शहीद की एक झलक पाने को सभी थे बेताब

खरदरा गांव में हर तरफ मातम व सिसकियों की सुनाई पड़ रही थी आवाज, हर किसी की आंखें थीं नम रुक नहीं रही थीं परिजनों की सिसकियां सीवान : औरंगाबाद के सोनदाहा जंगल में डुमरी नाले के पास नक्सलियों के विरुद्ध सर्च ऑपरेशन में सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन के कमांडो रवि के शहीद होने की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2016 7:04 AM

खरदरा गांव में हर तरफ मातम व सिसकियों की सुनाई पड़ रही थी आवाज, हर किसी की आंखें थीं नम

रुक नहीं रही थीं परिजनों की सिसकियां
सीवान : औरंगाबाद के सोनदाहा जंगल में डुमरी नाले के पास नक्सलियों के विरुद्ध सर्च ऑपरेशन में सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन के कमांडो रवि के शहीद होने की खबर मंगलवार की अहले सुबह गांव पहुंची. यह मनहूस खबर असांव थाने के खरदरा गांव में पहुंचने के साथ ही हर तरफ मातम फैल गया. घर के अंदर से शुरू हुईं सिसकियों की आवाज थमने का नाम नहीं ले रही थीं. हर किसी की आंखें नम थीं, तो सबकी जुबान पर अब रवि के गुजरे पल व उसकी बहादुरी के किस्से सुनाई पड़ रहे थे.
शहीद रवि के परिजनों का रहा है देशभक्ति का इतिहास : शहीद रवि के पिता मिथिलेश सिंह त्रिपुरा के अगरतल्ला में सीआरपीएफ में लंबे समय से तैनात हैं. पिता के एक सैनिक के रूप में देशभक्ति के किस्से सुन कर ही रवि जवान हुआ.
कहा जाता कि मिथिलेश सिंह के चाचा रामाकांत सिंह भी सीआरपीएफ में डिप्टी कमांडेंट रहे. रामाकांत की सैन्य क्षेत्र में दी गयी सेवा का असर लगातार आनेवाली पीढ़ियों में दिखी. मिथिलेश के सीआरपीएफ में जाने के बाद वे कई बार ड्यूटी के दौरान उल्फा उग्रवादियों के हमले में बाल-बाल बचे. इसके अलावा कश्मीर व पंजाब में भी तैनाती के दौरान कई विपरीत हालात का इन्होंने बहादुरीपूर्वक मुकाबला
किया. उनके जीवन से प्रभावित होकर उनके बड़े पुत्र रवि ने भी सेना में जाने की ठान ली तथा 19 वर्ष की उम्र में ही सीआरपीएफ में उनका चयन हो गया. उनका छोटे भाई रितेश कुमार सिंह इजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर बेंगलुरु में कार्यरत है. हालांकि, दादा रामकृपाल सिंह के मुताबिक, रितेश भी सेना के इंजीनियरिंग कोर में भरती के लिए तैयारी में जुटा है.
बेसुध पड़ी नम्रता को देख हर किसी की आंखों में छलक रहे आंसू : सेना की नौकरी की जिम्मेवारियों के कारण हाल यह रहा कि शादी के बाद भी रवि अपने परिवार के अधिक दिन करीब नहीं रहा. सीआरपीएफ कोबरा बटालियन में तैनाती के चलते छह साल की नौकरी में कई दुर्दांत इलाकों में रवि ने सेवा दी. तैनाती के कारण रवि अपनी नम्रता के साथ अधिकांश दिन खुशियों का पल नहीं बिता सका. रवि की शहादत की जब खबर घर पर आयी,
तो कुछ पल के लिए लोगों को विश्वास नहीं हुआ. लेकिन मनहूस खबर व होनी को आखिर कौन टाल सकता है. इसके बाद से नम्रता घर के एक कमरे में बेसुध पड़ गयी. मां संध्या देवी व छोटी बहन प्रिया के दहाड़ मार कर रोने से वहां मौजूद हर कोई रो पड़ा. बाबा रामकृपाल सिंह हर किसी को दिलासा देते दिखते हैं, लेकिन अपने भी आंसू रोक नहीं पाते हैं. उनको फफक कर रोते देख हर कोई रो पड़ रहा था.

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