सोनपुर मेले से यूरोप भेजी जाती थीं कीमती चीजें, अंग्रेज चलाते थे आधी से अधिक दुकानें, जानें अब कैसे हैं हालात
पशु व्यापार के लिए मशहूर सोनपुर मेला अब सिर्फ घोड़ों, कुत्तों और बकरियों की खरीद-बिक्री तक सिमट गया है. इस बार मेले में घोड़े बेचने के लिए 100 से ज्यादा व्यापारी आए थे. हालांकि, बेमौसम बारिश और ग्राहकों की कमी के कारण ज्यादातर विक्रेता वापस लौट गये हैं. जानिए मेले के कारोबारी इतिहास को...
Snepur Mela : कभी अपनी भव्यता के लिए मशहूर सोनपुर मेला अब छोटे दायरे में सिमट कर रह गया है. अब मेले में न तो पहले जैसी रौनक है और न ही प्रशासनिक अधिकारियों का जमावड़ा रहता है. अब यह केवल घोड़ों, कुत्तों और बकरियों की खरीद-बिक्री तक ही सीमित रह गया है. मेले में इस बार राजस्थानी, पंजाबी, सिंधी और देशी नस्ल के घोड़ों की बिक्री के लिए करीब 100 से अधिक व्यापारी मेले में आये थे. हालांकि बेमौसम बारिश और ग्राहकों की कमी के कारण अधिकतर विक्रेता लौट चुके हैं. मगर इस सोनपुर मेले का इतिहास काफी पुराना और उन्नत रहा है. इसके इतिहास को लेकर कई दावे किए जाते हैं. इसमें से एक दावा हरिहर नाथ मंदिर के चबूतरे पर लगे शिलापट्ट के आधार पर है. 1360 ईस्वी के इस शिलापट्ट में कहा गया है कि हरिहर नाथ मंदिर सनातन से है और यहां कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव होता है.
सोनपुर से सीधे जुड़ा था अफगानिस्तान
वहीं सोनपुर मेले के इतिहास को लेकर इसके बारे में गहन शोध करने वाले सोनपुर के लेखक और वरिष्ठ अधिवक्ता उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि कभी सोनपुर का व्यापारिक रूट सीधे अफगानिस्तान से जुड़ा था और अंग्रेजी काल तक अरब, ईरान से भी काफी उन्नत नस्ल के घोड़े यहां खरीद-बिक्री के लिए लाये जाते थे. उदय सिंह बताते हैं कि डॉ मोतीचंद्र ने अपनी पुस्तक ”सार्थवाह” में इसका उल्लेख किया है. सोनपुर-अफगानिस्तान के इस रूट को उत्तरा पथ कहा जाता था. तब मेले में दुनिया भर की बेशकीमती चीजें बेची जाती थीं. मसलन बनारस से मखमल, जरी के काम की वस्तुएं, कश्मीर के शॉल, कलकत्ता की मिठाइयों लेकर पंजाब की गाय, हरियाणा के बैल और भैंसे आदि ना जानें कितनी चीजों का व्यापार हाेता था. वे बताते हैं कि अंग्रेजों के समय आधी से अधिक दुकानें, और रेस्त्रां अंग्रेज ही चलाते थे. एशियाई देशों से खरीदी हुए जरूरी व कीमती चीजों को कोलकाता से समुद्र के रास्ते यूरोप भेजा जाता था.
चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में थे 6000 हाथी, सोनपुर मेले से ही होती थी खरीद
वर्तमान में सोनपुर मेले में हाथियों का बाजार नहीं लगता है. वर्षों पहले इस पर रोक लग चुकी है. पहले इस मेले में घोड़ों के अलावा हाथियों का भी बड़ा बाजार लगता था. कई राजा-राजवाड़े यहां से हाथियों को खरीद कर अपनी सेना में शामिल करते थे. प्रामाणिक साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय यहां हाथियों का बड़ा बाजार था. चंद्रगुप्त के सैन्य काफिले में 6000 हाथी थे और इसकी आपूर्ति सोनपुर मेले से ही की जाती थी. यहां तक की वैदिक काल से ही यहां हाथियों के दांत बाजार के बारे में भी जानकारी मिलती है. ऐसे में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यहां का पशु बाजार काफी पुराना है.
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घोड़ा बाजार : बारिश व ग्राहकों की कमी से लौट गये व्यापारी
इस बार 25 नवंबर से मेले की शुरुआत हुई है. शुरुआती दस दिनों में पशु मेला जोरों पर रहा, लेकिन बाद में बारिश की मार और ग्राहकों की कमी के कारण अधिकतर व्यापारी लौट गये. आगरा से आये पशु व्यापारी रमेश चंद्र ने बताया कि वो पांच घोड़े लेकर आये थे, अभी एक की भी बिक्री नहीं हुई. वहीं, मथुरा से आये बेचू ने बताया कि वह 20 वर्षों से वह मेले में घोड़ा लेकर आ रहे हैं. पहले उनके पिताजी आते थे. वर्तमान में सबसे बेहतर घोड़े राजस्थानी नस्ल के हैं. उनकी कीमत 1.5 लाख तक है.
घोड़ों की बिक्री में कमी
कुंडा के इरफान ने बताया कि उनके दादा जी और पिताजी भी घोड़ा बेचने के लिए सोनपुर आते थे. इस बार वे 15 घोड़ा लेकर आये हैं. तीन की बिक्री हुई है. पीलीभीत से आए बाबू भाई ने बताया कि वे गुजरात से सिंधी नस्ल के 15 घोड़े लेकर आये थे. पांच की बिक्री हुई है. सबसे अधिक 1 लाख का एक घोड़ा बिका है