. महिलाएं, बच्चे […]

!!विजय सिंह!!

पटना : करीब 36 साल बीत चुके हैं. कलावती देवी (करीब 65 वर्ष) को, अंगरेजी का महीना, सन, कुछ भी ठीक-ठीक नहीं याद है. बस इतनी बात जेहन में है कि जेठ का महीना है और शुक्रवार का दिन है. सिर पर धूप चटक रही है. गर्मी से सब बेचैन हैं. महिलाएं, बच्चे दलान में पसरे हुए हैं, ताड़ वाला पंखा सबके हाथों में झूल रहा हैं. शरीर के पसीने को सूखाने का सिलिसला जारी है. घर के बड़े बुजुर्ग दरवाजे से दूर पीपल और बरगद की छांव में बैठे गप्प लड़ा रहे हैं. खैनी रगड़ी जा रही है और गांव-गिरांव का हाल-चाल हो रहा है.

गर्मी के मौसम की दहक के बीच एक सुकून भरा संदेश कलावती के घर से निकला और पीपल के पेड़ के नीचे बैठे उनके पति चंदकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू के पास पहुंचा. यह संदेश वही था, जिसका किसी भी मां-बाप को इंतजार होता है. चंदा बाबू बाप बन गये हैं. उनके घर नन्हा मेहमान आया है. बेटी मंजरी रानी के बाद यह दूसरी औलाद (बेटा) है. घर में खुशियां हैं, बधाइयां हैं, गोतिया के लोगों का अाना-जाना है. रिश्तेदार भी घर आ रहे हैं. छठीहार की तैयारी है.

सब खुश, सब संतुष्ट. बच्चों का घर में लाड़-प्यार होने लगा. दादी ने बेटे को प्यार से बंटू बुलाना शुरू किया और स्कूल का नाम राजीव रोशन रखा गया. जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ती गयी. फिर तीन साल बाद दूसरी बेटी प्रीति ने जन्म लिया अौर करीब तीन साल के ही अंतराल पर क्रमश: गिरीश राज उर्फ नीकू, सतीश राज उर्फ सोनू और सबसे छोटा बेटा नीतीश राज उर्फ मोनू (विकलांग) को कलावती देवी ने जन्म दिया. छपरा जिले के नटवर सेमरिया में सबकुछ ठीक चला रहा था. चंदा बाबू का छोटा-मोटा व्यवसाय था और उनकी जिंदगी खुशहाल थी.

वर्ष 1982 में चंदा बाबू ने छपरा के गांव से निकल कर सीवान शहर में बसने का फैसला किया. इसकी मूल वजह उनके ससुर रामा शंकर प्रसाद थे. वे सीवान में पेशकार थे. दरौली थाना क्षेत्र के कुमटी भिटौली के रहनेवाले रामाशंकर का कोई बेटा नहीं था. सिर्फ तीन बेटियां. इनमें कलावाती देवी दूसरे नंबर पर थी.

रिटायर्ड हाेने के बाद रामा शंकर की देखभाल की बात आयी, तो उन्होंने ही बेटी-दामाद को छपरा से सीवान बुलाया. रामाशंकर ने अपनी दो बेटियों का ब्याह बेतिया और रक्सौल में किया था, जो आती-जाती थीं. चंदा बाबू को सीवान के गल्ला पट्टी नया बाजार में ससुर की तरफ से एक दुकान मिली, जिसमें उन्होंने किराना स्टोर खोल लिया और वे बगल में ही किराये के मकान में रहने लगे. छोटी-सी दुकान और बड़ा परिवार. लेकिन, संघर्षशील और जुझारू प्रवृत्ति के चंदा बाबू की मेहनत के कारण कमाई में बरक्कत होने लगी.

वर्ष 1996 में चंदा बाबू ने कुछ पैसा इकट्ठा किया और सीवान शहर में बड़हरिया स्टैंड के पास एक कट्ठा, नौ धूर जमीन रामनाथ गौंड से रजिस्ट्री करायी. यहां पुराना कटरा था. इसमें छह दुकानें थीं, जो भाड़े पर थीं. लेकिन, दुकान चलानेवाले रामनाथ को समय से भाड़ा नहीं देते थे, कॉनर्र पर जो दुकान थी, उसे नागेंद्र तिवारी नाम का शख्स चलाता था. नागेंद्र ने तो उस दुकान को कब्जा कर लिया था और उसका मुकदमा भी कोर्ट में चल रहा था.

