सीवान में दिमागी बुखार का एक मरीज मिला

सीवान : सदर अस्पताल के आपातकक्ष में गुरुवार को दिमागी बुखार से पीड़ित एक बच्चे को उपचार के लिए भर्ती किया गया. ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने मरीज को देखा. दिमागी बुखार के उसमें सभी लक्षण मौजूद थे तथा वह कोमा में था. डॉक्टर ने मरीज का प्राथमिक उपचार करने के बाद पीएमसीएच रेफर कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2017 4:30 AM

सीवान : सदर अस्पताल के आपातकक्ष में गुरुवार को दिमागी बुखार से पीड़ित एक बच्चे को उपचार के लिए भर्ती किया गया. ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने मरीज को देखा. दिमागी बुखार के उसमें सभी लक्षण मौजूद थे तथा वह कोमा में था. डॉक्टर ने मरीज का प्राथमिक उपचार करने के बाद पीएमसीएच रेफर कर दिया.

मरीज का नाम विकास कुमार (09) साल है, जो गोशाला रोड निवासी रमेश प्रसाद का पुत्र है. बच्चे के पिता ने बताया कि उसके करीब एक सप्ताह से तेज बुखार था, तो उसे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया. हालत में जब सुधार नहीं हुआ तो डॉक्टर ने बच्चे को सदर अस्पताल में रेफर कर दिया.
पिछले साल सात बच्चों की गयी थी जान : पूर्वी उत्तर प्रदेश से सीवान जिला सटे होने के कारण यहां भी दिमागी बुखार के मरीजों के मिलने की अधिक आशंका है. करीब एक दशक से सीवान जिले में एक्यूट इसेंफलाइटिस सिंड्रोम के मरीज हर साल मिलते हैं. जब से जिले में जापानीज इंसेफ्लाइटिस के टीके नियमित टीकाकरण से जुड़ गये हैं, तब से जेई के मामले नहीं मिलते हैं. पिछले साल पीएमसीएच द्वारा भेजी गयी चना के अनुसार पांच बच्चों की मौत एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से हुई थी
जबकि 31 बच्चे इससे अाक्रांत हुए थे. स्वास्थ्य विभाग के पास एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम या जापानी बुखार जैसे मरीजों का पता करने का कोई संसाधन विकसित नहीं है. पीएमसीएच रिपोर्ट भेज दी, तो पता चल जाता है. वरना कुछ भी जानकारी विभाग को नहीं होती. जिले से एक्यूट इसेंफ्लाइटिस सिंड्रोम के अधिकांश मरीज गोरखपुर बीआरडी में जाते हैं. वहां से एक्यूट इसेंफ्लाइटिस सिंड्रोम से संक्रमित बच्चों की रिपाेर्ट नहीं आती है. इस कारण विभाग मरीज मिलने वाले इलाके में छिड़काव नहीं करा पाता है.
कैसे होता है बच्चों में जापानी दिमागी बुखार : धान के खेतों में पनपने वाले ट्रायटेनियरहिंचस समूह के क्यूलेक्स मच्छर ही इस बीमारी के मुख्य जनक हैं. ये मच्छर धान के खेतों में बगुलों व अन्य पक्षियों को काटकर उसे पहले संक्रमित करते हैं. इसके बाद इन पक्षियों को साधारण मच्छर काटकर जब सुअरों को काटते हैं, सूअर जापानी इंसेफ्लाइटिस वायरस को एंप्लीफायर की तरह अपने शरीर में बढ़ा लेता है. इसके बाद कोई संक्रमित सूअर को काटने के बाद वह बच्चों को काट लेता है,
तो उसे दिमागी बुखार हो जाता है. सामान्यत: यह बीमारी दो से लेकर पंद्रह साल के बच्चों में पायी जाती है. जापानी दिमागी बुखार से बचाव के लिए टीके तो आ गये हैं, लेकिन एक्यूट इंसेफ्लाइटिस का इलाज अभी पूरी तरह नहीं आया है. जापानी इंसेफ्लाइटिस के वायरस का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं होता है. उदाहरण के लिए आपको यह वायरस किसी उस व्यक्ति को छूने या चूमने से नहीं आ सकता, जिसे यह रोग है या किसी स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी से जिसने किसी इस प्रकार के रोगी का उपचार किया हो. केवल पालतू सूअर और जंगली पक्षी ही जापानी इंसेफ्लाइटिस वायरस फैला सकते हैं.
पीएमसीएच ने 31 बच्चों के अाक्रांत होने की भी दी थी सूचना
जिले के सीमावर्ती उत्तर प्रदेश में जारी है कहर दिमागी बुखार का
दिमागी बुखार के लक्षण
जापानी मस्तिष्क ज्वर के हल्के संक्रमण में बुखार एवं सिरदर्द प्रमुख लक्षण है. लेकिन तीक्ष्ण संक्रमण में तेज बुखार, सिरदर्द, गर्दन में अकड़न आ जाती है. इसके अतिरिक्त संक्रमित व्यक्ति के मांस पेशियों अनायास उग्र से संकुचित हो जाती है. इस बीमारी में झटके भी आते हैं और गंभीर अवस्था में लकवे की आशंका भी होती है. कभी-कभी रोगी कोमा में चला जाता है. इस बीमारी के शिकार बच्चों में मस्तिष्क संबंधी गंभीर समस्याएं पैदा होती है. जापानी इंसेफ्लाइटिस की संचयी काल अवधि सामान्यतः 5 से 15 दिन होती है.
इसकी मृत्यु दर 0.3 से 60 प्रतिशत तक है.

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