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संपूर्ण क्रांति दिवस पर विशेष: जेपी के ‘संपूर्ण क्रांति’ को नीतीश ने जमीन पर उतारा, साइकिल और पोशाक योजना ने किया सामाजिक क्रांति का सूत्रपात

ठीक 47 साल पहले, पांच जून, 1974 को, लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया था. जेपी ने कहा था, ‘संपूर्ण क्रांति’ का उद्देश्य सिर्फ एक बेहतर राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण नहीं है;

संजय कुमार झा

ठीक 47 साल पहले, पांच जून, 1974 को, लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया था. जेपी ने कहा था, ‘संपूर्ण क्रांति’ का उद्देश्य सिर्फ एक बेहतर राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण नहीं है; इसमें सात क्रांतियां निहित हैं- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति. और इसे साकार करने के लिए जेपी ने देश, समाज और राजनीति में महिलाओं और वंचित वर्गों की सहभागिता बढ़ाने पर जोर दिया था.

2005 से पहले के बिहार को याद करें. गांव-समाज और राजनीति को दिशा और विकास की गाड़ी को रफ्तार देने में आधी आबादी की भूमिका नगण्य थी. यह बात और है कि उसी दौर में बिहार को पहली महिला मुख्यमंत्री मिली थीं. पर, वह इस बात का एलान था कि लोहिया और जेपी ने जिस वंशवाद और परिवारवाद का आजीवन विरोध किया था, वह भारत और खासकर बिहार की राजनीति में स्वीकार्य हो चुका था.

राज्य में एक परिवार की सत्ता बचाये रखने के लिए बाहुबलियों की फौज पूरे बिहार में तैनात कर दी गयी थी, जिनके आतंक के चलते महिलाओं क्या, पुरुषों को भी बाहर जाने पर अनिष्ट की आशंका घेरे रहती थी.

निराशा के उस घनघोर अंधेरे को चीरते हुए नीतीश कुमार उम्मीद की किरण लेकर आये थे. उन्होंने सत्ता संभालते ही महिलाओं को घरों में कैद रखने की सोच पर प्रहार शुरू किया और दहलीज लांघने के लिए उन्हें अवसर और सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराया.

नीतीश कुमार ने 2006 में महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों में 50 फीसदी आरक्षण देने का जो ऐतिहासिक, साहसिक और दूरदर्शितापूर्ण फैसला लिया, उसने बड़े सामाजिक परिवर्तन की नींव रखी. बाद में केंद्र और कई राज्यों ने इसे अपनाया. आज पंचायत सरकार से लेकर प्रदेश की राजनीति तक लाखों महिलाएं सक्षमता के साथ अपनी अलग पहचान बना रही हैं.

नीतीश कुमार यहीं नहीं रुके. एक ऐसे समय में, जब बेटियों की उच्च शिक्षा के प्रति समाज का विशेष ध्यान नहीं था, लड़कियों को खुलेआम साइकिल चलाते देखना तो राजधानी पटना तक दुर्लभ था, नीतीश कुमार की साइकिल और पोशाक योजना ने ऐसी सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया, जिसमें जेपी की ‘संपूर्ण क्रांति’ के सातों अवयवों का सार था. लड़कियों को बड़े पैमाने पर मुफ्त साइकिल मिलने से एक झटके में समाज की पुरानी सोच बदल गयी.

गांव-गांव में बेटियां साइकिल से स्कूल जाने लगीं. बेटियों की उच्च शिक्षा में गरीबी आड़े न आये, इसके लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की गयीं. इन सबसे लड़कियों में पढ़ाई के प्रति ऐसी ललक पैदा हुई कि अब न केवल मैट्रिक परीक्षा में बेटे-बेटियों की संख्या बराबर हो गयी है, बल्कि उच्च शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में भी छात्राएं मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं और प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं.

बेटियों को आत्मनिर्भर बनने के अवसर मिले, इसके लिए नीतीश कुमार ने प्रारंभिक स्कूलों की शिक्षक नियुक्ति में 50 प्रतिशत और सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण दिया. ‘जीविका’ महिला सशक्तीकरण की दिशा में नीतीश कुमार की एक और दूरगामी पहल थी.

वर्ष 2006 में शुरू हुई इस योजना से 10 लाख 27 हजार से अधिक स्वयं सहायता समूहों के जरिये 1 करोड़ 27 लाख से ज्यादा दीदियां जुड़ चुकी हैं, जो खुद सशक्त बन कर अपने परिवार को आर्थिक संबल प्रदान कर रही हैं. इस तरह गांधी, लोहिया और जेपी ने आधी आबादी को बराबरी का हक देने का जो सपना देखा था, नीतीश कुमार ने उसे साकार किया है.

गांधी, लोहिया और जेपी ने साधन और साध्य की पवित्रता और सार्वजनिक जीवन में शुचिता और पारदर्शिता की न सिर्फ वकालत की थी, बल्कि खुद को उसका श्रेष्ठ उदाहरण भी बनाया था. नीतीश कुमार उसी राह के राही हैं. जेपी ने जिन युवा नेताओं को आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में रखा था, उनमें नीतीश कुमार अकेले ऐसे नेता हैं, जो लंबे समय से सत्ता के शीर्ष पर होने के बावजूद बेदाग हैं.

वे केंद्र में मंत्री रहे और करीब 16 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. सत्ता को अक्सर ‘काजल की कोठरी’ कहा जाता है, लेकिन इस कोठरी में इतने वर्षों से नीतीश कुमार का बेदाग रहना साबित करता है कि राजनीति उनके लिए राज्य और समाज को दिशा देने का माध्यम है, अपनी या अपने परिवार की आकांक्षाओं की पूर्ति का साधन नहीं.

विकास का नारा पहले भी दिया जाता था, लेकिन पहली बार नीतीश कुमार ने कहा- ‘न्याय के साथ विकास.’ उन्होंने अति पिछड़े और महादलित समुदायों की पहचान कर उनके उत्थान के लिए अलग से नीतियां बनायीं. नीतीश सरकार ने राज्य में सड़कों-पुलों का जो जाल बिछाया है, बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित की है, गली-नाली को पक्की करने और हर घर तक नल का जल पहुंचाने जैसा कठिन कार्य किया है, उन सब का लाभ बिना किसी भेदभाव के सभी को मिला है.

समावेशी विकास का नीतीश कुमार का प्रयास लगातार जारी है. कोरोना महामारी से जनता की सुरक्षा के लिए बिहार में किस तत्परता से जांच, इलाज और टीकाकरण की व्यवस्था की गयी, आंकड़े उसके गवाह हैं.

आपदा काल में किसी गरीब या बेसहारा व्यक्ति को भूखे न सोना पड़े, इसके लिए सामुदायिक रसोई की व्यवस्था, गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता, राशनकार्ड धारियों को मुफ्त अनाज, महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के जरिये रोजगार, बाहर से लौटे श्रमिकों के लिए सरकारी योजनाओं में अतिरिक्त कार्यदिवस का सृजन, कोरोना के शिकार लोगों के आश्रितों को मुआवजा, अनाथ हुए बच्चों के लिए बाल सहायता योजना की शुरुआत- गरीबों की इतनी चिंता नीतीश कुमार जैसा विशिष्ट नेता ही कर सकता है.

लेखक बिहार सरकार में मंत्री हैं.

Posted by Ashish Jha

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