जहरीली शराब से गयी आंखों की रोशनी
थाना क्षेत्र के विभिन्न गांवों में शराब पीकर नेत्रहीन हुए लोगों की जिंदगी अब अधर में लटक गयी है. आंख की रोशनी खाने के बाद उनके जीवन में आर्थिक व सामाजिक कठिनाईयां भी बढ गयी है. दैनिक जीवन के सामान्य कार्य, जो पहले उनके लिए आसान थे, अब किसी पहाड़ चढ़ने के समान हो गया है.
संवाददाता भगवानपुर हाट. थाना क्षेत्र के विभिन्न गांवों में शराब पीकर नेत्रहीन हुए लोगों की जिंदगी अब अधर में लटक गयी है. आंख की रोशनी खाने के बाद उनके जीवन में आर्थिक व सामाजिक कठिनाईयां भी बढ गयी है. दैनिक जीवन के सामान्य कार्य, जो पहले उनके लिए आसान थे, अब किसी पहाड़ चढ़ने के समान हो गया है. कई पीड़ितों के ऐसे परिवार हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, जिससे वे पीउ़ित का ठीक से इलाज भी नहीं का पा रहे हैं. काम करने में असमर्थ होने के कारण परिवार के लिए रोटी कमाना भी चुनौती बन गया है. जबकि कुछ लोग पूरी तरह से परिवार के सदस्यों पर निर्भर हो गये हैं. सरकारी योजनाओं और मदद की उम्मीद लगाये ये लोग अपनी जिंदगी को जैसे-तैसे जीने के लिए मजबूर हैं. अब तक कई प्रभावित परिवारों को न तो कोई मुआवजा मिला है और न ही सरकारी सहायता. जहरीली शराब पीने से अंधे हुए लोगों की स्थिति दिन-ब-दिन और दयनीय होती जा रही है. आंखों की रोशनी खोने के बाद उनके लिए जीवन की सामान्य गतिविधियां भी एक संघर्ष बन गया है. खेती, मजदूरी कर परिवार चलाने वाले ये लोग अब अपने जीवन को चलाने में असमर्थ हो गये हैं. बताते चलें कि थाना क्षेत्र के कौड़ियां, वैश्यटोली, खैरवा, बिलासपुर, माघर, सोंधानी में पिछले वर्ष अक्टूबर जहरीली शराब पीने से 28 लोगों की मौत हो गयी थी. जबकि पांच से छह लोगों के आंखों की रोशनी चली गई थी. जहरीली शराब पीने से आंखों की रोशनी गवां चुके मकबूल हसन ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई है. काम करने वाला एकमात्र सदस्य मैं ही था. चार छोटे -छोटे बच्चे हैं. बच्चों की परवरिश कैसे होगी यही चिंता सताती है. वहीं आंखों के रोशनी खोनेवाले जय शंकर कहते हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और महंगे इलाज ने समस्याओं को और बढ़ा दिया है. जरूरी इलाज भी नहीं करवा पा रहे हैं, जिससे हमारी स्थिति और गंभीर होती जा रही है. इसके अलावा, समाज में भी हमें अलग नज़रों से देखा जाने लगा है. वहीं पीड़ित शैलेश साह ने बताया कि पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो गए हैं. पीड़ित विवेक ठाकुर ने कहा कि परिवार वाले भी अब बोझ मानने लगे हैं, जिससे मानसिक तनाव और बढ़ता जा रहा है. प्रशासन की ओर से किये गये वादे अब तक अधूरे ही हैं. उन्होंने बताया कि मै सैलून का दुकान चलाकर परिवार का खर्चा उठता था. पीड़ित मनोज महतो ने बताया कि परिवार और बच्चों का पालन पोषण कैसे होगा चिंता बनी रहती है. इसके दो छोटे छोटे बच्चे हैं. ये लोग लगातार सरकार और प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन राहत के नाम पर उन्हें आश्वासन के अलावा अबतक कुछ नहीं मिला हैं.
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