वाहन से ठोकर लगने से थे कोमा में

हसनपुरा : सच ही कहा गया कि जाको राखे साइया, मार सके ना कोए. यह कहावत हसनपुरा प्रखंड की हरपुर कोटवा पंचायत के टरवां गांव निवासी पारस तिवारी पर चरितार्थ हो रही है. क्योंकि एक सड़क दुर्घटना में वह घायल हो गये. इससे उन्हें गंभीर चोटें आयीं और वह कोमा में चले गये. परिजन तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:46 PM

हसनपुरा : सच ही कहा गया कि जाको राखे साइया, मार सके ना कोए. यह कहावत हसनपुरा प्रखंड की हरपुर कोटवा पंचायत के टरवां गांव निवासी पारस तिवारी पर चरितार्थ हो रही है. क्योंकि एक सड़क दुर्घटना में वह घायल हो गये.

इससे उन्हें गंभीर चोटें आयीं और वह कोमा में चले गये. परिजन तो उन्हें मृत समझ दाह संस्कार करने ले जा रहे थे.

लेकिन दाह संस्कार में शामिल एक चिकित्सक ने जब उनके शरीर को गरम देख, नब्ज टटोली तो वह जिंदा मिले. इसके बाद उनका इलाज पटना, छपरा व सीवान में करवाया जा रहा है. बता दें कि वर्तमान में उनकी सारी जमीन इलाज में बिक गयी है. अभी तक न तो किसी अधिकारी व न ही जनप्रतिनिधि ने इस परिवार की सुधि लेने की जहमत उठायी है.

हसनपुरा प्रखंड की हरपुर कोटवा पंचायत के टरवां परसा गांव निवासी कामेश्वर (70) 20 फरवरी को किसी कार्यवश चैनपुर गये थे. देर शाम वह घर लौट रहे थे. इसी दौरान एक अज्ञात वाहन चालक ने उन्हें ठोकर मार दी. इससे वह गंभीर रूप से घायल हो गये और कोमा में चले गये. परिजन उन्हें मृत समझ दाह संस्कार के लेकर चले.

चिता पर ले जाते समय एक व्यक्ति (चिकित्सक) को लगा कि कामेश्वर का शरीर गरम है, इस पर उसने उनके जिंदा होने की बात कही. नब्ज टटोल कर देखा तो नब्ज भी चल रही थी. यह देख दाह संस्कार में शामिल सभी लोग सकते में आ गये और आनन-फानन में उन्हें इलाज के लिए सीवान लाये. सीवान ही क्या छपरा व पटना में भी कोमा की स्थिति में कामेश्वर को कोई चिकित्सक भरती नहीं करना चाहता था. किसी तरह कंकड़बाग स्थित एक निजी चिकित्सालय में उनका इलाज किया गया. जहां महीनों इलाज के बाद उन्हें होश आया.

दुर्घटना के बाद कई महीने कोमा में रहने वाले कामेश्वर मिश्र को तो पुन: जीवन मिल गया, लेकिन उनके इलाज में सारी जमीन बेचनी पड़ गयी. प्रभात खबर के संवाददाता से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि अगर सड़क दुर्घटना में मेरी मौत हो गयी होती, तो ठीक हुआ होता.

कम-से-कम इलाज के लिए जमीन को तो नहीं बेचना पड़ता. उन्होंने बताया कि जिंदगी के अंतिम पड़ाव में होने के बावजूद भी सरकार द्वारा न तो वृद्धावस्था पेंशन मिलती है और न ही किसी योजना का लाभ. कामेश्वर मिश्र को दो पुत्र हैं, जो रोजी-रोटी व पिता के इलाज के लिए अन्य प्रदेशों में रह कर नौकरी करते हैं.

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