बचाने-गिराने का दौर जारी
सुपौल नप. नौ को होना है अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव सुपौल नप अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के चुनाव को लेकर चर्चा का दौर जारी है. बैठकें हो रही हैं. इसी दौरान बुधवार को निर्वाचित पार्षदों की बैठक में निवर्तमान अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की पत्नी के नाम पर सहमति बनने की चर्चा है. सुपौल : नगर […]
सुपौल नप. नौ को होना है अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव
सुपौल नप अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के चुनाव को लेकर चर्चा का दौर जारी है. बैठकें हो रही हैं. इसी दौरान बुधवार को निर्वाचित पार्षदों की बैठक में निवर्तमान अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की पत्नी के नाम पर सहमति बनने की चर्चा है.
सुपौल : नगर परिषद के मुख्य और उपमुख्य पार्षद चुनाव को लेकर सुपौल नगर परिषद में जो बेमेल गंठबंधन बन रहा है, इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि स्थानीय स्तर पर मुख्य रूप से जदयू और भाजपा की नप के चुनाव में दखलअंदाजी है. निवर्तमान मुख्य पार्षद के पिता व उपमुख्य पार्षद जहां स्थानीय विधायक सह बिहार के काबीना मंत्री काफी करीबी माने जाते हैं.
वहीं कुछ नये चेहरे समेत कई भाजपाई भी इस बार के चुनाव में वार्ड पार्षद चुन कर आये हैं. ऐसे में जानकारों का मानना था कि इस बार निवर्तमान मुख्य व उपमुख्य पार्षद के लिए दोनों सीटों को बचाना आसान नहीं होगा, लेकिन इसके इतर जिस प्रकार राजनीतिक परिदृश्य बदला, उससे लोग गच्चा खा गये. स्थानीय विधायक सह मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव का ओहदा बिहार की राजनीति में जदयू में सीएम नीतीश कुमार के बाद आता है. वर्तमान बिहार की सरकार महागंठबंधन की सरकार है. इसमें राजद, जदयू व कांग्रेस का गंठजोड़ है.
बीते दिनों में बिहार की राजनीति में महागंठबंधन में दरार को लेकर चर्चा हुई थी. कयास यह लगाया जा रहा था कि जदयू महागंठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बना सकती है. ऐसे में स्थानीय स्तर पर मुख्य व उपमुख्य पार्षद के चुनाव में भाजपा के नरम रुख से लोग यह कयास लगाने में जुटे हैं कि कहीं बिहार में कोई राजनीतिक फेरबदल की रणनीति तो नहीं चल रही है. वैसे छातापुर के भाजपा विधायक नीरज कुमार सिंह बबलू की भी नप चुनाव में परोक्ष रूप से ही सही दखलंदाजी की बात से इनकार नहीं किया जा सकता. बबलू के कई चहेते चुनाव जीते भी.
चुनाव परिणाम आने के बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी थी कि अध्यक्ष-उपाध्यक्ष कोई बने, लड़ाई विजेंद्र-बबलू के बीच ही होगी, लेकिन बुधवार को हुई एक बैठक के बाद तमाम बातों पर विराम लग गया है. लोग यहां तक कहने लगे हैं कि कोसी की धरती पर विजेंद्र-बबलू की जोड़ी ‘लालटेन की लौ’ को कमजोर कर सकती है. हालांकि विजेंद्र व बबलू के समर्थक कहते हैं कि गांव की राजनीति अलग होती है, नगर व प्रदेश की अलग. समर्थकों का कहना है कि न तो विजेंद्र-बबलू की जोड़ी जैसी कोई बात है और न ही राजद के कमजोर होने की बात. कुल मिला कर जो भी हो विजेंद्र-बबलू की जोड़ी बने या फिर लालटेन की लौ कमजोर हो, लेकिन समाज के सुलझे विचारधारा के लोगों ने बैठक में बनी सहमति का स्वागत किया है.