बिहार में गंगा नदी किनारे वाले 23 शहरों व इसकी सहायक नदियों वाले 16 शहरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) निर्माण के साथ ही 76 छोटे शहरों में एफएसटीपी (फिकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट) पर भी काम चल रहा है. इन एफएसटीपी के माध्यम से निजी सेप्टिक टैंकों से निकलने वाली गंदगी को एकत्रित करने के बाद उसे ट्रीट कर खाद तैयार किया जायेगा. फिलहाल चिह्नित निकायों में एफएसटीपी के निर्माण को लेकर जमीन की तलाश हो रही है.
76 शहरों में लगाये जाने वाले एफएसटीपी प्लांटों की कुल क्षमता 1287 केएलडी होगी. यानि स्थापित होने वाले प्लांट हर दिन 1287 किलो लीटर प्रतिदिन सेप्टिक व दूषित कचरे का निबटारा कर सकेंगे. वर्तमान में छोटे शहरों में लोग मल त्याग के लिए सेप्टिक टैंक का ही प्रयोग करते हैं. निकायों के टैंकरों के माध्यम से इनको खाली कर निकलने वाली मलयुक्त गाद को खाली जगह, खड्ड अथवा नालों में फेंक दिया जाता है, जिससे कई गंभीर रोग पैदा होने के साथ जल स्रोतों दूषित होते हैं. इस पर लगाम लगाने और लोगों को सुविधा के लिए ही एफएसटीपी प्लांट स्थापित करने की योजना तैयार की गयी है.
अधिकारियों के मुताबिक यह प्लांट न केवल घरेलू सेप्टिक टैंकों के गाद को बल्कि शहर के अन्य सभी प्रकार के दूषित मलबे को ट्रीट कर सॉलिड और लिक्विड में अलग करता है. ट्रीटमेंट के बाद प्लांट के बचे सॉलिड वेस्ट का इस्तेमाल खाद के रूप में जबकि लिक्विड का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जा सकता है. प्लांट पूरी तरह वैज्ञानिक आधार पर कई स्टेप में काम करता है.
गंगा व सहायक नदियों के अलावा आठ अन्य महत्वपूर्ण शहरों में भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की तैयारी है. इनमें चार गंदी नदियों वाले शहर रामनगर, नरकटियागंज, रक्सौल और जोगबनी जबकि चार महत्वपूर्ण शहर गया, आरा, बेतिया और कटिहार हैं. यहां पर कुल 251.75 एमएलडी क्षमता का एसटीपी लगाया जा रहा है. इनमें से रामनगर में नौ एमएलडी और नरकटियागंज में सात एमएलडी क्षमता के एसटीपी को लेकर टेंडर प्रक्रिया चल रही है जबकि रक्सौल में 12 एमएलडी, जोगबनी में 4.25 एमएलडी, गया में 84 एमएलडी, आरा में 47 एमएलडी, बेतिया में 33 एमएलडी और कटिहार में 55.5 एमएलडी क्षमता के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का डीपीआर तैयार कर उसे एनएमसीजी (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) को भेजा गया है. इसकी मंजूरी मिलते ही टेंडर प्रक्रिया पूरी कर काम शुरू कर दिया जायेगा.
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नदियों को स्वच्छ रखने को लेकर मंजूर की गयी करीब छह दर्जन एसटीपी परियोजनाओं में अब तक मात्र सात परियोजनाओं को ही पूरा कर शुरू किया जा सका है. शहरों से निकलने वाले कुल गंदे पानी का दस फीसदी भी अब तक ट्रीट करने की सुविधा विकसित नहीं की जा सकी है.