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एशिया के सबसे बड़े सोनपुर पशु मेले में इस बार नहीं पहुंचे एक भी हाथी और ऊंट, पशु-पक्षी बाजार भी पड़े वीरान

विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला का आगाज हो चुका है. मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगता है. इस मेले को कभी छतर मेला के नाम से भी जाना जाता था, लेकिन अब लोग इस मेले को हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला के नाम से भी जानते है.

Sonepur Mela 2023: विश्व प्रसिद्ध एशिया के सबसे बड़े पशु मेला के रूप में पहचान बनाने वाले हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला पर वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम के शिकंजे का व्यापक असर दिख रहा है. कभी इस मेले में खरीद बिक्री के लिए या जल क्रीड़ा के लिए बड़ी संख्या में हाथी, घोड़े, चिड़िया, बैल, गाय आदि के बाजार लगते थे. लेकिन सरकार की उपेक्षा पूर्ण नीति और कृषि क्षेत्र में लगातार हो रहे वैज्ञानिक प्रयोगों ने बदलते परिवेश में मेले के लोकप्रिय स्वरूप पर गहरा प्रभाव डाला है. वहीं वन विभाग द्वारा भी मेला में हाथी, पशु-पक्षी आदि खरीद बिक्री के साथ-साथ उन्हें मेला में लाकर रखने की अनुमति नहीं दिए जाने के कारण इस बार मेला के पशु बाजार में हाथी और ऊंट नहीं पहुंचे हैं.

मेला में नहीं आया एक भी हाथी

सोनपुर मेला में वन्यप्राणी संरक्षण कानून ने पशु मेला में लगने वाले हाथी बाजार को सुनसान बना दिया है. मेले में हाथियों को लाने और रखने पर प्रतिबंध होने के कारण इस बार एक भी हाथी नहीं आया. इस वजह से मेला आने वाले श्रद्धालुओं को पवित्र स्नान के दौरान या बाद में हाथियों की जलक्रीड़ा का नजारा देखने को भी नहीं मिल रहा है. वैसे हाथी पालक जो लघु कालिक सांस्कृतिक रीति रिवाज के लिए मेले में हाथी लाना चाहते है उन्हें भी वन प्रमंडल पदाधिकारी से पूर्व में आवेदन देकर अनुमति लेनी पड़ती है. इस बार भी सोनपुर मेले में पशु एवं पक्षियों के विभिन्न बाजारों में पशु नदारद है. हालांकि प्रशासन द्वारा पशुओं के इलाज के लिए अस्थायी पशु अस्पताल एवं पशु दवा की व्यवस्था मेला क्षेत्र में की गयी है.

घोड़ा बाजार ने बचाई मेले की लाज

सोनपुर मेला में इस बार ऊंट की उपस्थिति भी नदारद है. मेले में इस बार बिक्री के लिए एक भी ऊंट नहीं लाए गए. लेकिन घोड़ों ने मेले की लाज बचा रखी है. इस बार घोड़ा बाजार में बिल्कुल भी खाली जगह नहीं है. हर जगह तंबू और शामियाने लगे हैं. हालांकि, मुगल और ब्रिटिश काल में काबुल के घोड़ा इस मेले की जान हुआ करते थे. जो अब मेले में उपलब्ध नहीं है, आजादी के बाद इनका आना बंद हो गया है. इस बार मेले में घोड़े विक्रेताओं के अलावा घोड़े प्रेमियों ने भी अपनी शानो-शौकत के साथ मेले में डेरा डाल दिया है. उसके तंबू में दो-चार कीमती घोड़े बंधे हुए हैं. जो अपने स्वामी की महिमा का बखान कर रहे हैं.

बैल बाजारों में पहुंचते हैं वीआइपी

मेले में लगने वाला बैल बाजार व घोड़ा बाजार आज भी इस मेले में अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है. मेले में लगने वाला बैल बाजार अपनी रौनक बिखेर रहा है. पहले की तुलना में यहां हजारों की तादाद में सुन्दर व गठीले बैल देखने को तो नहीं मिल रहे पर जितने भी बैल है उनसे यह बाजार गुलजार है. हीरा मोती, राम श्याम और न जाने कितने ऐसे ही नाम वाले देशी बैल के जोड़े बिकने के लिए तैयार है. गांव देहात के किसानों से लेकर बड़े-बड़े वीआइपी गृहस्थ भी यहां बैल खरीदने आ रहे हैं. बैल बाजार में अपने दो जोड़ी बैल को बेचने छपरा के कटसा गांव से आये विपिन साह, छबीला राय, सूरज राय आदि ने बताया कि बैल बाजार में 2.5 लाख से लेकर 46000 तक के बैल उपलब्ध हैं. बैल बाजार में व्यवसाय की संस्कृति आज भी कायम है.

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36 हजार की बकरी बनी है आकर्षण का केंद्र

इस मेले से पूर्व की वर्षों की तरह इस बार भी गाय व भैंसे गायब है तो वहीं बकरी बाजार की रौनक देखते ही बन रही है. बकरी बाजार में जिस साइज की बकरियां है उसके अनुसार उसका दाम है. कई बकरियां अपने साइज से ग्राहकों को लुभा रही है. हरिहरनाथ द्वार से 100 मीटर पश्चिम गाय बाजार के समीप इस बार बकरी का बाजार सजा है. यहां राजस्थानी बकरियों की बिक्री हो रही है. उत्तर प्रदेश के रायबरेली के अलावे कई प्रसिद्ध जिलों से बकरी के व्यापारी अपनी राजस्थानी बकरियों को लेकर पहुंचे हैं. साइज व सबसे आकर्षक बकरी की कीमत 36 हजार है तो वहीं 10 हजार से लेकर 25 हजार तक के रेट की बकरियां भी इस बकरी बाजार में उपलब्ध है. स्थानीय स्तर की बकरी 600 से 800 प्रति किलो की दर से बिक रही है.

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मेला क्षेत्र के 10 किलोमीटर की परिधि में खरीद-बिक्री व परिवहन पर रोक

वन प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत सोनपुर मेला क्षेत्र के 10 किलोमीटर की परिधि में हाथी समेत विभिन्न जानवरों एवं पक्षियों के खरीद बिक्री के साथ-साथ परिवहन पर रोक लगा दी गयी है. वन प्रमंडल पदाधिकारी रामसुंदर एम के द्वारा वन विभाग के पदाधिकारियों एवं कर्मियों की 16 टीमों का गठन किया गया है. डीएफओ के अनुसार वन प्राणी संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जुर्माना एवं कैद की सजा का प्रावधान किया गया है.

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