सोनपुर मेले में कभी होती थी हाथियों की दौड़, जुटती थी हजारों की भीड़, जानें मेले से जुड़ी कुछ खास बातें

हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले की खास पहचान यहां आने वाले हाथी, घोड़े, गाय-भैंस व अन्य पशुओं से रही है. यहां घुड़दौड़ की काफी पुरानी परंपरा रही है. कहते हैं कि कभी यहां अंग्रेज अफसर घुड़सवारी और पोलो खेलने आते थे. उस वक्त यह मेला हाजीपुर तक फैला हुआ था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2022 8:46 AM

गंगेश गुंजन, हाजीपुर. हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले की खास पहचान यहां आने वाले हाथी, घोड़े, गाय-भैंस व अन्य पशुओं से रही है. यहां घुड़दौड़ की काफी पुरानी परंपरा रही है. कहते हैं कि कभी यहां अंग्रेज अफसर घुड़सवारी और पोलो खेलने आते थे. उस वक्त यह मेला हाजीपुर तक फैला हुआ था. यहां के रमना मैदान में घुड़दौड़ के साथ-साथ हाथियों की दौड़ भी हुआ करती थी. हालांकि अब यहां हाथी दौड़ नहीं होती है. 1958 में प्रकाशित मुजफ्फरपुर गजेटियर के अनुसार अंग्रेज ऑफिसर लॉर्ड क्लाइव ने सन् 1803 में यहां एक बड़े से अस्तबल का निर्माण कराया था. नेपाल रेजिडेंट के रूप में तैनात नाक्स नामक अंग्रेज अफसर को उसका कैप्टन बनाया गया था.

हाजीपुर में एक रेसकोर्स का भी कराया गया था निर्माण

कहते हैं हाजीपुर में एक रेसकोर्स का निर्माण भी कराया गया था. सन 1837 में गंडक में आई बाढ़ के दौरान वह रेसकोर्स बह गया था. उसके बाद उसे सोनपुर में शिफ्ट कर दिया गया था. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एक महीने तक लगने वाले इस मेले की शुरुआत कब हुई, इसका कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि चंन्द्रगुप्त मौर्य के लिए भी यहां से हाथी, घोड़े खरीदे जाते थे. मुगल बादशाह अकबर, ईस्ट इंडिया कंपनी के लॉर्ड क्लाइव और बाबू वीर कुंवर सिंह भी मेले में आये थे.

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बंद हो गया दूसरे प्रदेशों से मवेशियों का आना…

कभी हाथी, घोड़ा, ऊंट, गाय-भैंस, बैल व अन्य पशु-पक्षी इस मेले की शान समझे जाते थे. जमकर इनकी खरीद-बिक्री होती थी. पंजाब, हरियाणा, असम आदि राज्यों से दूधारू पशु मेले में खरीद-बिक्री के लिए आते थे. लेकिन करीब दो दशक पूर्व दूसरे राज्यों से पशुओं के आने पर रोक के बाद यहां अब दूसरे राज्यों से गाय-भैंस नहीं आते हैं. हाथियों की खरीद-बिक्री पर रोक के बाद अब यहां हाथियों का आना भी न के बराबर रह गया है.

…अब पशु बाजार के नाम पर सिर्फ जगह

सोनपुर मेला में घोड़ा, कुत्ता खरगोश आदि को छोड़ कर अब अन्य पशु-पक्षियों की बिक्री नहीं हो रही है. गाय बाजार में अब ऑटोमोबाइल कंपनियां ट्रैक्टर, बाइक, स्कूटी आदि की प्रदर्शनी लगाती हैं. अंग्रेजी बाजार अब घोड़ा बाजार बन गया है. चिड़िया बाजार में कुत्तों की बिक्री हो रही है. बैल बाजार में झूला और चाट समोसे की दुकानें लगी हैं.

कभी 500 एकड़ में मेला क्षेत्र हुआ करता था

सोनपुर मेला अब 2.5 वर्गकिमी में फैला हुआ है. वैसे तो जनश्रुति है कि कभी 500 एकड़ में मेला क्षेत्र हुआ करता था. मगर, साक्ष्य के मुताबिक 1960 में प्रकाशित सारण गैजेटियर के अनुसार मेला 4.5 वर्ग मील में हुआ करता था.

अफगान से लेकर ढाका तक के सामान की होती थी बिक्री

अंग्रेजों के समय कलकत्ते की दुकान में लंदन की बेहतरीन डिजाइन की वस्तुओं की बिक्री होती थी. सोनपुर मेले में उसे बेचने के लिए लाया जाता था. ‛हार्ट ब्रदर्स’ जो एक बहुत अच्छा घोड़ा व्यापारी थे, विभिन्न नस्लों के घोड़ों को सोनपुर मेले में लाते थे. नेपाल और तिब्बत से छोटे-छोटे कुत्ते, चमड़े और जंगली वस्तुएं आया करती थीं. ‛मिंडेन विल्सन’ अपने इतिहास लेखने में लिखते हैं कि ”टाट और तंबुओं से बने दुकानों में न सिर्फ दिल्ली, कश्मीर और कानपुर के व्यापारियों ने अपनी दुकान लगायी थी, बल्कि अफगानिस्तान का माल भी बेचा जा रहा था. ढाका के मशहूर जुलाहों की बेशकीमती सिल्क की वस्तुएं भी बिक्री भी यहां लायी जाती थीं.

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