सौम्य, सादगी व त्याग के प्रतिमूर्ति थे राजेंद्र बाबू
जीरादेई/सीवान : देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ राजेंद्र प्रसाद सही मायने में देशरत्न थे. भारतरत्न तो कई हुए, लेकिन राजेंद्र बाबू ही देशरत्न रहे, जो आजीवन देश के प्रति समर्पित रहे. राजेंद्र बाबू अत्यंत सौम्य और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे. सभी वर्ग और बाद के व्यक्ति उन्हें सम्मान देते थे. प्रत्येक स्थिति में उनके […]
जीरादेई/सीवान : देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ राजेंद्र प्रसाद सही मायने में देशरत्न थे. भारतरत्न तो कई हुए, लेकिन राजेंद्र बाबू ही देशरत्न रहे, जो आजीवन देश के प्रति समर्पित रहे. राजेंद्र बाबू अत्यंत सौम्य और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे. सभी वर्ग और बाद के व्यक्ति उन्हें सम्मान देते थे. प्रत्येक स्थिति में उनके अधरों पर खेलने वाली स्मित रेखा बनी रहती थी.
सभी से प्रसन्न होकर अंतर की निर्मल-भावना से ही मिलते थे. उनकी सरलता में अंदर रहने वाली ज्ञान-गरिमा भी छपी रहती थी. सहज कोई चर्चा छिड़ जाने पर ही किसी विषय की गहनता, मार्मिकता और तार्किकता प्रकट हो पाती थी.चाहे इतिहास हो, साहित्य हो, संस्कृति हो, शिक्षा हो, राजनीति हो, भाषा शास्त्र हो, धर्म हो, वेदांत हो, वह जिस उच्चस्तर पर अपने विचार व्यक्त करते थे, उनकी महत्ता का भाव हो सकता है.
स्वाभाविक सरलता के कारण वह अपने ज्ञान-वैभव का प्रभाव प्रतिष्ठित नहीं करते थे. गंभीर तो वह सदैव ही रहते थे, परंतु राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित होकर उन्होंने और भी अपनी सीमा निर्धारित कर ली थी, वह विषपायी थे और गरल को कंठ से नीचे उतारकर वाणी में अमृत ही बनाये रखते थे और उसी का विस्तार करते थे. जब हमारा संविधान बन रहा था, किसी सदस्य के अनुचित आरोप से संतप्त हो राष्ट्रपिता के समक्ष जाकर अध्यक्षता छोड़ने की इच्छा प्रकट की थी.
तब महात्मा गांधी ने उनसे ही कहा था कि अमृत पीने वाले तो बहुत हैं, पर मेरे पास अकेले राजेंद्र बाबू ही तो जहर पीनेवाले हैं. वह जहर से घबरा जायेंगे, तो कौन पीयेगा. बात बहुत सच है राजेंद्र बाबू ने नीलकंठ की तरह अनेक बार सहज भाव से हलाहल पीया है और हजम किया है. जहां यह विरक्ति का कारण बन जाता था, वहां आंतरिक मतभेदों से भी उनके अंतर में भीषण व्यथा हो उठती थी,
परंतु इन सब विषम स्थितियों में भी उन्होंने अपने संयम की सीमा और गंभीरता को नहीं खोया था. राजेंद्र बाबू अवश्य ही मति-भाषी और गंभीर प्रकृति के रहे हैं, वाणी में पूर्ण संयम रहा है. सरलता और स्वाभाविकता उनके व्यक्तिव में समा गयी थी, किसी भी अवस्था में उनके मुख पर मुस्कान सदैव बनी रहती थी और वह हर किसी को मोहित कर लेती थी.
यद्यपि बाबूजी की गंभीरता, उनकी वय, प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुरूप ही थी, तथापि वे विनोद-प्रिय थे. अपने समाज में बड़ी सरलता के साथ चुटकुले सुनाया करते थे और वे बहुत सूझ भरे एवं सामयिक होते थे. उस समय सुनने वालों के साथ ही बाबूजी खूब खिलखिलाकर हंस पड़ते थे.