आनंद मिश्र, बड़हरिया, शराबबंदी लागू होने के बाद बहुतों की बदहाल जिंदगी में खुशहाली आयी है.शराबबंदी ने न केवल टूटते-बिखरते परिवारों को बचाया है.बल्कि घरेलू हिंसा की शिकार होती रही आधी आबादी को भी बड़ी राहत मिली है. नशा मुक्ति से बहुत-से लोगोंं की लड़खड़ाती जिंदगी को नया आयाम मिला है व उनमें नयी जिन्दगी जीने की तमन्ना जगी है.बहुतों ने शराब से तौबा कर न सिर्फ अपनी बेपटरी हो चुकी ज़िंदगी को संंभाला है. अपितु अपने परिवार को भी बदहाली से बचाया है. इसका जीता-जगता मिसाल हैं प्रखंड के सदरपुर निवासी ललन सिंह . एक समय था जब सदरपुर के स्व चंंद्रदेेेव सिंह के पुत्र ललन सिंह असम के जोरहाट में कपड़ा व्यवसायी के रूप में जाने जाते थे. साथ में इनकी पत्नी गीता देवी अपने तीन बच्चों के साथ अपनी जिंदगी मस्ती से काट रही थी. अच्छी आय के साथ इनका जीवन मजे में कट रहा था. कुछ पारिवारिक कारणों से इन्हें अपने गांव आना पड़ा. नये दोस्त मिले. और शराब की लत लग गयी. शराब ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया. देखते ही देखते ललन बााबू अब ललनवा हो चुके थे. इनका पूरा कारोबार डूबने लगा.आर्थिक तंगी ने इनको पूरी तरह तबाह कऱ दिया. इतना ही नहीं,कुछ दिनों के बाद ये मानसिक रोग के साथ ही अन्य रोगों से ग्रसित हो गए.शराब के कुप्रभाव से चेहरा डरावना हो गया. पिता की दशा देख बच्चों की आंखों की चमक गायब हो गयी . सपने टूटने व बिखरने लगे. शांत व संभ्रांत परिवार कलह व निराशा के गर्त में चला गया. इनकी सिसकती जिंदगी में आशा की किरण बनकर आयीं शराबबंदी का समर्थन करनेवाली जीविका दीदी मीरा देवी. उन्होंने ललन सिंह की पत्नी गीता देवी को स्वयं सहायता समूह में जोड़ा. आर्थिक मदद दी गयी. इधर प्रदेश में शराबबंदी लागू हो चुकी थी. पारिवारिक व सामाजिक दबाव में ललन सिंह ने शराब से तौबा कर ली.इनकी जीवनशैली में बदलाव आया.पत्नी ने पति का भरपूर साथ दिया. ललन सिंह ने गांव में ही किराना की दुकान खोल लिया है.अब वे सम्मानपूवर्क जीवन व्यतीत कर रहे हैं व किराना की दुकान से अपने पूरे परिजनों का न केवल भरण-पोषण कर रहे हैं ,बल्कि बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा भी दे रहे हैं.दम तोड़ती जिंदगी जीवंत हो चुकी है. बच्चों की आंखों की चमक लौट आयी है. बच्चे पढ़-लिख कर कुछ बनने के सपने देख रहे हैं.
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