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रक्षाबंधन: बिहार के इस जिले में है भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक भइया-बहनी मंदिर…

रक्षाबंधन भैया-बहिनी मंदिर नाम से प्रसिद्ध इस अति प्राचीन मंदिर में रक्षाबंधन के ठीक एक दिन पहले अपने भाईयों की लामती,तरक्की,और उन्नति की खातिर पूजा करने के लिए महिलाओं और युवतियों की भरी भीड़ उमड़ती है.

महाराजगंज अनुमंडल के भिखाबांध में सीवान -पैगंबरपुर सड़क में भइया बहनी का मंदिर अवस्थित है. मंदिर के चारों तरफ 12 बीघे में फैला सैकड़ो जट्टानुमा खड़ा वट वृक्ष ऐतिहासिक दृश्य प्रदर्शित कर रहे है. उक्त स्थल पर पर परंपरागत महावीरी झंडा मेला लगता है. इस साल 19 अगस्त (रक्षाबंधन के दिन) मेला लगेगा. इसके लिए प्रशासन ने सुरक्षा की सारी तैयारी पूरी कर ली है.

भैया-बहिनी मंदिर नाम से प्रसिद्ध इस अति प्राचीन मंदिर में रक्षाबंधन के ठीक एक दिन पहले अपने भाईयों की सलामती,तरक्की,और उन्नति की खातिर पूजा करने के लिए महिलाओं और युवतियों की भरी भीड़ उमड़ती है.गौरतलब है कि भैया-बहिनी नामक इस मंदिर में न तो किसी भगवान की मूर्ति है और ना कोई तस्वीर बल्कि मंदिर के बीचोबीच मिट्टी का एक ढेर मात्र है. भाई-बहन के अटूट रिश्तों में बंधी बहने इसी मिट्टी के पिंड और मंदिर के बाहर लगे बरगद के पेड़ो की पूजा कर अपने भाईयों की सलामती, उन्नति और लंबी उम्र की कामना करती हैं.

कुष्ठ रोग से होता है निवारणजनवरी 1780 में महाराजगंज शहर के किशोरी साह स्वर्ण व्यवसायी सफेद चर्म रोग से ग्रसित थे. भइया बहनी के पास किसी गड्ढे में पानी लगा था. शौच के दौरान जब वे गड्ढे के पास गये ज्योंही पानी में हाथ डाला, उनका हाथ निपुण हो गया. इसके बाद श्री साहू ने पानी से शरीर को धो डाला, संपूर्ण शरीर बिल्कुल ठीक हो गया. मंदिर का निर्माण कराया. तब से महाराजगंज के सोनार जाति के लोग सावन के अष्टमी के दिन भइया बहनी के स्थान पर धूमधाम से परंपरागत पूजा करते आ रहे है.

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नहीं काटी जाती पेड़ की टहनीपूर्वज लोग पूर्व से ही उक्त स्थल पर भइया बहनी का पूजा पाठ करते आ रहे है. भाई-बहन मरणोप्रांत दुर्गा व ब्रह्म के रूप में आज भी मौजूद है. जहां श्रद्धा से पूजा पाठ करने वालों की मन्नतें पूरी होती है. यहां लोकल को कौन कहे दूर-दराज के प्रदेशों से भी लोग वर्तमान दृश्य को देखने व पूजा पाठ के दौरान मन्नतें मांगने आते है. आस पड़ोस के लोग यह भी कहते है कि वट वृक्ष फैलते फैलते निजी जमीन में चला गया है. कोई एक टहनी भी नहीं काट सकता. काटने पर उसके साथ कोई न कोई अप्रिय घटना घट ही जाती है.

कौन थे, भइया बहनीछपरा जिले के एकमा थाना क्षेत्र के भलुआ गांव के सगे भाई बहन थे. भाई बहन को ससुराल से अपने घर एकमा के भलुआ गांव ले जा रहा था. भिखाबांध गांव के समीप सड़क के किनारे जंगल झाड़ी था. लोगों का माने तो उस समय मुगल सेनाओं का आतंक चरम पर था. मुगल सेना को देख कर भाई बहन झाड़ी में छिप गये, मगर मुगल सेना के सिपाही दोनों को देख लिया था.

भाई बहन को पकड़ने के लिए जंगल को घेर लिया व तलाशी करनी शुरू कर दी. बहन अपने को असुरक्षित समझ कर सीता के समान धरती से प्रार्थना की. मां मुझे शरण दो धरती फटी भाई बहन पताल को शरणागत हुए. साथ ही हाथी-घोड़े पर सवार मुगल सिपाहियों का भी पतन उसी स्थल पर दैविक प्रकोप से हो गया.

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