मनीष कुमार गिरि, सीवान. प्रचंड गर्मी के बीच मानसून की अनिश्चितता ने किसानों की परेशानी को बढ़ा दिया है. किसानों को खरीफ फसल की बोआई की चिंता सता रही है. वहीं कृषि विभाग भी यह सोचकर चिंतित है कि यदि यह स्थिति रही तो सरकार द्वारा निर्धारित खरीफ फसल के लक्ष्य की पूर्ति किस प्रकार होगी. हालात यह है कि रोहिणी नक्षत्र में बारिश नहीं हुई. जबकि मृगशिरा नक्षत्र चल रहा है. 22 जून से आद्रा नक्षत्र की शुरुआत हो रही है. जिले में प्री मानसून की बारिश भी अन्य सालों की अपेक्षा कम हुई है. आमतौर पर किसान बिचड़ा के लिए धान रोहिणी नक्षत्र में ही गिराते है. किसान इस समय बारिश का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. सामान्य तौर पर 15 जून के बाद राज्य में मॉनसून सक्रिय हो जाता है. मौसम विज्ञान विभाग ने इस बार समय से पहले बिहार में मॉनसून के दस्तक देने की बात कही थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बूंदाबांदी को छोड़कर अबतक ऐसी बारिश नहीं हुई है, जिससे कि किसानों को कुछ खास फायदा हो. खरीफ सीजन के दौरान जिले के किसान बड़ी मात्रा में धान की खेती करते हैं. खरीफ फसलों की खेती करने वाले किसानों ने जून के प्रथम सप्ताह में खेती की तैयारी शुरू कर दी थी. उन्होंने नर्सरी भी लगा दी है. लेकि अभी तक अच्छी बारिश नहीं हुई है. इस स्थिति से किसान खेती को लेकर काफी आशंकित नज़र आ रहे हैं. जहां बिचड़ा गिर गया है, वहीं गर्मी के चलते विकास नहीं हो रहा है. यदि किसानों को पर्याप्त बारिश के अभाव में अन्य साधनों से सिंचाई कर धान की रोपाई करनी पड़ी तो यह सभी किसानों के लिए काफी महंगा साबित होगा. क्योंकि ऐसी स्थिति में लागत काफी बढ़ जाएगी. 1.28 लाख हेक्टेयर में है खरीफ का लक्ष्य- प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी आलेख कुमार ने बताया कि जिले में खरीफ फसल का लक्ष्य एक लाख 28 हजार 206 हेक्टयर निर्धारित किया गया है. जिसमें सबसे अधिक धान की खेती का लक्ष्य 99 हजार 204 हेक्टेयर तय किया गया है. इसके बाद अरहर का 3602, बाजरा का 1340, ज्वार का 932, सावां का 1174, सोयाबीन का 18 व कुल्थी का तकरीबन 39 हेक्टेयर में शामिल है. 900 हेक्टेयर में गिर चुका है बिचड़ा- विभाग की बातों पर गौर करें तो धान की खेती के लिये 9920 हेक्टेयर में धान के बिचड़ा की जरूरत पड़ेगी. विभाग की बातों पर गौर करें तो अबतक मात्र 10 फीसदी यानी 900 हेक्टेयर में बिचड़ा गिरने का दावा किया गया है. पंपसेट व नहर हैं सिंचाई के साधन- जिला में सिंचाई के साधन के तौर पर किसानों द्वारा पंपसेट व नहर का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है. अबतक के हालात ऐसे हैं कि जहां बहुतेरे नहरों में पानी नहीं आया है, वहीं डीजल की महंगाई से किसान खेती से मुंह मोड़ रहे हैं. 58 हजार एमटी उर्वरक की पड़ती है जरूरत- खरीफ फसल के लिए 58 हजार 944 मीटरिक टन उर्वरक की जरूरत जिला में पड़ती है. सबसे अधिक खपत 32870 एमटी यूरिया की होती है. इसके अलावे डीएपी की 15174, एमओपी की 2200, एनपीकेएस की 5500 तथा एसएसपी की 3200 एमटी शामिल है. विभाग का दावा है कि उसके पास अभी 25203 एमटी उर्वरक उपलब्ध है, जिसमें 17715 एमटी यूरिया, 3003 एमटी डीएपी, 298 एमटी एमओपी, 3561 एमटी एनपीकेएस व 207 एमटी एसएसपी उर्वरक उपलब्ध है. जून में अबतक एक फीसदी से कम बारिश- चूंकि धान की खेती के लिए जून का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस महीना में किसान धान का बिचड़ा गिराते है. और तैयार बिचड़ा से धान की रोपनी करते है. परंतु जून महीना किसानों को दगा दे गया है. अबतक 15 दिनों में एक फीसदी से कम बारिश हुई है. जून में औसतन वर्षापात 143 एमएम होनी चाहिए. इन 15 दिनों में 71 एमएम बारिश होनी चाहिए थी. जबकि 0.83 एमएम बारिश हुई है. जो 99 फीसदी कम है. पिछले दो साल के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2022 में जून में 104 एमएम व वर्ष 2023 में 49.21 एमएम बारिश हुई थी. पिछले वर्ष जून महीने में लक्ष्य से 65.73 फीसदी कम बारिश हुई थी. हालांकि इस वर्ष अबतक 98.84 फीसदी कम है. वैकल्पिक फसलों की करें खेती कृषि विभाग के कर्मियों का कहना है कि मानसून की अनिश्चितता को देखते हुए किसानों को खरीफ के वैकल्पिक फसलों की खेती करनी चाहिए. जिससे उन्हें कम लागत में अच्छी पैदावार प्राप्त हो. धान की नर्सरी लगाने के 35 दिनों के अंदर की बुआई कर देनी चाहिए. 25 दिन से पुरानी नर्सरी के बिचड़े से रोपाई करने से कल्ले कम निकलते हैं. इससे प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या घट जाती है और इससे उपज में भारी कमी आती है. इस स्थिति को देखते हुए बेहतर होगा कि किसान बारिश के सक्रिय होने का इंतजार करें. किसानों को यह भी ध्यान रखना होगा कि वो किसी भी परिस्थिति में 35 दिन से ज्यादा पुराने बिचड़े से धान की रोपाई न करें. अगर बिचड़े 35 दिन से अधिक पुराने हैं तो बेहतर होगा कि वो धन की सीधी बीजाई कर दें. बारिश नहीं होने की परिस्थिति में किसान दलहनी फसलों को भी लगा सकते हैं. अरहर, उड़द और मूंग की खेती में भी काफी अच्छा मुनाफा है. लेकिन इन फसलों को उसी जगह लगाने की सलाह दी जाती है, जहां जल निकास बहुत ही अच्छा हो. इसके अलावा मक्का एवं तिल की भी खेती की जा सकती है. आजकल किसानों को मोटे अनाज से भी अच्छा फायदा हो रहा है तो मॉनसून की वर्तमान दशा को देखते हुए मोटे अनाज के विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है. क्या कहते हैं डीएओ मौसम की मार खेती पर दिख रही है. मानसून को देरी से आने की संभावना है. बिचड़ा डालने से पहले किसान खेतों की सिंचाई कर लें. उर्वरक कर प्रयोग न के बराबर करे. जैविक खाद का प्रयोग अधिक से अधिक करें. किसानों के बीच बीज वितरण का कार्य सुचारू रूप से जारी है. खाद का पर्याप्त भंडार है. आलेख कुमार, प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी, सीवान
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है