महाराजगंज में मुंह बाये खड़ी हैं समस्याएं, जनता बेहाल

महाराजगंज : जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण आजादी के बाद महाराजगंज ने अपने अतीत को खोया है. भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य, आवास व शिक्षा मानव जीवन की बुनियादी जरूरतें हैं. महाराजगंज में आज भी समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं. महाराजगंज शहरी कम, ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है. ठीक उसी प्रकार की बनावट विधानसभा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2015 7:31 AM
महाराजगंज : जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण आजादी के बाद महाराजगंज ने अपने अतीत को खोया है. भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य, आवास व शिक्षा मानव जीवन की बुनियादी जरूरतें हैं. महाराजगंज में आज भी समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं. महाराजगंज शहरी कम, ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है.
ठीक उसी प्रकार की बनावट विधानसभा क्षेत्र की भी है. महाराजगंज पूर्व में विकसित शहर माना जाता था. राजनीतिक उपेक्षा के कारण महाराजगंज का विकास पिछड़ता गया. एक दशक तक प्रभुनाथ सिंह सांसद के कार्यकाल में रेल, सड़क व संचार के विकास में गति आयी. वर्तमान स्थिति में महाराजगंज का विकास ठप है.
क्या हैं समस्याएं
आजादी के बाद निर्वाचित लोगों ने क्षेत्र में रोजगार सृजन पर ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण चीनी मिल, रेल रैक प्वाइंट, सूत का कारोबार व कोल्ड स्टोरेज आदि जैसे रोजगार समाप्त हो गये.
सिंचाई की पुख्ता व्यवस्था खेती के लिए नहीं की गयी. इस कारण अधिकतर भाग बंजर रहा या जलखर से प्रभावित रहा, जिसके कारण किसान अन्य प्रदेशों में रोजगार के लिए पलायन करते रहे.
शिक्षा की स्थिति वर्तमान में यह बनी है कि जिस सरकारी स्कूल में शिक्षक पढ़ाते हैं, उस स्कूल में अपने बेटा-बेटी को पढ़ाना उचित नहीं समझते.
सरकारी स्वास्थ्य भवन सफेद हाथी बन कर रह गया है. महिलाओं को सिजेरियन के लिए बाहर जाना पड़ता है. जलमीनार, जलजमाव, गांवों के विद्युतीकरण, ग्रामीण सड़कंे जैसी समस्याओं से भी जनता उबरी नहीं है.
कैसा हो महाराजगंज
महाराजगंज के खोये अतीत को लौटाने व विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए महाराजगंज की जनता को नये सोच विकसित करना होगा. ग्रामीण क्षेत्र से युक्त निर्वाचन क्षेत्रों के विकास के लिए जनप्रतिनिधियों को आगे आना होगा. किसानों के खरीफ फसल का नहीं हो रहा बीमा
भटक रहे किसान
खरीफ फसल के लिए एक जून से 31 जुलाई तक किसानों के खरीफ फसल का बीमा बैंकों को करना था. एक माह बीतने के बाद भी महाराजगंज के किसी बैंक द्वारा किसानों के खरीफ फसल का बीमा नहीं किया गया. बदहाल किसान अपने खरीफ फसल का बीमा कराने के लिए प्रखंड से लेकर बैंकों तक चक्कर लगा रहे हैं.
क्या कहते हैं पैक्स अध्यक्ष
अन्नदाता कड़ी मेहनत कर फसल लगाते हैं. खेतों में लागत खर्च ज्यादा है. प्राकृतिक आपदा से राहत के लिए फसल का बीमा होना आवश्यक है.
शिल्पी सिन्हा, कसदेवरा पैक्स
महंगाई व प्राकृतिक आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित किसान होता है. किसानों के लगायी गयी खरीफ फसल का बीमा होना चाहिए.
देवांती देवी, जिगरावां पैक्स
फसल बीमा की अंतिम तिथि 31 जुलाई निर्धारित है. इसकी समय सीमा बढ़ा कर किसानों की खरीफ फसल का बीमा कराया जाना चाहिए. इससे प्राकृतिक आपदा आने पर किसानों को कर्ज के बोझ से निबटने में सहूलियत होगी.
शैलेंद्र सिंह, पूर्व पैक्स अध्यक्ष, कसदेवरा
फसल क्षति होने से महंगाई के माहौल में किसान परेशान हैं. खेती की तरफ किसानों का झुकाव बढ़ाने के लिए फसल बीमा का होना अति आवश्यक है. जिला प्रशासन को किसानों की समस्या को गंभीरता से लेते हुए फसल बीमा कराने पर बल देना चाहिए.
निशिकांत शाही, पटेढ़ा पैक्स

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