Srijan scam:सृजन मामले में फरार अभियुक्त ने CBI कोर्ट में किया सरेंडर,इस तरह दिया जाता था घोटाले को अंजाम
इस घोटाले का नाम 'सृजन घोटाला' इस कारण पड़ा क्योंकि कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय ख़ातों में न जाकर या वहां से निकालकर 'सृजन महिला विकास सहयोग समिति' नाम के एनजीओ के छह ख़ातों में ट्रांसफ़र कर दी जाती थी. इस घोटाले को अंजाम देने का ढंग अपने आप में अनोखा था.
पटना/भागलपुर: अरबों रुपये के सृजन घोटाले के एक मामले में फरार चल रहे अभियुक्त व बांका के तत्कालीन भू-अर्जन विभाग के नाजिर अनीस अंसारी ने गुरुवार को सीबीआइ कोर्ट में सरेंडर कर दिया. विशेष कोर्ट ने अनीस को न्यायिक हिरासत में लेते हुए 14 सितंबर तक के लिए जेल भेज दिया है. इसके खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी का गैर जमानतीय अधिपत्र जारी कर रखा था और सीबीआइ लगातार पकड़ने के लिए दबिश दे रही थी.
वर्ष 2017 में दर्ज हुई थी प्राथमिकी
सृजन महिला विकास सहयोग समिति द्वारा करोड़ों की सरकारी राशि के घोटाला मामले में बांका में भू-अर्जन के 83.10 करोड़ की राशि के घोटाले का मामला तत्कालीन जिला भू-अर्जन पदाधिकारी आदित्य कुमार झा ने बांका थाना में 20 अगस्त 2017 को दर्ज कराया था. बांका थाना में वर्ष 2009-13 के 83.10 करोड़ की सरकारी राशि के गबन के मामले में तत्कालीन भू -अर्जन पदाधिकारी जयश्री ठाकुर, भागलपुर के बैंक ऑफ बड़ौदा व इंडियन बैंक के तत्कालीन मैनेजर और सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के सभी पदाधिकारी व सबंधित कर्मी को आरोपित बनाया गया था. 2009-13 में भागलपुर के बैंक ऑफ बड़ौदा एवं इडियन बैंक में बांका भू-अर्जन विभाग का दो खाता खोल रखा था. इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही है.
क्या है सृजन घोटाला ?
इस घोटाले का नाम ‘सृजन घोटाला’ इस कारण पड़ा क्योंकि कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय ख़ातों में न जाकर या वहां से निकालकर ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति’ नाम के एनजीओ के छह ख़ातों में ट्रांसफ़र कर दी जाती थी. इस घोटाले को अंजाम देने का ढंग अपने आप में अनोखा है. पुलिस मुख्यालय के एक वरीय अधिकारी के मुताबिक ‘फर्ज़ी सॉफ़्टवेयर बनाकर पासबुक को अपडेट किया जाता था. उसी सॉफ़्टवेयर से बैंक स्टेटमेंट निकाला जाता था. यह फ़र्ज़ी स्टेटमेंट बिल्कुल वैसा ही होता था, जैसा किसी सरकारी विभाग के इस्तेमाल और खर्च का होता है. दिलचस्प बात यह है कि घोटाले से जुड़े लोग इसी फ़र्ज़ी सॉफ़्टवेयर के ज़रिए इस राशि का ऑडिट भी करवा देते थे.’