Siwan News : लोक आस्था के महापर्व को लेकर टोकरी-सूप की बढ़ी मांग

Siwan News : जिले में बांसफोड़ जाति की महिलाएं बांस में रोजगार तलाश रही है. जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बिना खाद पानी के उगने वाले लंबे हरे घने बांस से महिलाएं बांस से टोकरी, दउरा, पंखा आदि बनाकर आत्मनिर्भर हो परिवार के भरण-पोषण में हाथ बटा रही हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | November 2, 2024 10:33 PM

सीवान. जिले में बांसफोड़ जाति की महिलाएं बांस में रोजगार तलाश रही है. जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बिना खाद पानी के उगने वाले लंबे हरे घने बांस से महिलाएं बांस से टोकरी, दउरा, पंखा आदि बनाकर आत्मनिर्भर हो परिवार के भरण-पोषण में हाथ बटा रही हैं. महिलाएं अब पुरुषों के सहारे नहीं रहकर पुरुषों की भागीदारी बन रही हैं. त्योहार आने पर पारंपरिक रोजगार को संजीवनी मिलने से परिवार को रोजगार मिलता है. मुख्य रूप से लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के अवसर पर सूप, टोकरी की डिमांड काफी बढ़ जाती है. इसको लेकर बांसफोर परिवार के लोग सामग्रियों के निर्माण कार्य में जुट गये हैं. बता दें कि लोक आस्था के महापर्व छठ में सूप, टोकरी के डिमांड बढ़ने से बांसफोड़ परिवार के सदस्य निर्माण कार्य में जुट गये हैं. इस रोजगार में मुनाफा घटा है. लेकिन, पारंपरिक कला के माध्यम से रोजगार मिलना बड़ा संबल है खासकर त्योहार के समय रोजगार की किल्लत और मजदूरी के अभाव में यह कला उनके लिए संजीवनी बनती है. महापर्व के बहाने ही सही यह कला उनके लिये ये पुश्तैनी कला उनके रोजगार का माध्यम बनती रही है. इसको लेकर वे इसे संजोने की हर संभव पहल कर रहे हैं. निर्माण कार्य में जुटे कामगारों की मानें तो पूर्व के अनुसार अब इस रोजगार में मुनाफा में कमी आयी है. बांस की कीमत में काफी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन उसके अनुसार सही कीमत नहीं मिलता है.

प्रशिक्षण की है आवश्यकता

मानो देवी, पुनिया देवी बताती हैं कि वे लोग दलित समाज से हैं, जिनका बांस के साथ पीढ़ियों का साथ रहा है. बांस से विभिन्न प्रकार की गृहोपयोगी वस्तुओं का निर्माण उनका पुश्तैनी काम रहा है. दलित समाज में बचपन से इस काम का प्रारंभिक प्रशिक्षण घर में ही मिल जाता है, जिसका लाभ उन्हें मिलता है और घर के रोजगार से उनका जुड़ाव बचपन से ही हो जाता है. हालांकि समय के अनुसार काम में ओर बेहतर गुणवत्ता लाने को लेकर प्रशिक्षण की आवश्यकता है जिसकी मांग समाज के लोगों द्वारा समय-समय पर की जाती रही है. सूप, टोकरी के निर्माण में जुटे रेशमी देवी और सुजीत ने बताया कि हमलोग प्रतिवर्ष तीन चार सौ सूप और सैकड़ों टोकरी की बिक्री कर देते हैं.

बांस की कीमत 250 तक

सूप व टोकरी बना रहे कामगार मुकेश बसफोड़, चंदन मलिक, पप्पू मलिक, पवनी देवी आदि ने बताया कि बांस की कीमत 200 से 250 तक पहुंच गयी है. एक टोकरी के निर्माण में तीन घंटे का समय लगता है, जबकि 20 से 50 तक मुनाफा मिलता है. प्लास्टिक उत्पादन की डिमांड बढ़ने के कारण इन सामग्री की बिक्री घटी है, लेकिन महापर्व में आज भी आस्था के कारण लोग इन सामग्रियों का प्रयोग करते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version