सीवान. जिले के गुठनी प्रखंड में सरयू नदी के बाढ़ ने जहां किसानों के खेतों में लगी सैकड़ों एकड़ फसलों को नुकसान पहुंचाया. वहीं सरयू नदी में जलस्तर बढ़ने से दर्जनों गांवों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. इस साल 115 एकड़ से अधिक कृषि योग्य भूमि नदी के तेज कटाव में जमीनदोज हो गया. वहीं किसान इस बात से खासे चिंतित हैं कि आने वाले दिनों में वह खेती कैसे कर पायेंगे. इसका सबसे बड़ा कारण बाढ़ के बाद निचले इलाकों में जलजमाव, खेतों में खरपतवार और नमी है. किसानों का कहना है कि बाढ़ के पानी के बाद खेतों में महीनों तक नमी मौजूद रहता है. जिससे जुताई, बोआई और बीजों का सही से रोपण नहीं हो पाता है. जिससे मौसमी खेती पर खासा प्रभाव पड़ता है. किसानों का कहना है कि सरयू नदी के बढ़ते जलस्तर से फिर एक नयी मुसीबत सामने आ गयी है. क्योंकि जो पानी कम हुआ था वह फिर बढ़ने लगा है.
प्रखंड में बाढ़ के पानी से जहां हर साल सैकड़ों एकड़ फसलों को नुकसान पहुंचता है, वहीं बाढ़ के पानी से करीब एक हजार हेक्टेयर भूमि पर जलजमाव हो जाता है. जिनमें बलुआ, तिरबलुआ, ग्यासपुर, मैरिटार, पांडेयपार, खडौली, योगियाडीह, गोहरुआ, गुठनी पश्चिमी, श्रीकरपुर समेत दर्जनों गांव की किसान बाढ़ के पानी से आने वाले मौसम की खेती पर पीछे हो जाते हैं. उनका कहना था कि समय से खेती नहीं होने से फसलों पर इसका काफी असर पड़ता है. ग्रामीणों का आरोप था कि जल संसाधन विभाग द्वारा अगर समय पूर्व इसकी तैयारी कर ली जाती तो हम लोगों को इसका नुकसान नहीं उठाना पड़ता.
प्रखंड में निचले इलाकों में घुसने वाले बाढ़ के पानी से जहां जलजमाव से खेती पर असर पड़ता है. वहीं किसानों द्वारा बोये जाने वाले गेहूं, सरसों, मटर, आलू और मौसमी सब्जियों पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है. इससे पीड़ित किसान खेती के लिए इंतजार करते हैं. जब खेत पूरी तरह सूख जाते हैं और उनमें आये खरपतवार पूरी तरह खत्म हो जाते हैं. उसके बाद उनके द्वारा उसमें जुताई शुरू की जाती है. किसानों का कहना था कि जलजमाव व खरपतवार के वजह से हमारी खेती हर साल पीछे हो जाती है.
बीएओ विक्रम मांझी ने कहा कि इसके लिए स्थानीय लोगों और किसानों से संपर्क किया जायेगा. साथ ही इनको समय से बीज, यूरिया, पोटाश, कीटनाशक, दवाएं उपलब्ध करायी जायेगी.