छठ में कोसी भरना यानी वनस्पति की पूजा

छठ में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ देने की अलग महत्ता : पं धनंजय महाराजगंज/ दरौंदा : महाराजगंज अनुमंडल के दरौंदा प्रखंड के कोथुआ गांव निवासी ज्योतिषाचार्य धनञ्जय दुबे ने भेट वार्ता मे कहा कि अस्तांचल सूर्य का अर्घ सूर्य उपासना का अहम् दिन माना जाता है. छठ पूजा में संध्या समय सूर्य को अर्घ देना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 6, 2016 4:39 AM

छठ में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ देने की अलग महत्ता : पं धनंजय

महाराजगंज/ दरौंदा : महाराजगंज अनुमंडल के दरौंदा प्रखंड के कोथुआ गांव निवासी ज्योतिषाचार्य धनञ्जय दुबे ने भेट वार्ता मे कहा कि अस्तांचल सूर्य का अर्घ सूर्य उपासना का अहम् दिन माना जाता है. छठ पूजा में संध्या समय सूर्य को अर्घ देना अपने आप में रहस्य से भरा हुआ है.यह अवसर हमें छठ पूजा के दौरान मिलता है. कार्तिक मास में शुक्लपक्ष के षष्ठी तिथि को छठ में अस्तांचल सूर्य को अर्घ देने की परम्परा है. कार्तिक अमावस्या के ठीक छह दिन बाद मनाया जाता है और संध्या उपरान्त सूर्यास्त के समय सूर्य को जल देना यानि अर्घ देना सूर्य को पहला अर्घ माना जाता है,वही ज्योतिष के आधार पर माना जाता है
की सूर्य कार्तिक मास में जब तुला राशि में प्रवेश करते है तब वह नीचे की स्थिति में होते है, कार्तिक अमावस्या पर वह परम नीचे आ जाते है और सौर्यमंडल में अपनी यथा स्थिति में आने में पूरा छः दिन का समय लग जाता है.जिससे ज्योतिष शास्त्र के आधार पर छठे दिन उनका पहला दिन होता है,सौर्यमंडल में इस पहले दिन के अर्घ को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है,
वही संध्या अर्घ का महातम यह होता है की पृथ्वीवासी सूर्य को उनके पहले दिन से पूर्व ही उनके आगमन और रात्रि के अन्धकार को खत्म करने के लिए विशेष अनुग्रह से यह अर्घ दिया जाता है. वैज्ञानिक दृष्टि से और ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से संध्या के अर्घ समय सूर्य पृथ्वी के कुछ ऐसे अंश पर होते है जो साल भर में एक ही समय उनकी कुछ विशेष किरणे प्राप्त होती है . जिससे मानसिक तौर और शारीरिक तौर पर विशेष प्रभाव पड़ता है.इस दिन के बाद सूर्य की किरणे दिन प्रतिदिन तेज होती जाती है
जिससे बाद में यह अमृत मय किरण प्राप्त नहीं होता है, कोशी भरने की महातम भी काफी उत्साह वर्धक होती है क्योंकि ईंख की विशेषता के साथ साथ इसमें और समस्त बनस्पति पदार्थ की पूजा की जाती है, ईंख शक्ति मिठास, मधुरता का प्रतिक है और ईंख पर सूर्य का अधिपत्य होता है. कोशी भरना बनस्पति की पूजा है . जिसके करने से हम निरोग रहते और कामना करते है की सदैव घर अन्न से धन से भरा रहे.कोशी विशेष कर्मरूपी अनपूर्णा की पूजा है, संध्या समय में अपने घर के आंगन या घर में और छठ के सूर्योदय समय में घाट पर भी कोसी भरा जाता है.
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ आज : दरौंदा . नहाय-खाय के साथ शुक्रवार को शुरू हुए लोक आस्था के महा पर्व छठ पूजा की धूम चहुंओर देखने को मिल रही है. बाजारों में जहां खरीदारी के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा है. वहीं घरों में व्रती महिलाओं द्वारा गाये जा रहे छठ मइया के परंपरागत गीतों से पूरा वातावरण भक्ति मय हो गया. शनिवार को जहां दिन भर व्रती महिलाओं ने खरना कर शाम को छठ मइया का पूजा-अर्चना कर रसियाव घी से बनी रोटी का सेवन किया.
रविवार को प्रखंड मुख्यालय से लेकर गावों तक छठ घाटों, सरोवरों पर आस्था का सैलाब उमड़ेगा. व्रती दिन भर निर्जला रहते हैं. शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ दे पुत्र की दीर्घायु की कामना करती है तो वहीं कई महिलाएं पुत्र की प्राप्ति के लिए भी भगवान भास्कर की उपासना करतीं हैं. रात में सूर्य की उपासना करने के लिए रात्रि में कलश स्थापना करने के लिए फल, मिष्ठान, गन्ना के पूजन करती हैं. जिसे कोशी भरना भी कहते हैं. पुन सोमवार को प्रात: काल भगवान भास्कर को अर्घ दे व्रत का समापन करती हैं.

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