सराहनीय. सदर अस्पताल में कुल सीजेरियन का 60 % बीपीएल परिवार का हुआ

सीवान : सदर अस्पताल में प्रसव कराने आनेवाली महिलाओं के लिए 2016 का साल बेहतर सेवा देने वाला साल रहा. वर्ष 2016 के महिला वार्ड के आंकड़ों को देखने के बाद विभाग के अधिकारियों को अब यह भ्रम नहीं रहना चाहिए कि सदर अस्पताल में वही लोग उपचार कराने आते हैं, जिनके पास डॉक्टर को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 3, 2017 11:52 PM

सीवान : सदर अस्पताल में प्रसव कराने आनेवाली महिलाओं के लिए 2016 का साल बेहतर सेवा देने वाला साल रहा. वर्ष 2016 के महिला वार्ड के आंकड़ों को देखने के बाद विभाग के अधिकारियों को अब यह भ्रम नहीं रहना चाहिए कि सदर अस्पताल में वही लोग उपचार कराने आते हैं, जिनके पास डॉक्टर को दिखाने के लिए फीस तक नहीं होती.

वर्ष 2016 में सदर अस्पताल में कुल 7332 महिलाओं का प्रसव हुआ. इसमें से 4364 महिलाएं बीपीएल परिवारों से हैं. विभाग के अनुसार कुल प्रसव का कम से कम पांच प्रतिशत जटिल प्रसव होता है, जिसे सीजेरियन की जरूरत होती है. इस हिसाब से 366 महिलाओं का ही सीजेरियन का लक्ष्य था. लेकिन, विभाग की तत्परता से 570 महिलाओं का सदर अस्पताल में सीजेरियन किया गया. अगर यही व्यवस्था विभाग कम से कम तीनों रेफरल व अनुमंडल अस्पतालों में कर देता है, तो जिले के गरीब परिवार की महिलाओं को काफी राहत होगी तथा मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी आ सकेगी.

बच्चे रह जाते हैं जीरो डोज टीके से वंचित : सदर अस्पताल में जन्म लेनेवाले करीब 16 प्रतिशत बच्चे जीरो डोज टीके से वंचित रह जाते हैं. 2016 में सदर अस्पताल में कुल 7400 बच्चों ने जन्म लिया. इनमें से 6276 बच्चों को ही जीरो डोज टीका लगाया जा सका है. जननी शिशु रक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत आशा को महिलाओं के गर्भधारण के बाद ही उसका नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों में रजिस्ट्रेशन करा कर नियमित जांच व टीके लगवाना है. आंकड़े बताते हैं कि प्रसव कराने आनेवाली करीब 70 प्रतिशत महिलाओं की प्रसव के पूर्व न तो जांच होती है
और न उनको टीके लगाये जाते हैं. ऐसे मामले जांच के दौरान भी सदर अस्पताल में मिले हैं. इसमें प्रसूता महिलाओं का प्रसव के पूर्व की गयी जांच फर्जी पायी गयी है. इस प्रकार के फर्जी काम करने वाली करीब सौ से अधिक आशा को चिह्नित भी किया गया है.
पैदा होनेवाले करीब 16 प्रतिशत बच्चे वंचित रहे टीकाकरण के जीरो डोज से
स्टील बर्थ, पीपीएच के मामले में विभाग है उदासीन
सदर अस्पताल में 2016 में 136 बच्चे मृत पैदा हुए. विभाग इस प्रकार के जन्म को स्टील बर्थ कहता है. लेकिन सच्चाई यह है कि ये आंकड़े स्टील बर्थ वाले बच्चों के नहीं हैं. इसमें से कुछ वैसे मृत बच्चे हैं, जिनकी प्रसव में नर्स द्वारा लापरवाही बरतने या जन्म के बाद हुई परेशानी से मौत हुई है. लेकिन, विभाग अपनी गलतियों पर परदा डालने के लिए स्टील बर्थ कहता है.
पिछले साल करीब-करीब 88 महिलाओं को प्रसव के बाद पोस्टमार्टम में हेमरेज तथा 65 महिलाओं को एकलेमसिया की शिकायत हुई. प्रसव के दौरान करीब 13 महिलाओं की मौत भी हुई है. बच्चों के जन्म दर को कम करने के लिए महिलाओं के प्रसव के बाद ही प्रोत्साहित कर कॉपर टी लगाना है. 7332 प्रसूताओं में मात्र 429 महिलाओं को सदर अस्पताल में पिछले साल प्रसव के बाद कॉपर टी लगाया गया. इसके लिए विभाग द्वारा प्रसूताओं को अलग से प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है.
पहले से काफी सुधार आया सदर अस्पताल में
जिले में जब मैंने योगदान दिया. उस समय सदर अस्पताल में सीजेरियन करीब नहीं के बराबर होता था. मैंने महिलाओं की समस्या को देखा तथा काफी प्रयास के बाद सीजेरियन शुरू कराया. महिला वार्ड में कुछ सुधार की जरूरत है. हम उसकी समीक्षा कर उसको ठीक करने का प्रयास करेंगे.
डॉ शिवचंद्र झा, सिविल सर्जन सीवान

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