गंडक पार कर की पढ़ाई, आज अमेरिका के ‘हेरिटेज वॉल ऑफ फेम’ में नाम शामिल…

Success Story: मनोविज्ञान में करियर बनाने वाले छात्रों के लिए रामाधार सिंह एक जीता जागता मिसाल हैं. इनका नाम अमेरिका के सोसायटी फॉर पर्सनालिटी एंड सोशल साइकोलॉजी (SPSP) की ‘हेरिटेज वॉल ऑफ फेम’ में शामिल किया गया है. ऐसा कहा जा रहा है कि वह पहले ऐसे भारतीय हैं, जिनका नाम इस वॉल में शामिल किया गया है.

By Abhinandan Pandey | June 17, 2024 5:31 PM
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Success Story: रामाधार सिंह की सक्सेस जर्नी उन तमाम युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है जो एक छोटे गांव से पढ़कर देश दुनिया में अपना नाम कमाना चाहते हैं. खास तौर पर मनोविज्ञान में करियर बनाने वाले छात्रों के लिए रामाधार सिंह एक जीता जागता मिसाल हैं. इनका नाम अमेरिका के सोसायटी फॉर पर्सनालिटी एंड सोशल साइकोलॉजी (SPSP) की ‘हेरिटेज वॉल ऑफ फेम’ में शामिल किया गया है. ऐसा कहा जा रहा है कि वह पहले ऐसे भारतीय हैं, जिनका नाम इस वॉल में शामिल किया गया है.

कैसे हुई पढ़ाई लिखाई

रामाधार सिंह का जन्म 16 मई 1945 को नेपाल के सर्लाही जिले के गांव बलारा में हुआ था. उनके पिता एक छोटे किसान थे. रामाधार सिंह के परिवार का स्‍कूल से कोई खास नाता नहीं रहा था, इसलिए पूरे परिवार में स्कूल जाने वाले वह पहले व्यक्ति बने थे. उनके गांव में एक भी स्‍कूल नहीं था जिसके कारण उन्‍हें गांव से सटे बिहार के एक गांव में पढ़ने जाना पड़ता था.

स्‍थिति यह थी कि स्‍कूल जाने के लिए उन्‍हें गंडक नदी को पार करना पड़ता था. रामाधार सिंह कहते हैं कि पिताजी का उतना मन नहीं था कि बच्‍चा इतना परिश्रम करके स्‍कूल जाए और पढ़े लेकिन मां कहती थी कि नहीं इसे पढ़ाना ही है, चाहे जो हो जाए.

मिल गई यूएसए की फेलोशिप

रामाधार सिंह स्‍कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद वर्ष 1958 में उन्‍होंने श्रीशंकर हाई स्कूल, मरपसिरपाल, जिला सीतामढ़ी से आगे की पढ़ाई पूरी की. उसके बाद उन्होंने मनोविज्ञान विषय में बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से वर्ष 1965 में बीए की डिग्री ली. रामाधार सिंह पढ़ने में तेज थे जिसके कारण उन्‍हें 1965 में ही मास्‍टर्स डिग्री के लिए बिहार विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएट मेरिट स्कॉलरशिप मिल गई. उन्‍होंने 1968 में उन्होने मनोविज्ञान में एमए किया.

रामाधार सिंह एमए में गोल्‍ड मेडलिस्‍ट रहे. वर्ष 1970 में उन्‍हें Purdue University, USA में फुलब्राइट-हेज स्कॉलरशिप मिल गई. 1972 में उन्‍होंने मनोविज्ञान में एमएस किया. वर्ष 1973 में पर्ड्यू विश्वविद्यालय से पीएचडी भी पूरी कर ली.

IIT कानपुर के बाद सिंगापुर

इसके बाद वे आईआईटी कानपुर में सहायक प्रोफेसर के पद पर जॉइन किए. जहां 1973 से 1979 तक अपनी सेवाएं दीं. 1979 से 1988 तक वह इंडियन इंस्‍टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद में रहे. वर्ष 1988 में उनको नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर से मनोविज्ञान के प्रोफेसर का बुलावा आ गया. जहां वह लगातार 2010 तक रहे. वह 1992 में सिंगापुर साइकोलॉजी सोसाइटी के पहले फेल प्रोफेसर बने.

वर्ष 2003 से 2004 के बीच यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्‍टर न्‍यूयॉर्क और यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्‍सफोर्ड तथा पर्ड्यू यूनिवर्सिटी इंडियाना यूएसए में भी अपना समय दिया. वर्ष 2010 से 2016 तक उन्‍होंने इंडियन इंस्‍टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, बेंगलुरू में भी बतौर प्रोफेसर सेवाएं दीं हैं और अहमदाबाद यूनिवर्सिटी में भी विशिष्‍ट प्रोफेसर रहे.

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