लेकिन, रजिस्ट्री के बाद चंदा बाबू के कहने पर पांच दुकानदारों ने दुकानों को खाली कर दिया, जिसमें चंदा बाबू ने अपने एक और दुकान खोला और गोदाम भी बना लिया था. इस दुकान को छोटे बेटे गिरीश ने संभालना शुरू किया. वर्ष 2000 में दुकान का उद्घाटन हुआ, जिसमें शहाबुद्दीन और मंत्री अवध बिहारी चौधरी शामिल हुए. वर्ष 2004 में चंदा बाबू उस जमीन पर नये सिरे से निर्माण कराना चाहते थे, लेकिन नागेंद्र का कब्जा रास्ते का रोड़ा बन रहा था.

उन्होंने कई बार कहा, लेकिन बात बनी नहीं. इधर नागेंद्र को भी लग रहा था कि दुकान हाथ से निकल जायेगी. इस दौरान एक बड़ी साजिश रची गयी और मदन शर्मा को नागेंद्र ने अपने कब्जेवाली दुकान बेच दी. आरोप है कि उसने फर्जी कागजात तैयार करा लिया था.

लालू यादव ने किया स्वीकार, कहा- शहाबुद्दीन से जेल के अंदर फोन पर हुई थी बात

अब इस पर कब्जा पाना रह गया था. वैसे तो मदन शर्मा सीवान शहर का मोटर मेकैनिक था, लेकिन उसके संबंध शहर के दबंग लोगों से थे. उसने इसका इस्तेमाल भी किया. अब दुकान पर कब्जा करने की कवायद शुरू हुई. चंदा बाबू को जब पता चला कि नागेंद्र ने फर्जी तरीके से दुकान रजिस्ट्री कर दी है और दुकान में ताला लगा रखा है, तो उन्होंने भी दुकान में अपना ताला लगा दिया. अब जो दबंग चेहरे परदे में थे, वे सामने आ गये.

अगस्त (2004) का महीना था. चंदा बाबू के पास फोन आया कि उन्हें दुकान छोड़ना पड़ेगा, वह देर मत करें, वरना अंजाम बुरा होगा. अगले दिन इसका असर भी दिखा. करीब आधा दर्जन लोग चंदा बाबू के पास पहुंचे और वह चाबी मांगने लगे, जिसका ताला उन्होंने विवादित दुकान में बंद कर रखा था. गाली-गलौज हुआ.

धमकी मिली और उनसे चाबी लेकर दुकान खोल दिया गया. उन लोगों ने कहा, दुकान नहीं देना है तो दो लाख रुपये दे दो. यह साहेब (सीवान सांसद शहाबुद्दीन) का आदेश है. कह कर चले गये. चंदा बाबू को विश्वास था कि साहेब ने ही उनके दुकान का उद्घाटन किया है, अब उनका नाम आया है तो उनकी भी सुनी जायेगी.

(12 अगस्त 2004) गुरुवार का दिन था. साहेब सीवान जेल में बंद थे. चंदा बाबू मिलने पहुंचे. उन्होंने कहा कि उनसे दो लाख रुपये मांगा गया है, वह दुकान भाड़े पर देने को तैयार हैं, पर रजिस्ट्री नहीं करेंगे. इस बात पर साहेब को गुस्सा आ गया. उन्होंने कहा कि हमें मतलब नहीं है, तत्काल सामने से हट जाओ. उन्होंने भगा दिया. चंदा बाबू उदास चेहरा लेकर वापस घर आ गये और आपबीती बतायी. घर में तय हुआ कि न दो लाख देंगे और न ही दुकान छोड़ेंगे. 14 अगस्त को पता चला कि चंदा बाबू के भाई की पत्नी को पटना में लड़का हुआ है.

