अत्यधिक भोग की इच्छा ही दुख का कारण : प्रज्ञा नंद

सीवान : नगर के निराला नगर डीएवी कॉलेज के समीप चल रहे भगवान श्री कृष्ण परिवार व मानस मंदाकिनी समिति द्वारा सात दिवसीय गीता ज्ञान सत्संग के पांचवें दिन प्रवचन करते हुए प्रज्ञा नंद जी महाराज ने कहा कि तप तीन प्रकार के होते हैं. पहला शरीर संबंधित तप, दूसरा मन संबंधित तप और तीसरा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 15, 2016 3:01 AM

सीवान : नगर के निराला नगर डीएवी कॉलेज के समीप चल रहे भगवान श्री कृष्ण परिवार व मानस मंदाकिनी समिति द्वारा सात दिवसीय गीता ज्ञान सत्संग के पांचवें दिन प्रवचन करते हुए प्रज्ञा नंद जी महाराज ने कहा कि तप तीन प्रकार के होते हैं. पहला शरीर संबंधित तप, दूसरा मन संबंधित तप और तीसरा वाणी संबंधित तप है. जो व्यक्ति देव, गुरु, विद्वान और ब्राह्मण का पूजन पवित्रता, सरलता ब्रह्मचर्य व अहिंसा के साथ करता है,

तो उसे शरीर संबंधित तप कहा जाता है. जिस व्यक्ति के हृदय में मन की प्रसन्नता, शांत भाव, भगवत चिंतन का स्वभाव, मन का निग्रह और अंत:करण के भाव की भलि भांति पवित्रता होती है, उसे मन संबंधित तप कहा जाता है. वहीं जो व्यक्ति उद्वेग न करने वाली वाणी और प्रिय और हितकारक तथा वेद शास्त्रों का पठन व परमेश्वर के नाम जप का अभ्यास करता है, वह वाणी संबंधित तप कहलाता है. उन्होंने कहा कि जब-जब धर्म का विनाश असुरी शक्तियों द्वारा हुआ है,

तब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण धर्म की स्थापना और अधर्म का विनाश व साधु पुरुषों की रक्षा हेतु भारत भूमि पर अवतरित हुए हैं. कार्यक्रम का आयोजन शंकर बाबू द्वारा किया जा रहा है. इस दौरान आयोजन समिति के अध्यक्ष पंडित गोवर्धन शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष ईष्टदेव तिवारी, उपाध्यक्ष मोहन शर्मा, सचिव ललन मिश्र, कोषाध्यक्ष ब्रह्मा नंद सिंह सहित अन्य लोग उपस्थित थे.

Next Article

Exit mobile version