सामाजिक परंपरा तोड़ अलका ने पिता को दी मुखाग्नि

सीवान : समय के अनुसार पूर्व की मान्यताएं टूटती रही हैं तथा नयी परंपराओं को आधार मिलता रहा है. टूटती परंपराओं व संस्कृति का चंद समाज के तथाकथित ठेकेदार विरोध करने से भी बाज नहीं आते हैं. विरोध के बावजूद बड़हरिया प्रखंड के खोरीपाकड़ की बेटी अलका ने शुक्रवार को अपने दिवंगत पिता को मुखागिA […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 14, 2015 8:03 AM
सीवान : समय के अनुसार पूर्व की मान्यताएं टूटती रही हैं तथा नयी परंपराओं को आधार मिलता रहा है. टूटती परंपराओं व संस्कृति का चंद समाज के तथाकथित ठेकेदार विरोध करने से भी बाज नहीं आते हैं.
विरोध के बावजूद बड़हरिया प्रखंड के खोरीपाकड़ की बेटी अलका ने शुक्रवार को अपने दिवंगत पिता को मुखागिA देकर अपने मां के लिए बेटे की कमी का एहसास होने नहीं दिया. रूढ़िवादियों ने जहां जम कर इसका विरोध किया. वहीं मां निर्मला के आंखों का तारा 14 वर्षीया अलका ने अपने पिता रतन यादव को आगे बढ़ कर अंतिम विदाई दी.परंपराओं के विपरीत भारी विरोध के बावजूद जिस वक्त अलका ने अपने पिता को मुखागिA दी.उस वक्त कुछ क्षण के लिए मानो गांव के गंडकी नदी के तट पर समय कुछ क्षण के लिए ठहर सा गया था.वहां मौजूद अधिकांश लोग अलका के फैसले से स्तब्ध थे. पिता के खोने का गम बेटी के चेहरे पर जहां साफ दिखाई पड़ रही थी. अलका ने किसी सगे भाई के न होने के चलते मुखागिA देकर बेटा की भूमिका को निभाया.
चार बेटियों के पिता रतन यादव सउदी अरबिया में एक प्राइवेट कंपनी में डक्ट इंसुलेटर का काम करते थे. दो फरवरी को वहां ब्रेन हेमरेज होने से उनकी मौत हो गयी. उनका शव गुरुवार की मध्य रात पैतृक गांव खोरी पाकड़ पहुंचा.जिनका सुबह गांव के समीप स्थित गंडकी नदी पर अंतिम संस्कार किया गया. रतन को कोई पुत्र न होकर चार बेटी अलका(14 वर्ष),नीलु(10 वर्ष),सृष्टि (6 वर्ष),आदिति(3 वर्ष)ही हैं.
अपने पिता को हमेशा बेटे की कमी न होने देने का अलका विश्वास दिलाती रहती थी. उधर अंत में लोगों में यह सहमति बनी की मुखागिA गांव का कोई अन्य सदस्य देगा. यह खबर लगते ही अलका बिफर पड़ी. अलका ने सैकड़ो ग्रामीणों की मौजूदगी में अपने खुद पिता को मुखागिA देने का फैसला सुनाया.
परंपरा टूटती है तो होता है विरोध
अलका का निर्णय स्वागत योग्य है.हर जगह बेटियां अपने कौशल से अपने को स्थापित कर रही हैं,तो हिंदू संस्कृति व परंपरा से उसे विरत नहीं रखा जा सकता है.बेटा न होने पर अलका की मुखागिA देकर अपनी भूमिका निभाना स्वागत योग्य है.
धर्मनाथ प्रसाद, शिक्षक, राजकीय मध्य विद्यालय, गोपालपुर
बेटी को है हर संस्कार में हिस्सा लेने का हक
पिता को मुखागिA देकर अलका ने यह संदेश दिया है कि हमारे संस्कारों में अब बेटियों को कुछ स्थानों पर हिस्सेदार होने से रोका नहीं जा सकता. उन्हें भी भौतिक व अध्यात्म सभी क्षेत्रोंमें हिस्सा जताने का हक है.
श्याम नारायण यादव, नारायण कॉलेज, गोरयाकोठी
अलका के फैसले का स्वागत
समय के साथ बेटियों का पिता को मुखागिA देने की परंपरा की एक नयी शुरुआत है. इसे अनुकूल बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए.अलका के पहल व फैसले का हम स्वागत करते हैं.
तारकेश्वर यादव, जिला सचिव,भाकपा

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