बिहार : नक्शे में बसा है गांव, पर धरातल से गायब, जानिए दियरा काशीदत्त गांव की रोचक कहानी

दरौली : सीवान जिले में एक ऐसा गांव है, जो मानचित्र में तो बसा है, लेकिन धरातल पर उसका कोई अता-पता नहीं. साढ़े पांच दशक पूर्व यह गांव सरयू नदी की कोख में समा गया. समय के साथ यहां से पलायन करने वाले लोगों ने अन्य जगह शरण ली, जो लोग बाद में उन गांवों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 12, 2018 7:42 AM
दरौली : सीवान जिले में एक ऐसा गांव है, जो मानचित्र में तो बसा है, लेकिन धरातल पर उसका कोई अता-पता नहीं. साढ़े पांच दशक पूर्व यह गांव सरयू नदी की कोख में समा गया. समय के साथ यहां से पलायन करने वाले लोगों ने अन्य जगह शरण ली, जो लोग बाद में उन गांवों के वाशिंदे हो गये.
इनमें से ऐसे भी दर्जनों परिवार हैं, जिन्हें खराब माली हालात के चलते नयी जगह कोई ठिकाना नहीं मिला. पुरखों की जमीन के लालच व उनसे जुड़ी यादों को दिलों में समेटे हुए आसपास ही ये पड़े रहे. किसी चमत्कार की उम्मीद में अपनी कई पीढ़ियों को गुजार चुके इन परिवारों का बाढ़ से बचाव के लिए बांध सहारा बना है.
वहां उनकी पूरी गृहस्थी बस गयी है. प्रशासन या सरकार ने उनकी सुध नहीं ली. लिहाजा सरकारी सुविधाओं की बात तो दूर इन्हें मताधिकार तक प्राप्त नहीं है. यह कहानी है प्रखंड के दियरा काशीदत्त गांव की.
जमीन नहीं तो आवास भी नहीं
60 के दशक में सारण के कलेक्टर एन नागमणि ने गंगा के कटाव को देखते हुए गांव का लगान माफ कर दिया था. आज नक्शे में दियरा काशीदत्त देखा जा सकता है, लेकिन धरातल पर नहीं. सीओ दरौली संजीव कुमार सिन्हा का कहना है कि अभियान बसेरा के तहत सर्वे कर वासविहीन परिवारों को पांच डिसमिल भूमि दी जायेगी. बीडीओ चंदन कुमार ने बताया कि जब तक जमीन उपलब्ध नहीं होती, तब तक इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिलेगा.
13 हजार बीघे में फैला था गांव, नक्शे में देखा जा सकता है दियरा काशीदत्त
जो लोग धनी थे, वे दरौली, तियर, पटहेरा, सहित विभिन्न जगहों पर जाकर बस गये और आर्थिक रूप से कमजोर सैकड़ों परिवारों ने नदी के बांध पर अपना बसेरा बना लिया. आज भी ये लोग बांध पर ही गुजर-बसर कर रहे हैं. मुंद्रिका, रामप्रीत, रामप्रसाद, सहित 500 से 600 परिवार प्रतिदिन मेहनत मजदूरी कर इसी बांध पर बनी झोंपड़ियों में गुजर-बसर कर रहे हैं. विश्वनाथ तिवारी, राजमी तिवारी, विशुनदेव पांडेय, गौतम तिवारी आदि का कहना है कि उनको उस समय की हर बातें याद तो नहीं, लेकिन जब नदी की धार ने अंतिम बार बस्ती का कटाव किया तो चारों तरफ पानी-ही-पानी दिखायी दे रहा था.
गांव में ही जनमे शिक्षक श्यामबिहारी सिंह तियर में अपना घर बनाकर रह रहे हैं. उनका कहना है कि अगर प्राकृतिक प्रकोप नहीं आया होता तो आज दियरा काशीदत्त गांव की भौगोलिक स्थिति पूरे जिले में अच्छी होती. क्योंकि जनसंख्या व घनत्व के हिसाब से लोगों के पास भूमि पर्याप्त थी.
3 से 4 हजार थी आबादी
कभी यह गांव 13 हजार बीघे में फैला था. उस समय इसकी आबादी तीन से चार हजार थी. 22 टोलों में बंटे इस गांव में लगभग सभी जाति के लोग निवास करते थे, तब सारण प्रमंडल के क्षेत्रफल की दृष्टि से यह सबसे बड़ा गांव था. आजादी से पूर्व इस गांव में सभी व्यवस्थाएं मौजूद थीं.
कृषि उन्नत थी पर समय ने करवट ली और धीरे-धीरे इस गांव के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा. मोक्षदायिनी कही जाने वाली सरयू नदी के कटाव में पूरा गांव धीरे-धीरे समा गया. सन 1962 आते-आते पूरी बस्ती सरयू नदी में विलीन हो गयी.

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