वह देखने के लिए पटना चले आये. स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले चंदा बाबू सीवान में अपने परिवार को छोड़ कर पटना आये थे. शायद उन्हें मालूम नहीं था कि क्या होने वाला है. व्यवसाय में धीरे-धीरे उनकी ताकत बन रहे जवान बेटे बेमरुअत मारे जायेंगे, इसका उन्हें भान नहीं था. मेहनतकशी के बल पर तैयार हुई उनकी खुशहाल दुनिया अौर बेटों का 14 अगस्त को अंतिम दर्शन था. वह पटना के लिए निकल गये.

इधर दुकान का विवाद गरमाया हुआ था. 16 अगस्त की सुबह करीब 10 बजे आफताब, झब्बू मियां, राजकुमार साह, शेख असलम, मोनू उर्फ सोनू उर्फ आरिफ हुसैन, मकसूद मियां समेत करीब एक दर्जन लोग चंदा बाबू की दुकान पर पहुंचे. वहां पर राजीव रोशन उर्फ बंटू और सतीश राज उर्फ सोनू मौजूद थे. राजीव ने सबको बैठाया और चाय पिलानी शुरू की. इसी बीच दो लाख रुपये की डिमांड की गयी. राजीव ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा खर्च-पानी ही दे सकते हैं, बाकी रकम नहीं है.

यह बात राजीव के मुंह से निकली नहीं कि अफताब और झब्बू मियां ने ऐसा थप्पड़ मारा कि राजीव की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. फिर तो उसके ऊपर लाठी, डंडा, लात, जूता, मुक्का से प्रहार शुरू हो गया. वह धराशायी हो गया. सब कुछ उसी दुकान पर हो रहा था और सतीश राज इसका चश्मदीद था. भाई को पिटता देख वह बेबस होकर रोने लगा, लेकिन भाई की पिटाई और मुंह से निकल रहे कराह ने उसे पागल बना दिया. सतीश दौड़ कर अंदर गया और गोदाम में रखे उस बोतल को उठाया, जिसमें शौचालय धाेने वाला एसिड रखा था.

यह एसिड की बोतल उसकी दुकान पर बिकती थी. उसने बोतल को मग में उड़ेला और घर से बाहर मारपीट कर रहे लोगों को निशाना करके हवा में उछाल दिया. इसके छींटे हमलावरों पर भी पड़े और खुद उसके भाई राजीव पर भी. लेकिन, राजीव को एसिड से ज्यादा उन दबंगों का डर था. वह चंगुल से निकला और बगल के मकान में छुप गया, लेकिन सतीश उनके हत्थे चढ़ गया. उसे खींच कर तत्काल बोलेरो में बैठा लिया गया. अब सतीश उनके कब्जे में था.

चंदा बाबू के बेटाें ने अपने बचाव में शहाबुद्दीन के लोगों से पंगा ले लिया था. फिर क्या था, जंगल में लगी आग की तरह यह बात सलाखों के पीछे शहाबुद्दीन के कानों तक पहुंची. उनकी भृकुटि तन गयी, गुस्से से चेहरा लाल हो गया, इसे मामूली परिवार द्वारा बगावत और खिलाफत के साथ पलटवार के रूप में गाल पर पड़े तमाचे के रूप में देखा गया, क्योंकि ये छींटे सीवान के उन दबंग लोगों पर पड़े थे, जिनके इशारे पर पूरा सीवान शहर पलकें झुकाता और उठाता था. बिना इजाजत का पत्ता भी नहीं हिलता था. दबंगई और गुंडई का चरमोत्कर्ष था, दो दशक तक जो चाहा वह किया, जिसे चाहा झुकाया, मरोड़ा और नेस्तनाबूद भी किया. प्रशासन उनका गुलाम था, वह सत्ता में थे और गुनाहों के बेताज बादशाह भी.

