पटना / सीवान : अब ऊपरवाले पर ही भरोसा है. अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिये न तो मेरे पास धन है और न ताकत. प्रदेश की सरकार से भी कोई मदद की उम्मीद नहीं है. यह दर्द है तेजाब से नहलाकर मार दिये गये दो बेटों के पिता चंदा बाबू का. यह दर्द है अपने तीसरे बेटे की मौत का जिसे गोली मार दी गयी. तेजाब हत्याकांड में मो. शहाबुद्दीन को जमानत मिलने के बाद चंदा बाबू टूट चुके हैं. उनका दर्द और उनकी व्यथा को बताने के लिये ऊपर की लाइनें काफी हैं. चंदा बाबू के पास ना ही ताकत है और ना उन्हें अब राज्य सरकार से उम्मीद है. इस हत्याकांड में जेल की सजा काट रहे मो. शहाबुद्दीन को पटना हाइकोर्ट ने जमानत दे दी. मो. शहाबुद्दीन ने भागलपुर के विशेष केंद्रीय कारा में अपना बेल बांड भरा है और शुक्रवार को रिहा होने की संभावना जताई जा रही है.
चंदा बाबू के तीन बेटों की हो चुकी है हत्या
चंदा बाबू के दो बेटों को वर्ष 2004 में तेजाब से नहलाकर मार दिया गया था. चंदा बाबू को इंसाफ और न्याय पर भरोसा था वक्त के साथ वह टूट गया. अव वे सिर्फ ऊपरवाले पर भरोसा रखना चाहते हैं. उनकी बात भी सही है कि उनके पास ताकत और पैसे का बल नहीं कि उनके लिये कोई बड़ा वकील उनका मुकदमा लड़े. उनके पास सियासत और राजनीतिक रसूख भी नहीं कि कोई उनकी आवाज को बुलंद करे. वैसे में उन्हें ऊपरवाले पर भरोसा है तो है. क्योंकि अंत में आम आदमी ऊपरवाले की ओर ही देखता है.
गरीबी में कट रही है जिंदगी
आज चंदा बाबू की हालत खास्ता है. दोनों पती-पत्नी बहुत मुफलिसी और गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. किसी ने सच कहा है कि दुनियां का सबसे बड़ा दुख होता है मां-बाप के कंधे पर बेटों का जनाजा. जिंदगी और खुशियां चंदा बाबू और उनकी पत्नी से पहले ही रूठ चुकी हैं. गत बारह सालों से गुनाहगारों को सजा मिले इसके इंतजार में चंदा बाबू ने लंबा जीवन काट दिया. पत्नी बीमार रहती है. बेटों की तस्वीरें जीवन का सहारा हैं. अब तो वह खुद ही कह रहे हैं कि अब सिर्फ ऊपरवाले पर भरोसा है.