बिहार के एक ऐसे गणितज्ञ की कहानी, जिनके लिए बदले गए विश्वविद्यालय के नियम, NASA भी था जिनका मुरीद

Success Story: एक ऐसा गणितीय जीनियस, जिसने अपनी प्रतिभा से दुनिया को चौंका दिया. बिहार के छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने न सिर्फ पटना यूनिवर्सिटी के नियम बदलवाए, बल्कि NASA में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती देने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह की कहानी पढिए.

By Abhinandan Pandey | February 15, 2025 1:49 PM

Success Story: कल्पना कीजिए अगर कोई छात्र तीन साल का कोर्स महज एक साल में पूरा कर ले. अगर उसकी गणना की गति कंप्युटर से भी तेज हो. उसकी प्रतिभा इतनी अद्वितीय हो की NASA तक उसकी काबिलियत की कायल हो जाए. यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि बिहार के वशिष्ठ नारायण सिंह की सच्ची गाथा है. एक ऐसा गणितज्ञ, जिसके लिए पटना यूनिवर्सिटी को अपने नियम बदलने पड़े. जिसे NASA ने अपोलो मिशन में मदद के लिए बुलाया, जिसने आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती दी और जिसे भारत ने जीते जी भुला दिया. यह कहानी है एक अद्भुत दिमाग की, असाधारण प्रतिभा की, और एक अनकही त्रासदी की.

गांव से NASA तक का सफर

2 अप्रैल 1946 को बिहार के भोजपुर जिले के वसंतपुर गांव में जन्मे वशिष्ठ नारायण सिंह कोई आम बालक नहीं थे. जहां उनके हमउम्र बच्चे गिनती सीख रहे थे, वहीं वे कठिन से कठिन गणितीय समीकरण चुटकियों में हल कर देते थे. उनकी इस प्रतिभा को देखकर उन्हें नेतरहाट स्कूल भेजा गया, जहां उन्होंने अपनी विलक्षण बुद्धिमत्ता से सभी को चौंका दिया. पटना साइंस कॉलेज में दाखिले के बाद उनकी असाधारण प्रतिभा का असली इम्तिहान हुआ. वे अपने सहपाठियों से इतनी आगे थे कि कॉलेज के प्रिंसिपल ने उनके लिए विश्वविद्यालय के नियम बदलने की सिफारिश की.

तीन साल की डिग्री, सिर्फ एक साल में

1963 में जब वे बीएससी के पहले वर्ष में थे, तब उनके प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र नाथ ने पटना विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. जॉर्ज जैकब से आग्रह किया कि वशिष्ठ बाबू के लिए नियमों में बदलाव किया जाए. और हुआ भी यही मात्र कुछ मिनटों में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया. वशिष्ठ नारायण सिंह को सीधे फाइनल ईयर में प्रमोट कर दिया गया. जहां उनके सहपाठी फर्स्ट ईयर में थे, वहीं वे फाइनल ईयर की परीक्षा में बैठ चुके थे. जैसे ही उन्हें बीएससी की डिग्री मिली, तुरंत उनकी एमएससी परीक्षा आयोजित की गई, जिसमें वे पूरे बिहार में टॉपर बने.

NASA भी हुआ कायल, आइंस्टीन के सिद्धांत को दी चुनौती

उनकी असाधारण प्रतिभा को देखकर अमेरिका के प्रसिद्ध गणितज्ञ जॉन एल केली ने उन्हें कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले बुलाया. 1969 में उन्होंने वहां से पीएचडी पूरी की और फिर NASA में काम करने लगे. अब कहानी और भी दिलचस्प हो जाती है. कहा जाता है कि जब NASA के कंप्यूटर ने एक महत्वपूर्ण गणना करने से इनकार कर दिया, तब वशिष्ठ नारायण सिंह ने बिना किसी तकनीकी सहायता के वही गणना कर दिखाई. इतना ही नहीं, वे उन चुनिंदा वैज्ञानिकों में से थे, जिन्होंने आइंस्टीन के प्रसिद्ध समीकरण E = mc² को चुनौती दी और गणितीय स्तर पर उसकी नई व्याख्या दी.

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शिखर से गिरावट तक, जब प्रतिभा को भुला दिया गया

जहां दुनिया उनकी गूंज सुन रही थी, वहीं भारत लौटने के बाद उनकी जिंदगी ने अचानक एक दर्दनाक मोड़ लिया. उन्होंने IIT कानपुर, TIFR मुंबई और ISI कोलकाता में पढ़ाया, लेकिन शादी के बाद स्किजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित हो गए. धीरे-धीरे वे गुमनामी में खो गए. एक गणितीय जीनियस की दर्दनाक दुर्दशा उनकी पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया. समाज ने भुला दिया. वे सालों तक बेसहारा भटकते रहे. यह वही व्यक्ति था जिसे कभी NASA ने सलाम किया था, जिसे आइंस्टीन के बाद सबसे बड़ा गणितज्ञ माना गया था. 14 नवंबर 2019 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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