नाम शहाबुद्दीन, लेकिन सीवान की दहशत भरी जुबां उनका पूरा नाम लेने के बजाय सिर्फ साहेब ही कहती थी और कहती है. साहेब का फरमान हुआ- उठा लो सबको तेजाब का बदला, तेजाब से देंगे और वह भी अपने हाथों से. सतीश तो कब्जे में आ ही गया था और राजीव की तलाश शुरू हुई. राजीव मकान में छुप रहा. दबंगों ने पहले बड़हरिया गोदा में लूटपाट की और फिर पूरे कटरे में आग लगा दी. सब धुआं, सब राख. इस घटना से पागल हुए लोग इधर राजीव को खोजने लगे.

नहीं मिला तो यह लोग गल्ला पट्टी नया बाजार पहुंचे जहों चंदा बाबू की पहली दुकान थी. वहां दुकान में बनियान और कच्छा पहनकर बैठे दूसरे नंबर के भाई गिरिश राज उर्फ नीकू को बाइक पर खींच कर बैठा लिया गया, उसे घटना के बारे में कुछ भी पता नहीं था. जब वह पूछता तो उसे मार पड़ती. अब राजीव की तलाश की जा रही थी. सतीश को अगवा करने के बाद जब यह लोग गल्ला पट्टी की तरफ निकले, तो राजीव जिस मकान में छुपा था, वहां से निकल कर बाहर आया और बचाव के लिए अपने कुछ रिश्तेदारों के पास गया.

लोगों ने शहाबुद्दीन का नाम सूना, तो सांप सूंघ गया. सबने भगा दिया, किसी ने शरण नहीं दी. इसके बाद वह कचहरी पहुंचा, वहां कुछ लोगों से बात की और दक्षिण टोला की तरफ निकल रहा था. इसी बीच रामराज मोड़ के पास उसे भी पकड़ लिया गया. अब तीनों भाई शहाबुद्दीन के लोगों के कब्जे में थे. उन्हें शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर ले जाया गया. तीनों भाइयों को एक कमरे में रखा गया.

बदले की आग में जल रहे शहाबुद्दीन सलाखों से निकल कर अपने घर पहुंचे और तीनों गुस्ताखों को उनके सामने पेश किया गया. तत्काल तेजाब मंगाया गया और शहाबुद्दीन और उनके लोगों ने गिरीश (22 वर्ष बीएससी पास) और सतीश (20 वर्ष बीएसी पास) को जिंदा तेजाब से नहला दिया. वह जल कर राख हो गये और राजीव दिल पर पत्थर रख कर इस तमाशे को देखता रहा.

उसे कब्जे में रखने का आदेश हुआ. कहा गया कि जब इसका बाप आयेगा, तो बड़हरिया वाली जमीन रजिस्ट्री करेगा, तब इसे छोड़ा जायेगा. लेकिन अंदरखाने साजिश यह थी कि राजीव को बचाने के नाम पर चंदा बाबू कब्जे में आये और रजिस्ट्री कराने के बाद सबको मार दिया जाये. राजीव काे सबकुछ समझ में आ गया था. वह मौके की तलाश में था. देर रात उसे मौका मिला और वह उनके चंगुल से भाग निकला.

इधर सुबह से लेकर शाम तक घटना की चरचा होती रही. लोग खुल कर नहीं बोल पा रहे थे, लेकिन उनका दिल हाय-हाय कर रहा था. सीवान के ही मुसाफिर चौधरी ने हिम्मत जुटायी और चौक-चौराहों पर बोल दिया कि चंदा बाबू के बेटों को इतनी निर्ममता से नहीं मारना चाहिए था.

यह बात साहेब के लोगों को पता चली, चंद मिनट में ही उनकी भी गोली मार कर हत्या कर दी गयी. अब सबकी जुबान बंद. टेलीफोन के माध्यम से पटना में मौजूद चंदा बाबू को पता चला कि तीनों बेटों की हत्या हो गयी है, उन्हें भी कहा गया कि सीवान नहीं आये. इस बीच सतीश यूपी चला गया. उसकी मां कलावती देवी, सबसे छोटा भाई नीतीश और बहन प्रीति अपने गांव छपरा आ गये. चंदा बाबू पटना में खुद को छुपाते फिरते रहे. घटना के बाद कलावती देवी के आवेदन पर पहले अज्ञात लोगों पर अपहरण व हत्या का मामला दर्ज हुआ.

