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तेतहली की बनी बांसुरी के कद्रदान विदेशों में भी

बड़हरिया. बांसुरी बनाने की महारत से प्रखंड के तेतहली की मिसकार जाति के लोगों की जिंदगी में खुशियां लौट आयी हैंं. कल तक मुफलिसी की जिंदगी बसर कर रहे ये कारीगर अपने हाथों के हुनर से अपना नसीब रोशन कर रहे हैंं.

By Prabhat Khabar News Desk | November 24, 2024 9:17 PM

संवाददाता,बड़हरिया. बांसुरी बनाने की महारत से प्रखंड के तेतहली की मिसकार जाति के लोगों की जिंदगी में खुशियां लौट आयी हैंं. कल तक मुफलिसी की जिंदगी बसर कर रहे ये कारीगर अपने हाथों के हुनर से अपना नसीब रोशन कर रहे हैंं. मॉरीशस, गुयाना सूरीनाम सहित अन्य देशों व पूरे हिंदुस्तान के महानगरों में अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं. जहां इन कारीगरों की महिलाएं भी बांसुरी बनाने में महारत रखती हैं,वहीं पुरुष बांसुरी से शास्त्रीय संगीत व पुरबिया तान निकालने में माहिर हैं.असमिया बांस, नरकट व अरहर के डंठल से बांसुरियों को मूर्त रुप देने वाली इन महिलाओं के हाथों में गजब का हुनर है. बांसुरी को आकर्षक व खूबसूरत बनाने की जिम्मेवारी महिलाओं को ही है तो उन्हें देश के विभिन्न तीर्थस्थलों,ऐतिहासिक स्थलों व देश के मशहूर शहरों में अपनी मनमोहक व सुरीली तान से लोगों को अपनी ओर खींचने व उसे बेचने का दायित्व पुरुष वर्ग को है.ऐसे तो इन शिल्पकारों के कद्रदान देश के सभी हिस्सों में हैं.लेकिन गोवा,मुम्बई, चेन्नई, हुबली,ग्वालियर, नासिक,पूणे आदि में इनके कद्रदान बहुत हैं. देश के सभी प्रमुख पर्यटनस्थलों में आने वाले विदेशी पर्यटक इनकी कमाई के मुख्य स्रोत हैं. इनकी संगीत-लहरी में रमने वाले ये पर्यटक इनकी बांसुरी को मुंहमांगी कीमत देते हैं.चाहे फिल्मों के गीत-संगीत होंं या शास्त्रीय संगीत या लोक संगीत हो, इन्हें बखूबी आता है. तेतहली मो इब्राहिम, मो दिलदार, अरमान,मो असलम,मैनुद्दीन, नूर मोहम्मद ,मंजर,अली अख्तर, मंजूर, संजूर सहित कई ऐसे नाम हैं, जो न केवल बांसुरी बनाने में माहिर हैं.बल्कि इन्हें अपनी बांसुरी की कर्णप्रिय तानों से लोगों को लुभाने की महारत है. मो इब्राहिम कहते हैं कि भले देश व विदेश में हमारे पारखी व कद्रदान हैं. लेकिन सरकार उनकी कला को जीवंत रखने की दिशा में आजतक कोई कारगर कदम नहीं उठा पायी है.

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