बिक्रमगंज. खेतों और किसानों की परेशानी का सबब बनने वाली पराली ही अब किसानों की किस्मत चमकायेगी. इसकी शुरुआत दावथ थाना अंतर्गत बोदाढ़ी गांव से करते हुए जागरूक किसान इंदुभूषण राय अपनी पहल पर गौरवांवित हैं.
इस पहल से खेतों में पसरी पराली अब अच्छी कीमत देगी, जिसकी लागत काफी कम है. उन्होंने एक मशीन आंध्रप्रदेश से मंगायी है, जो खेतों में पड़े धान के बचे अवशेष यानी पराली का गट्ठर तैयार करती है. इसका वजन 25 किलो से लेकर 40 किलो तक का है और खलिहान से इस 40 किलो पराली से बनने वाला पशुचारा के रूप में 200 रुपये की आमदनी करायेगा.
किसान इंदुभूषण राय कहते हैं कि जिस खेत में जितना वजन का धान होता है, उतना ही वजन का उसका पुआल भी होता है. अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक बीघा में कितना धान होता है और कितनी कीमत का उसका पुआल होता है.
यह तकनीकी किसानों को खेतों में पुआल जलाने से रोकेगी, जिससे न सिर्फ वातावरण बेहतर होगा, बल्कि खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट होने से बचायेगा. इसको प्राथमिकता देते हुए कृषि विज्ञान केंद्र बिक्रमगंज रोहतास सुरहुरिया व उसके 50 एकड़ क्षेत्रफल में पराली प्रबंधन के तहत राउंड स्ट्रॉलर मशीन से पराली का गट्ठर बनायेगी.
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ आरके जलज कहते हैं कि एक बीघा में धान लगे खेत से लगभग नौ से 12 क्विंटल पराली निकलता है. गेहूं, चना आदि फसल का बीज डालने के लिए पराली को खेत से निकालना आवश्यक हो जाता है. मजदूर के द्वारा पराली को जमा कराना काफी खर्चीला होता है.
अब इसके निदान के लिए जिले में स्ट्रा बेलर मशीन का प्रत्यक्षण कराया जायेगा. हालांकि, पहले भी कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा करगहर प्रखंड के ग्राम तिलई में चौकोर स्ट्रा बेलर मशीन का प्रत्यक्षण कराया जाता रहा है. इस राउंड बेल की खासियत यह है कि ओ पराली गोल कर बंडल बनाता है.
उसे आसानी से पूरी तरह से खोला जा सकता है. इससे पशुचारा कुट्टी काटने के लिए आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है. ताकि पराली को बंडल के रूप में रखा जाता है. अतः कम जगह में अधिक-से-अधिक पुआल रखा जा सकता है व जरूरत पड़ने पर पशु चारा बनाकर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
जॉन डियर कंपनी से खरीदी गयी साढ़े तीन लाख की मशीन : दावथ प्रखंड के बोदाढ़ी निवासी किसान इंदुभूषण राय अपने 24 बीघे खेतों में धान की फसल लगाते हैं. खेती में ही अपनी जीविका तलाशने वाले इस किसान का कहना है कि खेती हमारा पुस्तैनी काम है.
इसे हम बड़ी आत्मीयता से करते हैं, लेकिन अब जो नयी तकनीकी आ रही है, वह हम किसानों की मुश्किलों का बहुत भला कर रही है. उन्होंने बताया कि पैडी राउंड ब्लेयर की जानकारी हमे वैज्ञानिकों से मिली है. इसके लिए हम आंधप्रदेश गये. वहां देखा और तब इसे खरीदने का मन बनाया.
यहां आ कर जॉन डियर कम्पनी से तीन लाख 35 हजार में यह मशीन खरीदी है. इससे पुआल का गट्ठर बनाने में प्रति बीघा 600 रुपये की लागत आती है. यह मशीन आनेवाले समय में किसानों की सबसे जरूरी मशीन होगी.
इस मशीन की सबसे तकलीफदेह बात यह है कि इसके टूटे मशीनी के कल पुर्जे यहां नहीं मिलते, नहीं कोई इंजीनियर ही यहां मिलते हैं. इसके कारण छोटे से छोटे पुर्जे भी आंध्रप्रदेश से मंगवाना पड़ता है.
Posted by Ashish Jha