बाद में अनुसंधान में शहाबुद्दीन और उनके लाेगों पर मामला दर्ज हुआ, जबकि शहाबुद्दीन की तरफ से तेजाब फेंकने के आरोप में राजेश नाम के युवक पर एफआइआर दर्ज करायी गयी, जो अनुसंधान में नाम सुधार कर राजीव किया किया गया. दोनों तरफ से मुफस्सिल थाने में क्रॉस एफआइआर हुई.

इधर, ठीक आठ महीने तक परिवार के सदस्य आपस में मिल न सके. इसके बाद राजीव ने फिर हिम्मत जुटायी और यूपी के पड़रौना में एक प्रभावशाली नेता के दरबार में गया. उसे पता चला था कि उनके शहाबुद्दीन से अच्छे संबंध हैं. राजीव ने पूरी बात बतायी और जान की गुहार लगायी.

नेता ने शहाबुद्दीन से बात भी की लेकिन उसन ने साफ मना कर दिया. कहा कि आप बीच में न पड़ें, पानी सिर के ऊपर निकल गया है. हम निबटेंगे. फिर भी किसी तरह से राजीव अपने घरवालों से मिला और पूरी व्यथा सुनायी. उसने एक पत्र लिख कर अपने पिता को दिया, जिसमें भाइयों के बरबादी की कहानी थी. फिर वह गोरखपुर चला गया. वहां इधर-उधर रहा. कई महीने बाद चंदा बाबू सीवान लौटे और बची-खुची दुनिया में जीवन यापन करने लगे. वर्ष 2008 में गायत्री परिवार के माध्यम से चंदा बाबू ने अपने दोनों मृत बेटों का कर्मकांड किया. उधर मुकदमे का ट्रायल शुरू हुआ. वह पैरवी करते रहे.

2011 में फिर से इस कहानी में नया मोड़ आया. राजीव ने हिम्मत जुटाया और दोनों भाइयों की हत्या के मामले में छह जून को कोर्ट में चश्मदीद के रूप में गवाही दी, लेकिन अदालत ने यह कह कर सुनवायी से इनकार कर दिया कि अगर चश्मदीद थे तो अब तक कहां थे. इस पर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. वहां दलील दी गयी की याची डर से सीवान छोड़ कर यूपी चला गया था. अब सामने आया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे संज्ञान लिया और सीवान के मंडल कारागार में ही विशेष अदालत का गठन कर सुनवाई का निर्देश दिया.

तारीख पर तारीख पड़ती रही. सुनवाई का सिलसिला जारी रहा. इसमें चंदा बाबू का 164 के तहत बयान कराया गया. उन्होंने राजीव द्वारा लिखे गये पत्र को अदालत के सामने पेश किया. इस गवाही ने फैसले की दिशा तय कर दी थी. शहाबुद्दीन के लोगों को भी आभास हो गया था. इधर सबकुछ सामान्य होता देख चंदा बाबू ने 24 मई, 2014 को बेटे राजीव की गोपालगंज में शादी कर दी. घर में अंकिता बहू बन कर आयी. 2011 में छोटी बेटी प्रीति की शादी तो उन्होंने कर दी थी. अब फिर से उम्मीद की किरण जग रही थी. सबकुछ ठीक हो रहा था. 19 जून, 2014 को फिर से कोर्ट में चश्मदीद को पेश होना था. इधर शहाबुद्दीन के लोगों की नजर राजीव पर थी.

हुआ भी वही, 16 जून, 2014 को डीएवी मोड़ के पास हमलावरों ने राजीव रोशन (24) की गोली मार कर हत्या कर दी. चंदा बाबू के यह तीसरे बेटे की हत्या थी, जो भाइयों में सबसे बड़ा था. घर में बहू भी आ गयी थी. घर में फिर से मातम पसर गया. इस हत्या ने चंदा बाबू को पूरी तरह से तोड़ दिया. तीन जवान बेटे इस दुनिया से चले गये. पति-पत्नी और छोटा बेटा नीतीश ही परिवार में बचे हैं. दोनों बेटियां अपने घर पर हैं, सीवान नहीं आती हैं.

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